# सागर किनारे एक शाम #

कभी कभी हमारे जीवन में ऐसे पल भी आते है जब हम टुकडो में जी रहे होते है, दिशाहीन और बिना लक्ष्य की  ज़िन्दगी | ऐसा लगता है कि खुद के ऊपर कोई नियंत्रण ही नहीं है | हमारे अन्दर नकारात्मक विचारों का समावेश हो चूका है |

जिसे कभी हम बहुत प्यार करते थे उसकी सूरत से भी नफरत हो जाती है | अचानक जिंदगी गहरी खाई में डूबती नज़र आती है |

एक समय मैं भी ऐसी ही मनःस्थिति से गुज़र रहा था, तभी मुझे  puri sea beach पर जाने का मौका मिला |

दरअसल उन दिनों मेरी पोस्टिंग Cuttack  शाखा में थी और ब्रांच की ऑडिट करने हेतु ऑडिटर साहब आये हुए थे | मैं व्यक्तिगत समस्याओं से परेशान रहने के बाबजूद , किसी तरह उनको भी झेल रहा था |

शाखा में आये हुए ऑडिटर हमारे मेहमान होते है इसलिए उनके हर इच्छा का ख्याल रखना होता था |

मैं  मानसिक रूप से परेशानी से गुज़र रहा था | शायद ऑडिटर साहब को भी मेरे चेहरे की  परेशानी दिख गयी  थी |

ऑडिट का काम करीब करीब समाप्त हो चूका था तभी उन्होंने  पूरी मंदिर (जगन्नाथ दर्शन) देखने की इच्छा प्रकट की | उनको मना  करने का तो सवाल ही नहीं था और फिर  मैं भी थोडा मन को आराम देने के ख्याल से उनके साथ जाने को तैयार हो गया .|

उनको शाखा में ही लंच कराया और फिर हमलोग पूरी दर्शन के लिए रवाना हो गए | उनके पास  24 घंटे थे जिसे वे अपने मन के अनुसार खर्च कर सकते थे |

मैंने वहाँ पहुँच कर एक होटल में चेक इन किया | शाम का वक़्त था और  मौसम भी सुहाना था | ना ज्यादा गर्मी और ना ज्यादा ठंडी,  बहुत  सुकून देने वाला मौसम था |

ऑडिटर साहब नहा धोकर फ्रेश हो लिए थे | मैं जब उनके रूम में पहुँचा तो उन्होंने बियर पिने की इच्छा जताई | मुझे उनके कहे अनुसार इंतज़ाम करना पड़ा |

 लेकिन उनकी पार्टी में मैं शरीक नहीं हुआ | वैसे लोग कहते है कि दारु पिने से मानसिक तनाव कम हो जाती है , लेकिन गुरुवार दिन होने के कारण  मुझे यह सब वर्जित था |

इसलिए उनको खुद से एन्जॉय करने के लिए उनके कमरे में छोड़ दिया और मैं होटल से बाहर निकला |

सामने ही sea beach था | मैं  sea beach की ओर चल पड़ा | वहाँ रेत  पर बैठते ही मुझमे एक  नयी उर्जा का संचार हुआ  | मैं कुछ समय के लिए भूल गया कि मैं मानसिक रूप से पर्रेशान हूँ |

वह क्षण मेरे लिए विशेष थे , जगह नया, नज़ारा नया , मूड भी बदला ..ऐसा क्यों..?

  • मैं sea beach के किनारे टहलते हुए डूबता हुए  सूरज को देख रहा था ..ऐसा लग रहा था कि  वह धीरे धीरे  समुद्र के आगोश में समां रहा हो  …उसे देखते हुए मेरे मन को बहुत शांति मिल रही थी…..अब मैं खुद को अच्छा महसूस कर रहा था | 

