# महाभारत की बातें #..6

परशुराम –  हनुमान युद्ध

दोस्तों,

हमने महाभारत और रामायण के कुछ पात्रो  के बारे में एक एक कर अपने ब्लॉग के माध्यम से चर्चा की है | पिछले ब्लॉग में मैंने भगवान् परशुराम से जुडी कुछ घटनाओं की चर्चा की थी |

आज एक और रोचक घटना की चर्चा करना चाहता हूँ |

ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्रार्जुन की मति मारी गई थी। सहस्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक अपने आश्रम से ले गया।

जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान की  खातिर उन्होंने कामधेनु गाय वापस लाने की सोची | इसके लिए सहस्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया । युद्ध में सहस्रार्जुन की सभी भुजाएँ कट गईं और वह मारा गया।

तब सहस्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ  रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं।

इस घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- ” मैं  सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूँगा”।

उसके बाद उन्होंने  सारे क्षत्रियों से 21 बार युद्ध किया और हर बार उन्हें समाप्त किया |

लेकिन वे गर्भवती महिलाओं पर हाथ नहीं उठाते थे , इसलिए फिर से क्षत्रिय लोग पैदा हो जाते थे और इस तरह उन्हें बार बार उसका नाश करना पड़ता था |

Lord Parashurama kills the sinful kings of the world

 परशुराम द्वारा निर्दोष  क्षत्रियो का संहार किये जाने की परिस्थिति में हनुमान जी को उनके सामने आना पड़ा |

यह त्रेता युग का एक भयानक  युद्ध था | यह युद्ध कैसे हुआ और  क्यों हुआ इसके बारे में  विस्तृत रूप से चर्चा की जाएगीं |

ऐसा कहा जाता है कि परशुराम पृथ्वी के सभी क्षत्रियों का सफाया कर ने बाद , अपने गुस्सा को शांत करने के लिए वे महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए |

परशुराम के प्रकोप से बच कर कुछ क्षत्रियो ने  पहाड़ों और  गुफाओ में छुप गए थे | परसुराम जी के जाने के बाद फिर से क्षत्रियो  लोग आये और अपने राज्यों को फिर से स्थापित किया |

कुछ समय पश्चात्  परशुराम फिर वापस आये और सारे क्षत्रियो का वद्ध कर  दिया |  इस तरह वे २० बार क्षेत्रियों का नाश कर चुके थे और २१ वीं बार नाश करने निकले थे |

इसी काल में महाबली हनुमान अपने गुरु सूर्यदेव से सारी शिक्षा और दिव्य शक्ति प्राप्त कर पृथ्वी पर आये थे | जब परशुराम जी ने पृथ्वी से क्षत्रियो का नाश आरंभ कर  दिया तो सारे क्षत्रियो ने छुपने के लिए पहाड़ों  और गुफाओं की ओर भागने लगे | तभी वहाँ कुछ क्षत्रियो की भेंट हनुमान जी से हुई |

हनुमान जी ने उन्हें इस तरह भागने और छुपने का कारण पूछा  |  इस पर उनलोगों ने अपनी सारी परेशानी बताई |

तब हनुमान जी ने सोचा कि किसी एक राजा  की गलती का प्रतिशोध पूरी क्षत्रिय जाति से लेना उचित नहीं है क्योकि इस कारण  उनके पत्नी और बच्चो का जीवन नरक बनता जा रहा है | यह तो पुर्णतः अमानवीयता  है | इसे मुझे रोकना पड़ेगा |

ऐसा सोच कर हनुमान एक बड़ा पहाड़ उठाकर आकाश मार्ग से युद्ध क्षेत्र में चले गये और दोनों के बीच  पहाड़ रख दिया | इसके कारण युद्ध कुछ समय के लिए रुक गया |

यह देख कर परशुराम ने हनुमान से कहा ..हे वानर , इस सारे  संसार में ऐसा कोई नहीं जो मुझसे टकराने का सहस कर सके |

लेकिन, तुम कौन हो वानर ?  

तब हनुमान ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ कर उनसे कहा.. ऋषि श्रेष्ठ , यह प्रश्न नहीं है कि मैं कौन हूँ | लेकिन बात यह है कि आप जैसे शास्त्रों के ज्ञाता, युद्ध में निपुण योद्धा , जिन्हें स्वम महादेव की कृपा प्राप्त है , वह परशुराम  अन्यायी और  अधर्मी कैसे हो सकता है ?

यह सुन कर परशुराम  क्रोधित हो गए और हनुमान जी से कहा .. .देखो वानर, मुझे तुमसे कोई शत्रुता नहीं है |  इसलिए तुम मेरे मार्ग से हट जाओ, यह मेरे पिता की हत्या का प्रतिशोध है |

इस पर हनुमान जी ने कहा .. हे ऋषि श्रेष्ठ , आप का तो इन निर्दोष क्षत्रियो से भी कोई बैर नहीं है | आप जिसे प्रतिशोध  कह रहे है वह तो अधर्म है |

एक क्षत्रिय की गलती की सजा पुरे निर्दोष क्षत्रियो जाति  से क्यों ले रहे है ?

