# भीष्म – प्रतिज्ञा #

भावनाएं ही तो है ….जो दूर रह कर अपनों की
नजदीकियों का एहसास कराती है , वरना
दुरी तो दोनों आँखों के बिच भी है …||

vermavkv's avatarRetiredकलम

यह बात बिलकुल सत्य है कि अगर उलझे रिश्तों की गांठे खुल सकती हो, तो उन रिश्तो के धागों पर कैची नहीं चलाते , वर्ना पछताने के सिवा और कुछ नहीं हासिल होगा |

महाभारत का वो युद्ध, जिसमे कौरवो के तरफ से भीष्म पितामह युद्ध का संचालन कर रहे थे और पांडवो के तरफ से भगवान श्री कृष्ण स्वम् उनका साथ दे रहे थे |

जब अर्जुन का बाण चलता था तो कौरव की सेना में हाहाकार मच जाता था , और रोज़ शाम में जब युद्ध समाप्त होता था तो सब योद्धा अपने अपने शिविरों में लौट आते थे |

पितामह भीष्म भी जब अपने शिविर में वापस पहुँचते थे तो वहाँ दुर्योधन उन पर आरोप लगाने को तैयार बैठा रहता था | वो पितामह से शिकायत भरी लफ्जों में कहा…..भीष्म पितामह, आप अपनी क्षमता के अनुरूप युद्ध नहीं लड़ रहे है |

ऐसा लगता है कि हमारी…

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  1. Very nice

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