# कंगारू -अदालत #

दोस्तों ,

आज सुबह अखबार पढ़ रहा था तो एक खबर पर हमारी नज़र अटक गयी | मैं उत्सुकता पूर्वक उस समाचार पढने लगा | मैं पहली बार कंगारू अदालत के बारे में पढ़ रहा था |

मुझे ज्ञात हुआ कि  कंगारू अदालत सज़ा देनेवाली गै़र-क़ानूनी अदालत होती है जो एक समुदाय विशेष के द्वारा उपयोग में लाई जाती है |

यह एक ऐसी अदालत है जो गैरकानूनी तरीके से एक समुदाय के लोग लगाते है और एक तरफ़ा फरमान सुना दिया जाता है | इस प्रकार की गैरकानूनी अदालत में पूर्ण सुनवाई ना कर सिर्फ हावी पक्ष की सलाह  पर निर्णय सुना देते है |

ये लोग अपने को श्रेष्ठ मानते है और देश के क़ानून में विश्वास नहीं करते है |

इस प्रकार के कोर्ट में दी जाने वाली सजा सबूतों से ज्यादा भावनाओं पर आधारित होती है | जिससे ज्यादातर निर्दोष को  ही  सजा मिलती है |

इस अदालत के फैसले बहुत शख्त होते है जिसका विरोध करने की हिम्मत उस समुदाय के लोग नहीं कर पाते है |

आज वैसे ही एक फैसले को पढ़ते हुए मेरे  रोंगटे खड़े हो गए और मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि आदमी इतना क्रूर क्यों हो जाता है कि अपने ही लोगों के विरूद्ध मौत से भी बदतर अगर कोई सजा होती है उस सजा का फरमान जारी कर दिया जाता है |

इससे पहले खाप पंचायत के बारे में पढ़ा था जहाँ कई बार इस तरह के फैसले लिए जाते हैं  जिसमे सामाजिक रीति रिवाजों के लिए व्यक्तिगत आज़ादी और लागू संविधान का हनन किया जाता है / ..

इसके अलावा हमारे समाज में अभी भी ऑनर किलिंग जैसे घटना के बारे में हम सुनते रहते है | इसमें जात – पात और धर्म के नाम पर प्यार  करने वाले लोगों की  ज़िन्दगी छीन ली जाती है |

कंगारू अदालत, जी हाँ,  मैं सही पढ़ रहा था |  यह घटना है एक संथाल समुदाय का जो बीरभूम के सुबलपुर में रहता है |

उस समुदाय के लोग कंगारू अदालत लगा कर अपने ही समुदाय की एक आदिवासी लड़की के विरूद्ध अपना फरमान जारी कर देते है |

उस लड़की की उम्र २० वर्ष थी और और कंगारू कोर्ट  के फैसले के अनुसार समुदाय के 13 लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया | उस लड़की का दोष सिर्फ इतना था कि उसने अपने समुदाय के बाहर के एक लड़के से प्यार कर बैठी थी और उसे अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी |

यह बात उसके समुदाय  को पसंद नहीं थी कि उसके समुदाय की लड़की किसी दुसरे समाज के लड़के के साथ सम्बन्ध स्थापित करे |

गौरतलब है कि  आदिवासी लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद राज्य  में उबाल आ चूका था |

इस घटना की समाज के कोने-कोने से निंदा होने लगी | यह  घटना इतना तुल  पकड़ लिया  कि उसके बाद राज्य के मुखिया को  उस इलाके के पुलिस अधीक्षक को हटाना पड़ा |

चार सदस्यों की एक फोरेंसिक टीम ने सुबलपुर गांव का दौरा किया,  जहां कंगारू अदालत के फैसले के बाद 20 वर्षीय आदिवासी लड़की के साथ  कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसे हर तरह की मेडिकल सुविधा मुहैया कराई गई |

लोगों द्वारा इस घटना के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए सरकार को ऐसी कंगारू अदालतों के विरूद्ध कार्यवाही करने की मांग भी उठी |

महकमे के बड़े नेता और राज्य की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री सभी ने अस्पताल का दौरा किया,  जहां पीड़िता को भर्ती कराया गया था |

सबलोगों ने  सिर्फ सहानुभूति ही प्रकट किया | लेकिन  इतने दिनों से  चली आ रही इस प्रथा को कैसे रोका जाए, इसपर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका |

सबसे बड़ी बात कि पुलिस प्रशासन के होते हुए भी इस तरह  की घटना को अंजाम दिया जाता है |

जरा सोचें कि उस लड़की पर क्या गुज़रती होगी जो अपने ही समुदाय के लोग उसके साथ फरमान जारी कर बिना किसी भय के उसके साथ सामूहिक बलात्कार जैसे घिनौनी घटना को अंजाम देते है | वो लड़की तो संयोग से बच गई लेकिन क्या वह सारी ज़िन्दगी सामान्य जीवन जी पाएगी ?

