# इस रिश्ते को क्या नाम दूँ # …26

आज तीन दिनों की छुट्टी के बाद बैंक खुला, तो भीड़ होना स्वाभिक था | मैं कुछ परेशान सा ब्रांच को सामान्य करने की कोशिश कर रहा था |

तभी मेरे चैम्बर में फ़ोन की घंटी बज उठी |  मैं दौड़ कर चैम्बर की ओर भागा  और जल्दी से फ़ोन को उठा लिया और कहा …हेल्लो, मैं वर्मा बोल रहा हूँ |.

उधर से आवाज़ आ रही थी..मैं भास्कर,  हेड ऑफिस से बोल रहा हूँ | पहचाना वर्मा जी मुझे ?

अरे भास्कर, तुम्हे पहचानूँ क्यों नहीं |  तुम्हारी आवाज़ ही काफी है | हमलोग कितने दिनों तक  कोलकाता में साथ थे |

तो सुनो वर्मा जी.–..तुम्हारा प्रमोशन स्केल फोर में हो गया है | मुबारक हो | अभी – अभी हमारे विभाग ने प्रमोशन लिस्ट जारी किया है |

मैं खुश होकर उसको धन्यवाद कहा और फ़ोन रख दिया | मैं आँखे बंद कर भगवान् को याद करने लगा |

प्रभु इस “टपोरी”  को कितनी बड़ी सफलता दिला दी | मुझे याद है वो नौकरी के शुरुवाती दिन जब रेवदर ज्वाइन किया था और वो पिंकी से हमारी नजदीकियां |

और फिर उस मेनेजर से लफड़ा के कारण हमारा ट्रान्सफर हुआ  और हमें काफी बदनामी का सामना करना पड़ा था | एक “टपोरी” की छवि लिए शिवगंज शाखा ज्वाइन किया था |

मुझे पुरे चार साल काफी मेहनत  करना पड़ा था | मैं लोन और रिकवरी दोनों में अच्छा परफॉर्म किया था और तब उसका फल भी मिला |

लोगों का प्यार और सम्मान मिला और टपोरी वाली इमेज भी चली गई | और फिर राजस्थान क्या छोड़ा वो सब यादें वहीँ छोड़ कर आ गया था |

हमारी प्रमोशन वाली बात को सुन कर सारे स्टाफ चैम्बर में आ गए औए बधाइयाँ देने लगे | मैं पॉकेट से ५०० का नोट निकाल कर राम बाबु जी को देते हुए कहा कि मिठाई लाकर सभी लोगों का मुहँ मीठा कराएँ | घर पहुँच कर सभी लोगों को भी यह खुश खबरी सुनाई |

दोस्तों और शुभ चिंतको की बधाइयाँ स्वीकार  करते दो दिन गुजर गए | तीसरे दिन जब बैंक पहुँच कर अपना स्थान ग्रहण कर ही रहा था कि संतोष जी आये और  बोल पड़े –..अरे वाह, वर्मा सर, आप का प्रमोशन का लेटर भी आ गया, बधाई साहब जी |

और  मैं भी उस लेटर को लेकर पढने लगा | इस लेटर के अनुसार मुझे  परसों ही माउंट आबू जाना होगा,  वहाँ नए प्रोमोटी लोगों के लिए  दो दिन का स्पेशल ट्रेनिंग रखा गया है… |

मैं मन में सोचा कि चलो,  इसी बहाने राजस्थान जाने का मौका मिल रहा है | ट्रेनिंग के साथ इस हिल स्टेशन पर घुमने का लुफ्त उठा सकते है |

मैं निश्चित समय में माउंट आबू पहुँचा | वहाँ अपने दोस्तों से मिल कर काफी ख़ुशी का अनुभव हो रहा था |

माउंट आबू का पहला दिन काफी बिजी रहा | ,  हेड ऑफिस से बड़े साहब लोग आये थे और बैंकिंग से सम्बंधित बहुत सारी जानकारी साझा करते रहे |

अब, कल का एक दिन शेष रह गया था, अतः हम दोस्तों के साथ रात में ही कल के घुमने का प्रोग्राम फाइनल कर लिया | वैसे कल तो सिर्फ एक घंटे का यहाँ सेशन होगा | उसके बाद सिर्फ घूमना का कार्यक्रम था |

आज 14 वर्ष बाद फिर यहाँ माउंट आबू आने का मौका मिला था | सचमुच यहाँ कुछ भी नहीं बदला,  जैसा मैं पहले देखा था बस वैसा ही लग रहा है.|.

