# ममता का सागर #

जब समय अच्छा आता है तो सब कुछ सही और अच्छा होने लगता है और  ज़िन्दगी बडी ख़ूबसूरत लगती है | उन दिनों हमारा भी कुछ हाल  ऐसा ही था | मैं पूजा पाठ तो नहीं करता था परन्तु भगवान का यूँ ही आशीर्वाद प्राप्त था | शायद मेरे बदले कोई और  मेरे लिए भगवान से दुआ करता था |

आज इस घर में रहते हुए एक महिना बीत चूका था और  समय कैसे गुजर गया कुछ पता ही नहीं चला | मुझे आज मकान का भाड़ा देना था ..२०० रूपये | मुझे यहाँ रहने के अलावा भोजन भी मिल जाती थी और  मुझे होटल से छुटकारा |

मेरे मन में  विचार आया कि इस एहसान को चुकाने के लिए पैसो से कुछ मदद कर दी जाए | ऐसा सोच कर  माँ जी को २०० रूपये की जगह ५०० रूपये देने का फैसला किया | और  हमने ५०० रूपये माँ जी के हाथ में दिए, लेकिन उन्होंने  तुरंत २०० रूपये रख कर ३०० रूपये वापस कर दिए |

मैं नाराजगी भले स्वर में कहा कि आप शायद हमें अपना नहीं समझते | वो मुस्कुराते हुई बोली कि तुम्हे मैं दिल से अपना मानती हूँ और हाँ, जब भी मुझे पैसों की ज़रुरत पड़ेगी ,मैं अधिकार पूर्वक मांग लुंगी | इस सब बातों का शोर सुनकर बाबा भी अपने कमरे से बाहर आ गए और  बातों को समझते हुए ,बस मुस्कुरा दिए | फिर मेरी ओर मुखातिब होकर कहा कि.. आओ मेरे कक्ष में, तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ ….

एक बार “करोना” राज्य के राज़ा अपने युवराज़  के साथ राज्य में सुबह सुबह टहलने निकले, हालाँकि  वो दोनों रोज ही इसी वक़्त टहलने निकलते थे | उन्होंने देखा कि एक मंदिर के पास एक ब्राहमण भिक्षा  हेतु खड़ा  है | युवराज ने उस ब्राहमण से भिक्षा मांगने का कारण पूछा और  उसका उत्तर सुनकर युवराज़ को उस पर दया आ गई | युवराज  तुरंत  सोने से भरी मुद्राओं की एक थैली उस ब्राह्मण को भेट की ताकि उसकी दरिद्रता दूर हो सके |

ब्राह्मण वो सोने की मुद्राओं से भरी थाली पाकर बहुत खुश हुआ और  दिल से राज कुमार को धन्यवाद किया  और  अपने घर की ओर चल दिया | वो मन ही मन यह सोच कर खुश हो रहा था कि अब उसकी गरीबी के दिन समाप्त होने वाले है |

लेकिन शायद उसका दुर्भाग्य उसके साथ था | संयोगवश रास्ते में एक लुटेरा से उसका सामना हो गया और उस लुटेरे ने उसके हाथ से वो थैली छीन कर ले भागा | वो ब्राह्मण इस घटना से बहुत आहत  हुआ और  अपने भाग्य को कोसने लगा | फिर अगले दिन उसी मंदिर के पास भिक्षा हेतु खड़ा हो गया |

दुसरे दिन, रोज की भांति राजा जी युवराज के साथ वापस वहाँ से गुजर रहे थे तो उसी ब्राह्मण को वहाँ  खड़े हुए देखा तो वहाँ खड़ा होने का कारण पूछा,  तो ब्राहमण के कल की सारी घटना बता दी |

युवराज को फिर से उस पर दया आ गई .और  इस बार उसे और भी कीमती वस्तु “मानिक” उसको दिया | वो ब्राहमण कीमती मानिक पाकर बहुत खुश हुआ और  पुनः युवराज को बहुत सारी दुआएं देता हुआ  अपने घर की ओर चल पड़ा | और उस मानिक को सबसे सुरक्षित स्थान जान कर घर के कोने में पड़ा एक पुराने मटके में छुपा कर रख दिया ताकि किसी को शक ना हो |

लेकिन दुर्भाग्य ने यहाँ भी उसका पीछा नहीं छोड़ा | उसकी पत्नी जब मटका लेकर नदी से पानी लाने जा रही थी तो संयोग से उसकी नई मटकी  रास्ते में  फुट गई | तो वापस घर जाकर वही पुराना रखा हुआ मटकी लेकर चली गई पानी भरने | जैसे ही उसकी पत्नी मटके को नदी के पानी में डाला वो मानिक नदी के पानी में बह गया | जब उस ब्राह्मण को यह पता चला तो वह फिर निराश हो गया और अपने भाग्य को कोसता हुआ पुनः उसी मंदिर के पास जाकर भीख मांगने को  मजबूर हो गया |

