
अंजना सामने दीवार पर टंगे भगवान् की फोटो को सुनी निगाहों से देख रही थी.. मानो वह भगवान् से कह रही .हो ……मैं जानती हूँ प्रभु ..मेरा जीवन कष्टों से भरा है | मैं बहुत ही अभागिन हूँ |
बचपन में मैंने अपने माँ – बाप को खोया और अब जवानी में अपने हमसफ़र को | पता नहीं तुम ने मेरे भाग्य में और कितने दुःख लिखे है |
जब तुम मुझे दुःख दे ही रहे हो तो इसे सहने की हिम्मत भी दो प्रभु | अंजना की आँखों से आँसू बह रहे थे |
दूसरी तरफ, विजय के घर में हंगामा मचा हुआ था | विजय अपने माँ – बाप से साफ़ साफ़ कह दिया कि मैं पंडित की बातों में विश्वास नहीं करता | मैं शादी करूँगा तो सिर्फ अंजना से वर्ना सारी ज़िन्दगी शादी ही नहीं करूँगा |
माँ ने उसे हर तरह से समझाने की कोशिश की | उन्होंने यहाँ तक कहा कि ऐसी शादी का क्या फायदा जब तुम्हारी ज़िन्दगी ही समाप्त हो जाये | फिर भी विजय के ऊपर इन सब बातों का कोई असर नहीं पड़ा |
जब सभी प्रयास विफल हो गए तो अंत में हार कर विजय की माँ ने दुसरे दिन इस समस्या के समाधान के लिए अंजना के घर पहुँच गई |
उन्होंने अंजना की चाची को अपने घर में चल रही विजय की जिद के बारे में बताया |
चाची भी उनकी बातों को सुन कर चिंतित हो गई | तभी उसके खुराफाती दिमाग में एक आईडिया आया | उन्होंने ने विजय की माँ को लेकर अंजना के कमरे में आयी और रोने का नाटक करते हुए उसे विजय की विद्रोह वाली बातों को बताया |
विजय की माँ भी हाथ जोड़ कर अंजना से बोली …मुझे इस मुसीबत से बचा लो बेटी | अगर भगवान् की इच्छा नहीं है तुम दोनों की शादी की तो मैं जान बुझ कर तुम लोगों को कैसे मुसीबत में डालूँ |

अंजना उनकी हाथों को पकड़ कर कहा….आप उम्र और दर्जे में हम से बड़ी है ..आप इस तरह मेरे सामने हाथ मत जोड़े |
मैं तो खुद ही इस घटना से बहुत दुखी हूँ, फिर भी आपलोग हमसे क्या चाहते है ?
इतना सुनना था कि चाची ने बनावटी आँसू बहाते हुए कहा …तुम तो जानती ही हो कि ऐसी शादी से विजय की जान को खतरा है और तुम भी नहीं चाहोगी कि तुम्हारे कारण ये लोग अपने बेटे को खो दें |
इसलिए मैं चाहती हूँ कि तुम विजय को समझाओ और ऐसी स्थिति में अपनी छोटी बहन से शादी करने के लिए उसे राज़ी करो | वह तुम्हारी बात कभी नहीं टालेगा |
आखिर निर्मला भी तो तुम्हारी छोटी बहन है और तुम तो उसे विजय से भी ज्यादा मानती हो |
चाची की इन बातों को सुन कर वह ऐसा महसूस कर रही थी जैसे उसके कानो में कोई पिघला हुआ शीशा डाल रहा हो |
अंजना इस असहनीय पीड़ा को अन्दर ही अन्दर बर्दास्त करने की कोशिश कर रही थी |
थोड़ी देर के बाद अपने को सँभालते हुए अंजना ने कहा …ठीक है, मैं विजय को समझाने की कोशिश करती हूँ | आप लोग निर्मला और विजय की शादी की तैयारी शुरू कर दीजिए |
जुग जुग जिओ बेटी ..विजय की माँ ने अंजना को आशीर्वाद दिया और फिर वहाँ से चली गयी |
अंजना के मन में भी एक द्वंद चल रहा था | वह मन ही मन सोच रही थी कि ज्योतिष ने अगर कहा है तो जान बुझ कर अपने स्वार्थ के लिए विजय की ज़िन्दगी का खतरा नहीं ले सकते है |

