
पापा और मम्मी को होश तो थी लेकिन वे लोग दर्द से छटपटा रहे थे | कांच के टुकड़े उनके चेहरे में धंस गए थे क्योंकि हमारी कार बहुत जोर से चट्टान से टकरा गई थी | वो तो गनीमत थी कि मुझे ज्यादा चोट नहीं आई थी |
मैं अपने मम्मी और पापा को इस तरह तड़पता देख रही थी और अपने को बिलकुल असहाय महसूस कर रही थी | मेरी सिसकियाँ निकल रही थी लेकिन मेरी रोने की आवाज़ सुनने वाला और सहायता करने वाला वहाँ कोई नहीं दिख रहा था |
रास्ता बिलकुल सुनसान था और चारो तरफ धुप अँधेरा भी |
ऐसी स्थिति में मैं डर से थर – थर काँप रही थी | मुझे डर लग रहा था कि कहीं वो बदमाश लोग फिर से ना आ जाएँ |
मैं रोते हुए भगवान् से प्रार्थना कर रही थी …हे भगवान्, मेरे मम्मी – पापा को बचा लो |
तभी मोटर साइकिल पर सवार वो लोग आते दिखे और फिर मेरे कार के पास आकर अपनी गाडी रोक दी |
उनमे से एक व्यक्ति अँधेरे में टॉर्च जला कर हम सब को देखा और फिर अचानक लुट – पाट करने लगा | मम्मी के पहने हुए गहने ले लिए… पापा की घडी और डिकी में रखे हमारे सूटकेस को भी उतार लिया |
उस समय मम्मी को होश आ चूका था | उन्होंने उनलोगों से हाथ जोड़ कर कहा …तुम सभी कुछ रख लो , लेकिन हमलोग को हॉस्पिटल तक पहुँचा दो |
लेकिन वे दोनों तो लुटेरे थे, मम्मी की बात पर ध्यान नहीं दिया और अँधेरे का फायदा उठा कर दोनों सभी सामान लेकर फरार हो गए |
पापा मम्मी के माथे से काफी खून बह रहा था, और मम्मी फिर से बेहोश हो गई |
तभी मुझमे कहाँ से हिम्मत आ गई और मैं कार से बाहर निकल आई | उसी समय सामने से एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया |
मैं दौड़ कर बीच सड़क पर खड़ी हो गई | वह ट्रक मेरे पास आकर रुक गया |

वह हमारी गाड़ी को देख कर समझ गया कि हमारा एक्सीडेंट हो गया है |
वो ट्रक ड्राईवर भला आदमी लगता था | उसने मुझे ट्रक पर बैठने को कहा |
लेकिन मैं फिर डर गई | मैंने सोचा …, कही ये लोग भी तो लुटेरे नहीं है ?
मेरी आँखों में खौफ को देख कर उसने कहा ..तुम घबराओ नहीं बेटी, हमलोग सरदार है,…तुम्हारे माता पिता को ज़रूर बचायेंगे |
और उन्होंने खलासी की मदद से मम्मी –डैडी को ट्रक में बैठाया और फिर हमलोग को लेकर अपनी गाड़ी को तेज़ गति से चलाता हुआ रांची ले आया और पापा मम्मी को हॉस्पिटल तक पहुँचाया |
लेकिन खून ज्यादा बह जाने के कारण दोनों की मृत्यु हो चुकी थी . जैसा कि डॉक्टर ने जांच करने के बाद बताया |
मैं जोर जोर से रोने लगी | समझ में नहीं आ रहा था कि मैं अकेली नन्ही जान अब क्या करुँगी | कुछ ही देर में वहाँ पुलिस आ गई और वह अपने कार्यवाही में लग गई |
तभी उस पुलिस ऑफिसर ने मेरे किसी रिश्तेदार का फ़ोन नंबर याद करने को कहा |
मुझे चाचा के फ़ोन नम्बर याद थे सो मैंने उन्हें बता दिया |
मुझे उनलोगों ने अपने साथ थाने ले गए और मुझे बिस्कुट खाने को दिया | मैं बिस्कुट नहीं खायी …,सिर्फ रोती रही | मेरा रो रो कर बुरा हाल था |
मेरे मम्मी और पापा का पार्थिव शरीर मेरे सामने ही पड़ा था | मैं उन्हें बस देख रही थी और सोच रही थी कि अगर मैं पटना जाने की जिद नहीं करती तो शायद मेरे पापा और मम्मी आज मेरे साथ होते |

