बिहार का गौरव .. नालंदा विश्वविद्यालय

दोस्तों,

विहार दिवस के अवसर पर हमने बिहार से जुड़ीं जानकारियाँ ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुँचाने का निश्चय किया है और उसी  कड़ी में आज का यह ब्लॉग है ..

नालंदा विश्वविद्यालय उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था |  यह दुनिया का सबसे पुराने विश्व विद्यालयों में से एक था  |

  • इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने की थी | इस विश्वविद्यालय को बनाने का उद्देश्य ध्यान और आध्यात्म के लिए एक स्थान को विकसित करने और उसे फिर शिक्षा  के केंद्र के रूप में स्थापित करना था…
    और इस स्थान का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि गौतम बुद्ध अपने जीवन काल में कई बार यहां आए और ठहरे भी थे |
  • नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी 9 मंजिल की थी और इसके तीन भाग थे:… रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर. |
  • इस विश्वविद्यालय में  हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद,  नागार्जुन  आदि कई अन्य विद्वानों ने पढ़ाई की थी |.
  • उस समय यहां  लिटरेचर , एस्ट्रोलॉजी,  साइकोलॉजी,  लॉ,  एस्ट्रोनॉमी,  साइंस,  वारफेयर, इतिहास, मैथ्स,  आर्किटेक्टर,  भाषा विज्ञानं,  इकोनॉमिक,  मेडिसिन  आदि कई विषय पढ़ाएं जाते थे |.
  • सबसे ख़ास बात इस विश्वविद्यालय की यह थी कि कोई भी फैसला सबकी सहमती से लिया जाता था यानी अध्यापकों के साथ छात्र भी अपनी राय  देते थे…. यानी, यहां पर लोकतांत्रिक प्रणाली थी |
  • नालंदा  एक प्रशंसित महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (आधुनिक बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था।
    यह जगह  बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है, और पांचवीं शताब्दी सीई से 1200 सीई तक सीखने का केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है ।
  • यह  विश्व का  पहला प्राचीन  पूर्णत: आवासीय विश्वविद्यालय था और उस समय इसमें तकरीबन  10,000  विद्यार्थी और लगभग  2,000 अध्यापक थे |
  • इसमें शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थी भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी आते थे.|
  • अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्व विद्यालय  स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था।  
    इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था । उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतारें थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप थे। जिसमे  बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं।
  • वहाँ  विश्व विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे।
    अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे।

    कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे।
    प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी।

प्रवेश के नियम

प्रवेश के नियम कठिन थे। विश्‍वविद्यालय में प्रवेश-द्वार पर बैठे हुए द्वारपाल जो विद्वान हुआ करते थे … वे  विश्‍वविद्यालय में प्रवेश के लिए इच्‍छुक छात्रों की परीक्षा लेते थे ।

जो छात्र उनके  द्वारा ली गई परीक्षा में पास हो जाते थे, उन्‍हें ही विश्‍वविद्यालय में प्रवेश मिल जाता था। शेष को अपने घर लौटना पड़ता था।

प्रवेश परीक्षा अत्‍यंत कठिन होती थी, प्रवेश के लिए आए हुए छात्रों में से केवल 10 फीसदी छात्र ही सफल हो पाते थे। उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे।

 उन्हें विद्यालय के अन्दर प्रवेश मिलने के बाद उनका  सारा पढाई लिखाई,  खान पान, और रहने का कोई खर्च नहीं देना पड़ता था |

विश्वविद्यालय का प्रबंधन

समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे।

कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथम समिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्य देखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख-भाल करती थी।

विश्वविद्यालय को दान में मिले दो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय की देख-रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था।

नालंदा विश्वविद्यालय का पतन कैसे और कब हुआ  

इस विश्विद्लाया का पतन बख्तियार खिलजी के  समय में हुआ |

इससे पहले भी दो बार इसे नष्ट करने की कोशिश की गई थी ..लेकिन कुछ समय के अंतराल में ही इसे पुनर्निर्मित कर लिया गया था |

लेकिन तीसरा और सबसे विनाशकारी हमला 1193  में तुर्क सेनापति इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और उसकी सेना ने किया था | और इस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था,| उसके बाद इसका पुनर्निर्माण नहीं किया जा सका |

ऐसा माना जाता है धार्मिक ग्रंथों के जलने के कारण भारत में बौद्ध धर्मं जो उस समय मुख्य धर्म था, का विनाश हो गया | .

बहुत  सारे बौद्ध या तो मारे गए या जान बचाकर तिब्बत और विश्व के दुसरे इलाकों में पलायन कर गए |.

आखिर बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों नष्ट कर दिया था ?