सबसे पहले हमलोग देलवाड़ा जैन टेम्पल गए और पुराणी यादों को ताज़ा कर मन खुश हो गया | ..सचमुच अंदर मंदिर में क्या कारीगरी के नमूने है, यहाँ तो मूर्तियों के  नाख़ून तक दीखते है | वाह, बनाने वाले ने क्या सुंदर कारीगरी की है |

इसके बाद हमलोग  घुमने के लिए  ब्रह्मकुमारी स्पिरिचुअल सेंटर गए  | पहले जब भी मैं माउंट आबू आता था तो यहाँ ज़रूर विजिट करता था | यहाँ की शाखा में ही इसका एकाउंट भी है | इसका हेड ऑफिस तो यहीं है | काफी खुबसूरत और प्रसिद्ध है |

मैं घूमते हुए हॉल की तरफ गया तो यहाँ  के एक स्टाफ ने  बताया कि अंदर प्रवचन कार्यक्रम चल रहा है , उसका आनंद ले सकते है | हमलोग हॉल के अंदर चले गए | प्रोग्राम शुरू हो चूका था, वहाँ के स्टाफ ने आगे की लाइन में हमलोगों को बैठा दिया |

मैं सीट पर रखे हेड फ़ोन को पहन कर आँख बंद  कर आराम से स्पिरिचुअल धर्म गुरु की बाते सुन रहा था | तभी अगला प्रवचन एक महिला के द्वारा शुरू किया गया |  

आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी |  मैं धीरे से आँखे  खोल कर स्टेज की तरफ देखने लगा, महिला का चेहरा साफ़ दिखाई पड़ रहा था और मैं चौक गया |   

अरे, यह तो पिंकी की तरह लग रही है…. उसका चेहरा ,उसकी आँखे, बात करने की अदा | , उसी तरह बोलना , कुछ भी तो नहीं बदला है |

हाँ, एक चीज मैंने नोटिस किया …. उसके चेहरे पर पहले जैसी चंचलता ना होकर ख़ामोशी  और उदासी दिख रही थी |

वो सामने बैठी अपना प्रवचन दिए जा रही थी और मैं सिर्फ उसके चेहरे को निहारे जा रहा था |

वो क्या बोल रही थी उस पर ध्यान ही ना था | मैं तो बस पिंकी को  साक्षात् सामने देख रहा था , लेकिन दिल को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह पिंकी ही है |

यह कैसे  संभव है ? मैं ने तो सोचा था कि  अब तक वह शादी कर के अपना घर बसा ली होगी | चौदह साल का समय कम थोड़े ही होता है |

अब तो मुझे उससे मिलने की तीब्र इच्छा हुई और  मैं अपने आप को कण्ट्रोल नहीं कर पा  रहा था | मुझे अभी भी उस पर वही अधिकार वाला भाव महसूस हो रहा था |  

मैं सीट से उठकर बाहर आ गया और वहाँ के स्टाफ से पिंकी से  मिलने की इच्छा ज़ाहिर की |

 तब उन्होंने बताया कि उनका नाम पिंकी नहीं राधा है | और उनसे मिलने का समय शाम छह बजे होता है, तब तक आप को इंतज़ार करना होगा | मैं वही बैठ कर उसका इंतज़ार करता रहा |

शाम के छह बजे ही थे और वो विसिटिंग हॉल में आकर बैठ गई ….