मैं तो चाहती हूँ कि वह जहाँ कही भी रहे, खुश रहे, सुखी रहे | इसके लिए मुझे तो कुर्बानी देनी ही होगी और न चाहते हुए भी अंजना ने विजय को फ़ोन लगा दी |
घंटी बजते ही विजय ने तुरंत फ़ोन उठाया और पूछा….अंजना, तुम कैसी हो ?
मैं ठीक हूँ विजय …अंजना के अपने दुःख को छिपाते हुए कहा |
तुमने सुना अंजना ? ,तुम्हारे घर वाले क्या कह रहे है ? मैंने तो अपने घर में साफ़ साफ़ कह दिया है कि … ..
अंजना ने उसकी बात काटते हुए कहा… .तुम आज शाम में कॉफ़ी हाउस आ सकते हो ? वही बैठ कर इस विषय में बात करेंगे |
अंजना अपने मन को किसी तरह समझा लिया था , और अपने को संभालते हुए तय समय पर कॉफ़ी हाउस पहुँच गई |
अंजना गेट पर से ही देखा कि विजय उसी टेबल पर बैठा था जहाँ हम दोनों अक्सर बैठा करते थे | उसे वहाँ इस तरह बैठा देख कर अंजना को बहुत सी पुरानी यादें ताज़ा हो गई |
विजय के चेहरे से लग रहा था कि वह काफी परेशान है | मुझे देखते ही एक फीकी मुस्कान के साथ कहा …हेल्लो, कैसी हो अंजना ?
सामने बैठते हुए अंजना ने कहा…मैं ठीक हूँ विजय |
अंजना के बैठते ही टेबल पर दो कॉफ़ी आ गए | शायद विजय ने पहले से ही आर्डर दे रखा था |
दोनों चुप – चाप कॉफ़ी पी रहे थे लेकिन उन लोगों के चेहरे को देख कर लग रहा था कि उन दोनों के भीतर काफी उथल पुथल मची हुई है |
कुछ देर बाद अंजना ने ही ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा …देखो विजय, सारी बातें हमलोगों के सामने है | ज्योतिषी की बातों में मैं विश्वास करती हूँ |

वैसे भी अपने माता पिता के खोने का जिम्मेवार खुद को ही मानती हूँ और आज तक अपने आप को माफ़ नहीं कर पायी हूँ |
अब मैं अपने स्वार्थ में आ कर तुम्हारे मृत्यु का कारण नहीं बनना चाहती हूँ | भले ही तुम्हारी शादी मेरी छोटी बहन निर्मला से हो जाए |
मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि तुम जिंदा रहो, स्वस्थ रहो, हमारे लिए यही संतोष का विषय है | हम तब भी दोस्त तो रहेंगे ही |
विजय, तुम अपने माता पिता की बात मान जाओ | जिन्होंने तुम्हे जन्म दिया है, उनका तुम पर पूरा अधिकार है | इस बुढ़ापे की उम्र में उन्हें दुःख और परेशानी देने के बजाये सुख और ख़ुशी देनी चाहिए |
अंजना की भावनात्मक बातें सुन कर विजय के आँखों से आँसू बहने लगे | वह अपने आँसू को पोछते हुए कहा …अंजना, तुम्हारा दिल कितना बड़ा है |
सचमुच तुम त्याग की मूर्ति हो | तुम में बड़े से बड़े दुःख को बर्दास्त करने की क्षमता है |
लेकिन मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ | मैं तो इस सदमे को बर्दास्त नहीं कर पाउँगा |
अंजना उसकी ओर देखते हुए प्यार से समझाते हुए कहा ….दोस्ती, प्यार, शादी …ये सभी पवित्र रिश्ते है जिसे हम सब महसूस करते है |
यह ठीक है कि किन्ही कारणों से हमारी शादी नहीं हो पायेगी | इसका मतलब यह थोड़े ही है कि हम जीना ही छोड़ दे | हम एक मकसद लेकर ज़िन्दगी में आगे बढ़ेंगे , वक़्त पड़ने पर एक दुसरे की मदद भी करेंगे |
लेकिन अभी ऐसी उत्पन्न परिस्थिति में तुम्हे जिद नहीं करना चाहिए बल्कि दूसरों की ख़ुशी का भी ख्याल रखना चाहिए |
अंजना की बातों को सुन कर विजय उसकी ओर देखते हुए कहा …अंजना ,तुम्हारे लिए मेरे दिल में बहुत स्नेह और इज्जत है , लेकिन आज की तुम्हारी धर्य पूर्ण बात को सुन कर हमारे मन में तुम्हारे प्रति सम्मान और भी बढ़ गई है |
तुम्हारे बलिदान की भावना को देख कर मैं अभिभूत हूँ क्योकि इन बातों को अपने मुँह से कहने में तुम्हे कितनी पीड़ा हो रही होगी, उसे मैं बस महसूस ही कर पा रहा हूँ |
वैसे भी तुम्हारी कोई बात न मानने का कोई सवाल ही नहीं है | मैं तुमसे आज वादा करता हूँ कि तुम जैसा चाहती हो मैं वैसा ही करूँगा … |
धन्यवाद विजय ….मेरी तुमसे यही अपेक्षा थी , यह कह कर अंजना वहाँ से उठ कर अपने घर की ओर चल दी |
विजय वहाँ बैठा हुआ बस अंजना को जाते हुए देख रहा था…. (क्रमशः )

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