यह ठीक  नहीं है | आप अपनी प्रतिज्ञा को वापस लीजिये, तभी यहाँ से जाने दूंगा |

यह सुनकर  परशुराम बहुत क्रोधित हो गए | उन्होंने हनुमान जी से कहा .. .हे वानर ! जब तक  पृथ्वी से  समस्त क्षत्रियो का विनाश नहीं हो जाता , तब तक मेरा यह फरसा  चलता रह्रेगा |

अगर तुम मुझे रोकना चाहते हो तो मुझसे युद्ध करो | ऐसा कह कर हनुमान जी से युद्ध शुरू कर दिया |

अपने  अस्त्र शस्त्र से एक दुसरे पर प्रहार करने लगे |

हनुमान जी की गदा और परशराम के फरसे टकराने से पुरे पृथ्वी पर  कम्पन होने लगी |

तभी हनुमान जी ने अपनी गदा से उनके सिर पर प्रहार किया |  इस कारण धरती फट गयी और परशुराम सीधे जाकर पाताल में गिर पड़े  | हनुमान भी उनके पीछे पीछे पाताल में  चले गए |  वहाँ पर फिर से युद्ध आरंभ हो गया |

परशुराम  बहुत क्रोधित  हो कर युद्ध कर रहे थे | हनुमान जी समझ गए कि इस हालत में वे परशुराम को समझा नहीं पाएंगे |

इसलिए हनुमान जी पाताल में उन्हें छोड़ कर वापस धरती पर आ  गए |

लेकिन पीछे पीछे परशुराम भी आ गए और फिर  युद्ध चलता रहा |

लाचार होकर हनुमान जी ने पहले परशुराम के पैर छू कर प्रणाम किए  और फिर उन्हें  जोर से असमान की ओर फेक दिया | फिर  हनुमान आकाश में जाकर उन पर जोड़ से प्रहार किया | जिससे परशुराम जमीन  पर गिर कर मूर्छित हो गए |

वे मूर्छित अवस्था में भी क्षेत्रियों की मारने की ही बात कह रहे थे |

यह देख कर हनुमान जी ने सोचा …. परशुराम क्रोध की ऐसी स्थिति में अपने विवेक खो चुके है |  उन्हें तो अब मृत्यु का भी भय नहीं है | ऐसे व्यक्ति को सही मार्ग पर लाना असंभव है |

लेकिन इनकी यह दशा कैसे हुई , इसका पता लगाने के लिए वे अपने  ध्यान चक्षु का प्रयोग किया तभी परशराम जी के पूर्ण जीवन का ज्ञान हुआ |

हनुमान जी समझ गए कि पिता और माता के दुखद मृत्यु  के पश्चात् आज तक उनके आँख से आँसू नहीं बहे | इसलिए उनके गुस्से को शांत करने के लिए उनके आँख से आँसू बहना ज़रूरी है ताकि उनके अन्दर का दुःख बाहर आ सके  |

ऐसा सोच कर उन्होंने अपनी लीला आरंभ किया | वे अपने ध्यान में बैठ गए और अपने शुक्ष्म शरीर  के साथ मृत्यु लोक में आ गए |

इस प्रकार हनुमान जी  उनके पितरों के पास पहुँच गए |  माता रेणुका और पिता जमदग्नि से मुलाकात हुई | ‘

जमदग्नि ने हनुमान जी से कहा … .हे हनुमान, .मेरे पुत्र के  अत्याचार के कारण मुझे मृत्यु लोक में  आत्मा को शांति नहीं मिल रही है | जब तक वह गलत आचरण का त्याग नहीं करता , तब तक मेरी मुक्ति संभव नहीं है | उसने अभी तक पिंड दान भी नहीं किया है |

तब, हनुमान जी ने कहा …. अगर आप स्वयं उन्हें समझये तो वे गलत मार्ग को छोड़ देंगे और आप की मुक्ति भी हो जाएगी |

ऋषि जमदग्नि ने हनुमान जी की बात को मान  कर  वे दोनों अपने सूक्ष्म शरीर के साथ धरती पर परशुराम के पास आये |

परशुराम को उन्होंने मूर्छित अवस्था से उठाया और कहा… हे पुत्र , तुम अपनी प्रतिज्ञा का पूर्ण रूप से पालन कर रहे हो | तुम्हारे पराक्रम का सभी लोगों ने लोहा मान  लिया है |

लेकिन तुम्हारे निर्दोष लोगों की हत्या करने के कारण और पिंड दान नहीं करने के कारण मुझे मुक्ति नहीं मिल रही है | इतना कह कर वे लोग अंतर्ध्यान हो गए |

अपने माता पिता की यह बात सुन कर  परशुराम जी को बड़ा ही पश्चाताप हुआ | और उनके आँखों से आँसू निकलने लगे | उन्होंने सोचा कि मेरे कारण ही उनलोगों को मुक्ति नहीं मिल रही है  |

उसी समय हनुमान जी प्रकट हो गए | .. तब परशुराम को  भान हुआ कि यह  कोई साधारण वानर नहीं है |

उन्होंने हाथ जोड़ कर हनुमान जी से कहा … आप कौन है ? अपना परिचय दीजिये प्रभु |

हनुमान जी ने कहा …हे पुत्र परशुराम, ! मैं वही  हूँ जो आपके मन में बसता है | इतना कह कर वे अपने शिव रूप का दर्शन दिए |

तब  परशुराम हाथ जोड़ कर कहा . .हे प्रभु., अब मैं अपने माता पिता और मेरे द्वारा मारे गए सभी क्षत्रियों का पिंड दान  करना चाहता हूँ |

लेकिन मेरे नरसंहार के कारण सारे  जलाशय दूषित हो चुके है | कृपया आप इन्हें शुद्ध जल में बदल दें |

तब भगवान् शिव ने तथास्तु कहा और इस तरह जलाशय में शुद्ध पानी का प्रवाह होने लगा |

अंत में परशुराम  ने सारे लोगों का पिंड दान कर उन्हें मुक्ति की राह दिखाई | और खुद भी किसी  निर्दोष पर शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली  |

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9 replies

  1. Parasuram and Hanuman coflict. Nice.

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  2. कहानी का सुंदर लेखन से प्रस्तुति 👌🏼👌🏼👏👏😊

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