पिंकी,  ये मैं क्या देख रहा हूँ ? ..मैंने उत्सुकता से पूछा |

माफ़ कीजिये,  मैं अब पिंकी नहीं बल्कि राधा हूँ | और आप वही देख रहे है जो सच है –..पिंकी ने जबाब दिया  |

ये सब कैसे हो गया ? –..मैंने आश्चर्य से पूछा |

ज़िन्दगी में कुछ चीज़े ऐसी होती है कि आप को पता ही नहीं चलता कि कैसे हो गया | कर्म करना आपके वश में होता है लेकिन परिणाम आपके वश में  नहीं होता .– .वो बिलकुल शांत भाव से बोल रही थी |

मैं जब रेवदर छोड़ रहा था तो तुम्हारे घर गया था ..तुमसे मिलने | बहुत  देर तक इंतज़ार भी करता रहा, | तभी तुम्हारे चाचा जी ने बताया कि तुम मुझसे मिलना नहीं चाहती हो  और तब मैं वहाँ से वापस चला आया |

मेरी बातें सुनकर उसके चेहरे पर एक पीड़ा  की भाव उभर आयी |

फिर अपने मन को शांत कर बोली — ..मैं भी आप से मिलना चाहती थी | आपके बुलावे का इंतज़ार करती रही | … फिर मैं खुद ही आप से मिलने हेतु घर से बाहर निकल रही थी कि चाचा जी ने बताया कि आप चले गए है |

और उन्होंने यह भी बताया कि आप मुझसे मिलना नहीं चाहते है | बाद में पता चला कि वह चाचा जी का ही षड्यंत्र  था .|

कुछ देर वह खामोश रही मानो वह विगत में कुछ तलाश रही हो |

फिर वो बोली .– .उसी दिन शाम को गाँव में पंचायत बैठी थी | …मुझे भी बुलाया गया था और मेरी काफी छीछालेदर की गई |

एक पंच ने कहा था — प्रेम करना ही है तो ईश्वर से करो. .तुम्हारा लोक – परलोक सब सुधर जायेगा | तुम्हारे घर परिवार का नाम भी समाज में रोशन हो जायेगा |

और तभी मैंने साध्वी बनने का और भौतिक सुखों का त्याग कर सारा जीवन परमात्मा और समाज की सेवा में लगाने का निर्णय ले लिया |

मैं हतप्रभ  हो कर सब सुन रहा था | वह आगे कह रही थी .. प्रेम मैं तब भी करती थी जब मुझे इसका ज्ञान नहीं था | प्रेम आज भी करती हूँ जब मुझे ज्ञान प्राप्त हो चूका है |

अंतर बस इतना है कि तब मेरा प्रेम केवल मेरा था .. संकीर्ण दयारे में सिमटा हुआ |

और आज मेरा प्रेम सारे विश्व के लिए है ..सागर की तरह गहरा और आकाश की तरह ऊँचा, सारे ब्रह्माण्ड को अपने में समेटे हुए |

मेरी  जुबान को तो मानो लकवा मार गया था …कुछ बोल नहीं पा रहा था | ,  

मैं बस, उसके चेहरे के भाव को पढने की कोशिश कर रह था | ना जाने कितनी पीड़ा अपने में समेट रखी थी वह |

तभी वह बोली –..माफ़ कीजिये,  पूजा का टाइम हो रहा है  | इज़ाज़त चाहूँगी |

और वो उठ कर जाने लगी | जाते जाते वो ठिठकी और बोली उठी … भगवान् करे आप सदा स्वस्थ और प्रसन्नचित रहें |

 उसको जाते हुए देखता रहा मैं — और सोच रहा था कि  ढाई अक्षर के इस शब्द “प्रेम” को  कैसे परिभाषित करूँ,  ………..और इस ”रिश्ते को क्या नाम दूँ”.??…..

अगला कहानी पढने के लिए नीचे दिए link को click करे …

# एक अधूरी प्रेम कहानी #…1

सोचता हूँ ज़िन्दगी को बस यूँ ही गुज़र जाने दूँ

इजहारे मुहब्बत को अपने होंठो पे न आने दूँ

कल शायद नई  सुबह हो, और नए फूल खिले

आज तो बस आँसुओं को यूँ ही बिखर जाने दूँ …

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण, story

6 replies

  1. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    One moment can change a day,
    One day can change a Life,
    And one Life can change the World…

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  2. Mr. Verma ! I have gone through all the 26 episodes of your story . Nice and beautiful . Deigned like a story writer . A banker -turned story writer . With all the features of a biography-cum-story quite interesting and palatable . Thanks !

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