बख्तियार खिलजी ने बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था |  जब खिलजी  दिल्ली से कलकत्ता  की तरफ कुच  कर रहा था तो बख्तियारपुर में पास प्रवास करने के दौरान उसकी तबियत अचानक खराब हो गयी. |  

उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया मगर वह ठीक नहीं हो सका और वह मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया. |

तभी किसी ने उसको सलाह दी कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र को दिखाए और उनसे इलाज करवाए |

परन्तु खिलजी इसके लिए तैयार नहीं था | उसे अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था  इसलिए  वह यह मानने को तैयार नहीं था कि  भारतीय वैद्य उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान रखते हैं या ज्यादा काबिल हो सकते हैं |

लेकिन कोई और उपाय नहीं सूझ रहा था | इसलिए अपनी जान बचाने के लिए उसको आचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलवाना ही  पड़ा |

बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी और कहां … में तुम्हारे  द्वारा दी गई किसी भी प्रकार की दवा नहीं खाऊंगा  |

 और तुम्हे बिना दवा खिलाये ही मुझे ठीक करना होगा,  वर्ना मैं तुम्हारी जान ले लूँगा |  

वैद्यराज ने कुछ सोच कर उसकी शर्त मान ली और कुछ दिनों के बाद वो खिलजी के पास एक कुरआन लेकर पहुंचे और उनसे कहा … इस कुरआन की पृष्ठ संख्या..  इतने से इतने तक  पढ़ लीजिये, फिर आप ठीक हो जायेंगे |

बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के बताए अनुसार कुरआन को पढ़ा और ठीक हो गया था |.

ऐसा कहा जाता हैं कि राहुल श्रीभद्र ने कुरआन के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था, | उसे पता था कि खिलजी ऊँगली में थूक  लगा कर पन्ने पलटता है |

सचमुच खिलजी थूक के साथ उन पन्नों को पढ़ता गया और ठीक होता चला गया. |

बख्तियार खिलजी इस तथ्य से परेशान रहने लगा कि एक भारतीय विद्वान और शिक्षक को उनके हकीमों से ज्यादा ज्ञान था. | यह उसे कतई बर्दास्त नहीं था |

गुस्से और नफरत के कारण उसने देश से ज्ञान,..  बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की जड़ों को नष्ट करने का फैसला किया |.

परिणाम स्वरूप खिलजी ने नालंदा की महान पुस्तकालय में आग लगवा  दी और लगभग 90 लाख पांडुलिपियों को जला दिया | 

ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि वह तीन महीने तक जलती रहीं |

इसके बाद खिलजी के आदेश पर तुर्की आक्रमणकारियों ने नालंदा के हजारों धार्मिक विद्वानों और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या कर दी |

नालंदा विश्वविद्यालय को मिली नई ज़िंदगी

पांचवी सदी में बने इस विश्वविद्यालय में एशिया के लगभग हर इलाक़े से लोग पढ़ने आते थे. लेकिन 1193 में हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया |.

लेकिन अब 21वी सदी के पहले दशक में कुछ विद्वानों ने इस प्राचीन विश्वविद्यालय की गरिमा को बहाल करने की योजना बनाई |

विद्वानों के इस गुट की अगुवाई  नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफ़ेसर श्री अमर्त्य सेन ने की |

सेन और उनके सहयोगी प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से सटे हुए एक विश्व विख्यात विश्वविद्यालय बनाना चाहते थे …जहां दुनिया भर के छात्र और शिक्षक एक साथ मिलकर ज्ञान अर्जित कर सकें.|

साल 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड जैसे देशों ने मिलकर पुराने नालंदा विश्वविद्यालय को दोबारा शुरू करने की योजना की घोषणा की, जिसका बाद में अमरीका, रूस जैसे देशों ने भी समर्थन किया. |

नए विश्वविद्यालय को राजगीर में बनाया जा रहा है जो प्राचीन विश्वविद्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है. |

वर्तमान में क्लास,  लैब, ,प्रशासनिक भवन व ऑडिटोरियम बनकर तैयार है।  कुछ विषयों की पढाई  भी शुरू  हो चुकी है |

जिस ढंग से नालंदा विश्व विद्यालय का काम चल रहा है,   उससे यह उम्मीद है कि यह विश्व विद्यालय भविष्य में अपनी खोई गरिमा एवं उपलब्धियों को पुनः प्राप्त कर सकेगा….

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31 replies

  1. Very interesting facts about Nalanda University. Thanks.

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  2. Thank you sir, its always wonderful to read historical details about Bihar…very well written.

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  3. बिहार के इतिहास से जुड़ी रोचक व महत्वपूर्ण जानकारी से समबन्धित यह लेख बहुत ही ज्ञानवर्धक है ।
    नालन्दा भारत का गौरव रहा है,
    उसके पुन: स्थापना करने के प्रयास सराहनीय
    है 👌🏼👌🏼😊

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    • जी, बिलकुल सही कहा आपने..
      इसका पुनः स्थापना एक सराहनीय प्रयास है /

      आप के कमेंट्स के लिए बहुत बहुत धन्यवाद …

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  4. Thank you for sharing the pictures!

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