इन्ही सब बातों को सोचते हुए मुझे नींद आ गई | मैं बैठे बैठे कुर्सी पर ही सो गई |
जब मेरी आंखे खुली तो देखा ..मेरे पास चाचा जी खड़े है | चाचा को देख कर मैं जोर से उन्हें पकड़ लिया |
उन्होंने मुझे गोद में उठा लिया और फिर मुझे अपनी कार में बैठा कर पटना ले कर आ गए |
मैं पटना आकर बिलकुल खामोश रहने लगी | हमारा हँसना बोलना और धमाल मचाना सब जैसे मैं भूल ही चुकी थी |
मेरे मम्मी – पापा के मरने की वजह मैं खुद को मानती थी | मुझे बार बार अपनी गलती पर पछतावा होता रहता था |
दादा – दादी ज्यादा समय मुझे अपने पास ही रखते थे | इस बीच चाचा जी ने पापा के मरने के बाद इन्श्युरेंस और बैंक में परिवार के नाम से जो पैसे थे उसे प्राप्त करने के लिए काफी दौड़ धुप किया और फिर सब पैसो को अपने नाम से ट्रान्सफर करा लिया, यह कह कर कि मैं ही इसका अभिभावक हूँ |
मैं भी भाई बहनों के साथ रहते हुए सामान्य होने लगी और फिर मेरा दाखिला उसी स्कूल में दिलवा दिया गया जहाँ अरुण भैया और छोटी बहन निर्मला पढ़ती थी | मैं उनलोगों के साथ स्कूल जाने लगी |
अरुण भैया मुझसे एक साल बड़े थे और निर्मला मुझसे एक साल छोटी |

इसी तरह दिन बीत रहे थे और मैं मम्मी पापा के सदमे से धीरे धीरे उबर गई | अब मैं सामान्य हो चली थी |
लेकिन मेरे दादा और दादी को पापा के असमय मृत्यु का जो सदमा लगा था उससे वो उबर नहीं पाए और और वे हमेशा बीमार रहने लगे |
देखते देखते कुछ दिनों के अन्तराल में दादा – दादी भी चल बसे | मैं एक बार फिर सदमे में आ गई | लेकिन अब मैं बड़ी हो चुकी थी ,.. इसलिए इस सदमे से जल्द ही बाहर आ गई |
अरुण भैया और मैं एक ही क्लास में थे ..और उनका अलग से गैराज के ऊपर वाला कमरा पढाई के लिए दिया हुआ था , जहाँ मैं भी जाकर पढाई करती थी |
अरुण भैया का एक दोस्त भी था ….विजय | वह भी यही आकर हमलोगों के साथ पढाई करता था |
हालाकिं वह हमलोगों से उम्र में बड़ा था लेकिन हम तीनो एक ही क्लास से पढ़ते थे | मैं पढने में सबसे तेज़ थी इसलिए अरुण भैया और विजय हमेशा मेरी नोट्स ही मांग कर पढ़ते थे | और पढाई के मामले में मेरा उनलोगों पर दबदबा रहता था |
देखते देखते हमलोग स्कूल पास कर कॉलेज में आ गए | संयोग से विजय और हमारा एक ही कॉलेज में एडमिशन हो गया | अरुण भैया को marks कम होने के कारण दुसरे कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ा |
विजय अब भी मेरे ही नोट्स लेकर पढाई करता था | धीरे धीरे हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई , पता ही नहीं चला |
एक दिन की घटना ने मुझे एहसास दिलाया कि विजय मेरी ओर आकर्षित हो गया है | इस उम्र की दहलीज़ पर ऐसा होना कोई अप्रत्याशित नहीं था |
विजय ने जब मुझे मेरा नोट बुक वापस लौटाया तो उसमे एक पत्र भी था , जिसमे विजय ने अपने प्यार का इज़हार किया था | नोट बुक देने के बाद वह दो दिनों तक कॉलेज नहीं आया , शायद वह डर गया था कि कहीं उसकी इस हरक्कत पर मैं नाराज़ ना हो जाऊं |
लेकिन सच बात तो यह थी कि वो मुझे बहुत अच्छा लगता था | लेकिन कभी मुझे कहने की हिम्मत नहीं हुई थी |
लेकिन विजय ने हिम्मत करके पत्र के द्वारा अपने मन की बात बता दी थी | मेरी पढाई के साथ उससे नजदीकियां भी बढती गई |
लेकिन ज़ल्द ही हमारी प्यार को जैसे किसी की नज़र लग गई | एक दिन मेरी चोरी पकड़ी गई और अरुण भैया को जब हमदोनो के बारे में यह सब मालूम हुआ तो मेरी शिकायत चाची से कर दी |…….(क्रमशः)..
ज़िन्दगी तेरी भी अज़ब कहानी है…
कभी होठों पर हँसी , कभी आँखों में पानी है…

इससे बाद की घटना जानने हेतु नीचे link पर click करे..
ज़िन्दगी तेरी अज़ब कहानी -—3
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Categories: story
Nice story.
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Thank you dear . your words keep me going..
stay connected …stay happy…
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GOOD Evening Jii
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Good evening .kindly comment on the story also..
thank you..
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Nice
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दो हीं चीजें ऐसी है, जिन्हें देने में किसी का कुछ नहीं जाता …
एक मुस्कराहट और दूसरा दुआ …हमेशा बांटते रहिये , हमेशा बढती रहेगी …
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