    मैं उस समुद्र के किनारे  रेत  पर बैठ कर डूबते सूरज की लालिमा की परछाईं जो पानी में उभर रही थी, उसको एक टक  निहारता रहा |
  • मेरे कानो में समुद्र की उठती लहरों की आवाज़ आ रही थी,  मानो जल तरंग बज रहे हो | मैं वही समुद्र के किनारे रेत पर बैठ कर आँखें बंद किये बस सुनता रहा | कभी कभी उन लहरों से छटक कर पानी की कुछ बूंदें मेरे चेहरे को भिगों रहे थे |
  • Beach पर चल रही ठंडी हवा की बयार मेरे शरीर से टकरा कर मेरे मन को रोमांचित कर रहे थे…..एक अजीब शांति महसूस करा रही थी| मैं वहाँ बैठ कर आँखे बंद किये ठंडी ठंडी चलती हवाओं को महसूस कर रहा था |
  • अचानक मेरी नज़र एक कलाकार पर पड़ी…वह पास ही रेत  की सहायता से अपने कारीगरी में खोया हुआ था | कुछ लोग उसके आस पास खड़े थे |और रेत से बनने वाले सुन्दर आकृति को देख कर  उसके तारीफ के पुल बाँध रहे थे | ,,

    लेकिन वह इन सब बातों से बेखबर अपने हुनर को प्रस्तुत करने में एकाग्रचित था | ऐसा लगा जैसे उसकी एक अलग ही दुनिया हो | वह साधारण सा दिखने वाला इंसान, गजब की कारीगरी का नमूना प्रस्तुत  कर रहा था |
  • थोड़ी देर के बाद, मैंने देखा कि कुछ दूर पर बैठा एक व्यक्ति अपनी आँखे बंद किये योगा और ध्यान कर रहा है |  उसे देख कर मेरी भी इच्छा हुई कि मन को  शांत करने के लिए योगा करूँ और ध्यान लगाऊं. |.
    मैं वही रेत पर बैठ कर खुले आसमान के नीचे  योग और ध्यान में आधे घंटे का समय बिताया |

     शुरू में तो  मैं आराम करने का नाटक कर रहा था लेकिन बाद में मुझे वास्तव में बहुत आराम महसूस होने लगा | मेरा  मन प्रसन्नचित हो गया  | सचमुच यह जगह मुझे inspire कर रही थी  |

सागर की लहरों में बहुत शक्ति होती है, जो हमारे  सारे दुःख तकलीफों को थोड़ी देर के लिए ही सही, आप से ले लेती है और फिर यह गीत गुनगुनाती है …..

नदिया चले चले रे धारा  

चंदा चले चले रे तारा

तुझको चलना होगा ..तुझको चलना होगा

  • तभी एक नारियल पानी वाला कुछ आवाजे लगता पास से गुजर रहा था | मैं उसे रोक कर नारियल पानी का आनंद लिया  और अपनी इस हसीन शाम को यादगार बना रहा था  |

समुद्र तट पर आये लोगों के चेहरे पर ख़ुशी और उत्साह देख कर अच्छा लग रहा था | सब लोग मिलकर मस्ती कर रहे थे और उनको देख कर मुझे भी जोश आ गया |

मैं वहाँ पर चल रहे वाटर बोट  पर बैठ कर समुद्री सैर का मजा लेने लगा | अब मेरा मन बिलकुल बदल चूका था और मैं भी जोश से भर गया था |

वहाँ पर घूम रहे एक फोटो ग्राफर को बुलाया और अपनी तस्वीर खींचने को कहा | मैं बहुत मस्ती करने के मूड में था लेकिन तभी ऑडिटर साहब का फ़ोन आ गया और मुझे ना चाहते हुए भी उस जगह से जाना पड़ा | इस तरह सागर किनारे की एक शाम को कैमरे में कैद कर वापस होटल आ गया |

आगे की कहानी अब क्या बताऊँ दोस्तों… ..ऑडिटर साहब ने अपनी कसम दे दी |  डिनर के पहले फिर दारु का दौड़ शुरू हुआ और इस बार मुझे भी शामिल होना पड़ा |

जब पीने लगा तो उनके निर्देश का पालन करना पड़ा ..नतीजा यह हुआ कि मैं अपने रूम में आते ही मुझे Wash Room जाना  पड़ा | और फिर इतनी उल्टियाँ हुई कि मुझे होश ही नहीं रहा कि कब मेरी आँख लग गयी…|

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Categories: मेरे संस्मरण

9 replies

  1. Nice writing on Puri sea beach.

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  2. Are people always way of auditors? I mean getting stressed.

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  3. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है,
    और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है ,
    इसलिए जीवन की हर स्थिति में धैर्य
    बनाये रखना ही श्रेष्ठता है …

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