

महाभारत का एकलव्य
दोस्तों,
इन दिनों कोरोना का कहर ऐसा बरपा रहा है कि हमलोग लॉक डाउन के तहत घरों में बंद है |
रोज कुछ ना कुछ अप्रिय घटना सुनने को मिल रही है | ज़िन्दगी क्या है, बस डर – डर कर जी रहे है |
रोज सुबह उठ कर भगवान् को धन्यवाद करते है कि चलो अभी तक सब ठीक -ठाक है | कल का कोई भरोसा नहीं |
बच्चो का तो घर में बंद रहने के कारण बहुत बुरा हाल है | ना स्कूल जाना और ना अपने दोस्तों के साथ खेलना | मानसिक स्तर पर उसका बहुत बुरा हाल हैं |
हमें तरह- तरह की बातें सुनने को मिल रही है .. आज कल कोरोना के भय के कारण घरों में खाना बनाने वाली और घर सफाई करने वाली बाई का घर में प्रवेश बंद है | इसलिए कोई अच्छी अच्छी भोजन बनाकर अपनी पत्नी को खुश कर रहा है तो दूसरी तरफ कोई तनाव के कारण अपनी पत्नी को ही पीट रहा है |
…इन्हीं सब घटनाओं के मध्य नज़र हमने सोचा कि हमारे मनोरंजन के लिए, खास कर बच्चों के मनोरंजन के लिए पौराणिक धारावाहिक महाभारत से कुछ प्रसंग को ब्लॉग के माध्यम से शेयर करूँ | इससे घर में बंद बच्चे और बूढ़ों को मनोरंजन के साथ साथ शिक्षाप्रद बातें भी सिखने को मिलेगी |
महाभारत का युद्ध द्वापर युग में लड़ा गया। था | महर्षि वेदव्यास ने इस पूरी घटना को संस्कृत महाकाव्य का रूप दिया है । इस महाकाव्य में कई प्रेरणादायक कहानियाँ शामिल हैं। ये कहानियां बच्चों को धर्म और कर्म का पालन करना सिखाती हैं ।
महाभारत की कथा में बहुत से महान पात्र हैं, जिनसे बच्चों का मार्गदर्शन हो सकता है । वीर अर्जुन, भगवान श्री कृष्ण, धर्मराज युधिष्ठर, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, दानवीर कर्ण और महात्मा विदुर ऐसे ही कुछ चरित्र हैं। सिर्फ इतना ही नहीं ऐसी कई घटनाएं महाभारत कथा का हिस्सा हैं, जो कुछ न कुछ शिक्षा जरूर देती हैं ।

हम ऐसे ही एक पात्र और घटनाओं का जिक्र अपने ब्लॉग के माध्यम से करने जा रहे है | उस पात्र का नाम है एकलव्य |
यह महाभारत काल की बात है, जब भारत के एक जंगल में एकलव्य नाम का एक सुशील बालक अपने माता-पिता के साथ रहता था।
वह बहुत ही अनुशासित बालक था | उसके माता-पिता उसकी परवरिश अच्छे संस्कारों के साथ कर रहे थे । एकलव्य की धनुर्विद्या में बहुत रुचि थी, लेकिन जंगल में इसके लिए साधन उपलब्ध नहीं थे।
इसलिए वह गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहता था। वह मन ही मन द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान चूका था |
इधर गुरु द्रोणाचार्य उन दिनों राजकुमारों अर्थात पांडव और कौरवों को धनुर्विद्या सिखा रहे थे और उन्होंने भीष्म पितामह को वचन दिया था कि वह इन राजकुमारों के अलावा किसी को भी धनुर्विद्या का ज्ञान नहीं देंगे ।
जब एकलव्य अपना निवेदन लेकर गुरु द्रोणाचार्य के पास आया, तो उन्होंने उसे अपनी विवशता बताकर धनुर्विद्या का ज्ञान देने से मना कर दिया ।
उनके मना करने पर एकलव्य बहुत दुखी हुआ | लेकिन उसने तो पहले से ही उन्हें गुरु मान चूका था | वह हिम्मत नहीं हारा बल्कि उसने प्रण लिया कि वह द्रोणाचार्य को ही अपना गुरु बनाएगा।
शारीरिक रूप से गुरु द्रोणाचार्य की अनुपस्थिति के चलते उसने मिट्टी की उनकी एक मूर्ति बनाई और एक जगह विराजमान कर दिया |
उस मूर्ति के सामने रोज उसने तीर कमान चलाने का अभ्यास करने लगा । देखते ही देखते कुछ ही दिनों में वह एक उम्दा धनुर्धारी बन गया।