अगले दिन फिर राज़ा और  युवराज ने भ्रमण करते हुए उस ब्राहमण को उसी मंदिर के पास भिक्षा हेतु खड़ा देखा तो युवराज़ फिर उससे सवाल कर बैठे | इस बार जब युवराज ने उसकी कहानी सुनी तो वो बहुत हतास हो गए कि इतना कोशिश करने के बाबजूद उस ब्राहमण की मदद नहीं कर पा रहे थे |

तब राजा जी ने युवराज़ से कहा कि अभी ब्राह्मण के दिन ठीक नहीं चल रहे है, परन्तु उन्हें धर्य रखना चाहिए | जब ब्राह्मण का  सही समय आ जायेगा तो सब कुछ उसके साथ अच्छा होने लगेगा और  अपने आप उसके गरीबी के दिन चले जायेंगें | और  इतना कह कर इस बार राज़ा ने उसके हाथ में सिर्फ पाँच पैसे रख दिए और चल दिए | उस गरीब ब्राह्मण के मन में सवाल उठने लगे कि राजा इस बार इतना तुक्ष दान क्यूँ दिया |

वह यही सोचते हुए जा रहा था कि  इतने में देखा कि एक मछुआरे ने एक मछली पकड़ रखी है और  मछली पानी में वापस जाने के लिए तड़प रही है | मछली की इस दयनीय स्थिति पर उसे दया आ गई और उसने सोचा कि राजा के दिए हुए इन पाँच पैसों से तो एक वक़्त का भोजन भी नसीब नहीं हो सकता है | तो क्यूँ ना इन पैसों से उस  मछली की जान ही बचा ली जाए | ऐसा सोच कर उसने  मछुआरे से उस मछली का सौदा कर लिया और  मछली को अपने कमंडल में डाल कर नदी में छोड़ने चल पड़ा |

मछली जब कमंडल में छटपटा रही थी, तभी उसके मुँह  से कुछ निकला और  कमंडल में गिर गया | वो उस आवाज़ पर चौक कर कमंडल में झांक कर देखा तो उसकी आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा | उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मछली के मुँह  से वही मानिक निकला था जो कुछ दिनों पूर्व उस नदी में बह गया था | वो बहुत खुश हो गया और  रास्ते में पागलों की भांति.. मिल गया, मिल गया.. चिल्लाने लगा | संयोगवश उसी रास्ते से वो लुटेरा गुज़र रहा था, जिसने उस ब्राह्मण के सोने की थैली को लुटा था |

उसके इस तरह चिल्लाने से वो समझा कि ब्राह्मण उसे पहचान लिया है और  इसीलिए चिल्ला रहा है  ..मिल गया,… मिल गया | अगर वो राजा से मेरी शिकायत कर दी तो राजा उसे मृतुदंड दे देगा | ऐसा सोच कर वो बिल्कुल डर गया और  ब्राह्मण के पास आकर हाथ जोड़ कर उस अपराध के लिए क्षमा मांगने लगा और  सोने की थैली भी उसे वापस दे दी |

अब तो ब्राह्मण के पास मानिक के साथ साथ, सोने के सिक्के भी प्राप्त हो गए | उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा | शायद उसके अच्छे दिन आ गए थे | वो ख़ुशी ख़ुशी राजा को इसकी सुचना दी |

राज़ा ने तब अपने युवराज़ को समझाया कि जब आपने उस ब्राह्मण को सोने की थैली  दी और  फिर मानिक दी तो उस समय वो सिर्फ अपने बारे में सोच रहा था और जब पाँच सिक्के का तुक्ष भेंट मिले तो उस बार वो अपने बारे में नहीं बल्कि मछली की ज़िन्दगी बचाने के बारे में सोच रहा था |

यह सच है कि जब आप दुसरे की भलाई के बारे में सोचते है तो आप ईश्वर का काम कर रहे होते है और उस कार्य को करने में ईश्वर की सारी शक्तियां और वो आप के साथ होते है…., समय और भाग्य भी आप के साथ होता है |

लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि. मैं उनकी मदद कर रहा था या वो ममता मयी माँ मेरी ?

ना चेहरा पोछने की ज़रुरत है ना ऐनक पोछने की ज़रुरत है,

अगर देखना है सुंदर चेहरा , तो दूसरों के आँसू पोछने की ज़रुरत है...

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण, story

7 replies

  1. Gd morning have a nice day sir ji

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  2. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    The Happiest people are the one who make others Happy..

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  1. मेरे – अपने – Infotainment by Vijay

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