
दोस्तों, हर इंसान इस भाग – दौड़ भरी ज़िन्दगी में सुकून के पल चाहता है |
पल दो पल के सुकून के लिए कहाँ – कहाँ भटकता रहता है, तभी एक दिन उसे एहसास होता है कि जिस सुकून को वर्षो से बाहरी दुनिया में ढूंढ रहा है , वह तो उसके अन्दर ही छिपा बैठा था |
उस दिन जब उसे वह मिल गया तो उसने यही कहा था …..

सुकून की तलाश
सुकून की तलाश मेंफिरता रहा इधर उधर
तू कहाँ छिपा हुआ ..क्यूँ नहीं आता नज़र
गली गली शहर शहर, ढूंढता रहा किधर
मैं चला उधर उधर तू चला जिधर जिधर
खुश हुई मेरी नज़र, जो मिली तेरी खबर
धुंधला सा अक्श दिखा, मुहँ फेरे थी मगर
दूर तुम क्यों खड़ी ,अब पलट भी इधर
खुद का अक्श देख, फैल गई मेरी नज़र
इठलाती सी बोली वो, मैं तो तुझ मे थी यहीं
पास तेरे ही रहूंगी… अब ना जाउंगी कही
(विजय वर्मा)
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Categories: kavita
Nice poem with meaningful video clip.
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Thank you dear,
Stay connected and stay happy..
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अपने अन्दर झांकना भी एक कला है। मनुष्य को अपने अन्दर झांकने की आदत डालने चाहिए। कविता अच्छी है।
संलग्न गजल उम्दा।
धन्यवाद!
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हाहाहा, ….ये कला सब में है , बस कोशिश करने की ज़रुरत है |
तुन्हारे हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
kishori का वेबसाइट भी देखो ..merirachnaye.com..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
सोचता हूँ अब सफ़र यहीं छोड़ दूँ ,
ज़िन्दगी तुझको तेरे घर छोड़ दूँ ,
ये गम साथ तूने निभाया बहुत ,
तू बता तुझको किधर छोड़ दूँ ..
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