एक दिन की बात है, गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों के साथ धनुर्विद्या का अभ्यास करने जंगल की ओर आ रहे थे | उनके साथ एक कुत्ता भी था। उसी समय एकलव्य भी उसी जंगल में धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था।
ऐसे में जब कुत्ते को जंगल के उस ओर से आवाज आई, तो वह उस ओर जाकर जोर जोर से भौकनें लगा, जिससे एकलव्य की एकाग्रता भंग होने लगी ।
इस वजह से कुत्ते को चुप करवाने के लिए एकलव्य ने उसके मुंह में कुछ इस प्रकार बाण चलाए कि उसका भौंकना भी बंद हो गया और उसे कोई चोट भी नहीं आई। कुत्ता वापस द्रोणाचार्य के पास भाग कर आ गया |
जब गुरु द्रोणाचार्य ने कुत्ते को देखा को उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि कैसे बिना मुँह को घायल किये वाणों से उसके मुँह को बंद कर दिया था |
उन्होंने सोचा कि इतना अच्छा धनुर्धारी कौन है, जिसे धनुष बाण की ऐसी विद्या आती है। वे जिज्ञासा वश चल कर उस जगह पर पहुँचे और देखा कि उनके सामने हाथ में धनुष लिए एकलव्य खड़ा था। अपने गुरु को देखकर एकलव्य ने उन्हें प्रणाम किया।

द्रोणाचार्य ने उससे पूछा कि उसने यह विद्या किससे सीखी ?
एकलव्य ने बताया कि वह किस प्रकार उनकी मूर्ति के सामने प्रतिदिन अभ्यास करता है। यह सुनकर द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित हुए।
दरअसल, गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को वचन दिया था कि उससे बेहतर धनुर्धारी कोई नहीं होगा, लेकिन एकलव्य की विद्या उनके इस वचन में बाधा बन रही थी।
ऐसे में उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने एकलव्य से कहा, “वत्स, तुमने मेरी मिटटी की प्रतिमा बना कर मुझसे शिक्षा तो ले ली, लेकिन मुझे गुरु दक्षिणा तो अभी तक नहीं दी है।” “आदेश करें गुरुवर। आपको दक्षिणा में क्या चाहिए….. एकलव्य ने कहा।
एकलव्य की बात का जवाब देते हुए द्रोणाचार्य ने कहा कि गुरु दक्षिणा में मुझे तुम्हारे दाहिने हाथ का अंगूठा चाहिए।

यह सुन कर, एकलव्य ने तुरंत अपनी कृपाण निकाली और अपना दाहिना हाथ का अंगूठा काट कर गुरु द्रोणाचार्य के चरणों में रख दिया।
इस घटना की वजह से एकलव्य का नाम एक आदर्श शिष्य के रूप में आज भी याद किया जाता है।
कहानी से सीख
वीर एकलव्य की कहानी से हमें बहुत बड़ी शिक्षा मिलती है और वह यह कि अगर हम अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं, तो उसे हासिल करने के बीच में आने वाली कोई भी बाधा अहमियत नहीं रखती है |
हम भी कोरोना को हराने के प्रति कटिबद्ध है और हर विपरीत परिस्थितियों को पार कर यह जंग जीत लेंगे , ऐसा मेरा विश्वास है |
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Here Student is great. He has practised in the name of a person who never tought him.Todays example of corrospence course.Even online course teacher is involved. Ok .Nice.
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True sir,
you have presented the beautiful example of correspondence study..
Thank you very much..
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Though it appears that Dronacharya had done injustice to Eklavya, actually Dronacharya uplifted Eklavlya from just being a student to becoming a epitome of discipleship. So when people think of devotion they think of Eklavya and not Arjuna.
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You are absolutely right, sir ..
you have really deep knowledge of Mahabharata and Ramayana..
Stay connected and stay safe
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प्रेम वो चीज़ है ..जो इंसान को कभी मुरझाने नहीं देता , और
नफरत वो चीज़ है ,,,जो इंसान को कभी खिलने नहीं देता…
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