यह घटना  उसके दिलो-दिमाग में हमेशा टीस  बनकर उभरती रहेगी और ज़िन्दगी भर मानसिक रूप से वह परेशान रहेगी |

लेकिन यह एक अच्छी बात हुई कि लड़की की जान किसी तरह बच गई |

 इस हंगामे के बीच  कंगारू अदालत के आदेश पर सामूहिक दुष्कर्म के आरोपित 13 लोगो को,  एक जिला अदालत ने दोषी पाया और आईपीसी की धारा (376 (डी) के तहत   उन्हें 20 साल के कारावास की सजा सुनाई |

लड़की काफी सदमे में थी | उसकी मानसिक स्थिति को सभी लोग  भली – भांति समझ समझ रहे थे |

उसने  सदमे की हालत में उस गाँव में वापस जाने से इनकार कर दिया |  तब सरकार द्वारा एक  सरकारी आवास की व्यवस्था की गई  जहाँ उसे लाया गया | यह आवास जो उसके गाँव से ४० किलोमीटर दूर थी |

वह वहाँ रह तो रही थी लेकिन  काम धंधा नहीं रहने के कारण खाने के लाले पड़ गए | उसके घर में बूढ़े माता – पिता थे,  जिसकी जिम्मेवारी भी उसी पर थी |

एक तो सदमे में बीत रहा जीवन और घर में गरीबी | तभी किसी शुभचिंतक के कहने पर वह  दिल्ली में नौकरी पाने के लिए चली गई |

वह पढ़ी लिखी तो थी नहीं,  इसलिए एक  दम्पति के यहाँ घर देख रेख करने  की नौकरी मिल गई | घर के लोग बहुत अच्छे स्वभाव के थे और उसे अच्छी पगार के अलावा बहुत प्यार से रखते थे |

वह वहाँ रहते हुए धीरे धीरे सदमे से उबर रही थी | उसने सोचा अब  उसके  बुरे दिन समाप्त हो गए है क्योंकि  अब उसके कमाई  पैसो से सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था |

लेकिन कहते है न कि मुसीबत आसानी से पीछा नहीं छोडती है | अचानक उसके पिता कि तबियत बहुत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती  कराना  पड़ा |

ऐसे में वह दिल्ली की नौकरी छोड़ कर वापस अपने माँ बाप के पास आ गई | और उनकी देख भाल में लग गई | कुछ दिन तो ठीक चला लेकिन घर में बैठने से उसकी सारी जमा पूंजी समाप्त हो गई |

अब उसे  फिर काम  की तलाश थी | किसी ने उसे दैनिक मजदूरी पर रख लिया  | वहाँ भवन निर्माण का काम चल रहा था | वह वहाँ नौकरी करते हुए घर और अपने माँ बाप की भी देख भाल  कर रही थी |

अब एक सवाल हमेशा से खड़ा है कि हमारे समाज में ऐसा होता क्यों है ?

कहीं यह हमारे समाज की पुरुषवादी मानसिकता और सोच का परिणाम तो नहीं है |

हमारे पुरुष  प्रधान समाज और इसकी परम्पराएँ सदियों से नारी को एक भोग और इस्तेमाल की वस्तु समझती आयी है और उसका समाज में दोयम दर्जे का स्थान रहा है |

आज जब कि  हमारा समाज इतना पढ़ा लिखा और तरक्की कर रहा है फिर भी हम उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए है |

यही कारण है कि आज भी हमारे समाज में इस तरह की घटनाएँ होती रहती है |

आज ज़रुरत है तो अपनी सोच बदलने की |

आइये सर्वप्रथम हम अपनी  सोच को बदले | हम बदलेगें तो समाज भी बदलेगा |

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9 replies

  1. सही बात है, देश के कई हिस्से में ऐसीं सामाजिक न्याय की रचना है लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं लिया जाता है। यह नजरअंदाजी काफी धातक है।

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    • बिलकुल सही कहा आपने / ऐसे कुरीतियों को रोकना ज़रूरी है /
      आपके विचार के लिए धन्यवाद..

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  2. Uprooting the tradition is very difficult. India is a multicolored country. Therefore intellectuals suggest uniform civil code.Nicely briefed the Kangaroo Adalat.

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  3. My deepest sympathy and blessings to the young girl and all the others whom such terrible acts of violence still affect…

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  4. Kangaroo courts are functioning because people have lost faith in the police and the real law courts have failed to deliver justice. These courts are giving quick and fast justice with harmful consequences. Improve the criminal justice system and deal sternly with these kangaroo courts.

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    • Yes sir,
      that is the main reason that kangaroo courts and
      other illegal court are still function openly without fear..
      justice delayed is justice denied..
      Thanks for sharing your views and indicating
      root cause of problems in our society..

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  5. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Good afternoon friends,
    This is also true..

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