
रमेश अपने पेंशन का पैसा बैंक से निकाल कर घर की तरफ चल पड़ा | गर्मी बहुत थी सो वह रास्ते के किनारे पेड़ की छाँव में एक चबूतरे पर बैठ गया |
अचानक उसकी नज़र उस पेड़ से लटक रही एक कागज़ के टुकड़े पर पड़ी, जिस पर कुछ लिखा था. | .
वो अपने चश्मे को ठीक करता , उस कागज़ पर लिखे मेसेज को पढने लगा, | उस पर्चे पर लिखा था — .मैं एक बुजुर्ग महिला हूँ, शरीर से लाचार और मेरी नज़रे भी कमजोर है |
यहीं पेड़ के आस पास मेरा पचास का नोट खो गया है, जिसे मैं नहीं ढूंढ सकी | अगर किसी को मिले तो कृपया इस दिए हुए पते पर पहुँचाने की कृपा करें |

रमेश के चेहरे पर एक मुस्कान बिखर गई | वह वहाँ से उठा और उस पते ( address) को खोज कर वहाँ पहुँचा, तो देखता क्या है — ..एक बहुत ही कमजोर बुजुर्ग सी महिला एक टूटी फूटी झोपडी के बाहर बैठी है |
उसके दरवाजे पर एक आगंतुक को देख कर बुढिया पहचानने की कोशिश करने लगी और फिर धीमे स्वर में बोली .– .आपको क्या काम है ?..
इस पर रमेश ने कहा — वो आपका पचास रुपया जो उस पेड़ के पास खो गए थे, मुझे वहाँ मिला है और वहाँ उस नोट पर लिखे पते (address) को पढ़ कर मैं आप को देने आया हूँ |
वो बुढिया उसको बड़े प्यार से देखा, बुढ़िया के आँखों से आँसू बह रहे थे |
.तो रमेश आश्चर्य चकिय होकर पूछा..– आप रो क्यों रही है ? आप के तो खोए पैसे मैं देने आया हूँ |
इस पर बुढिया ने उसे खूब आशीर्वाद दिया और कहा.– . अभी तक ४० लोग इसी तरह ५० रूपये का नोट लेकर आ चुके है, कि उन्हें उस पेड़ के पास मेरा खोया हुआ ५० रूपये का नोट मिला है,
जबकि मैं तो शरीर से कमजोर लाचार और अनपढ़, आँखों से भी कम दिखाई पड़ता है | मैं भला वह कागज़ पर नोट लिख कर कैसे पेड़ पर टांग सकती हूँ |
शायद दो दिनों से भूखे इस गरीब पर किसी को दया आ गई होगी, इसीलिए आज मुझे इतने पैसे मिल गए है कि कई दिनों तक भर पेट खाना खा सकती हूँ ,..आप अपने पैसे रख लो |
रमेश के पलट कर ज़बाब दिया,– .माँ जी, अब ये पैसे रख लो, आगे काम आयेंगे |
तो बुढिया पैसे लेते हुए निवेदन किया कि वो लौटते समय वो पेड़ पर लटका कागज़ पर लिखा नोट उतार कर फाड़ देना |

रमेश बस मुस्कुरा दिया और वहाँ से वापस चलते हुए सोच रहा था कि वो कौन भला इंसान था जो बुढिया को इस तरह से मदद करने की सोची |
तभी वो सोचने लगता है कि अगर किसी को सहायता करने को एक छोटा सा कदम बढाया जाए, तो देखिये मदद करने के लिए कितने लोग इकठ्ठे हो जाते है | मदद के लिए एक लम्बी लाइन लग जाती है |
इसे कहते है … A small act of kindness ,, जिसके तहत किसी इंसान ने उस लाचार बुढिया के लिए वो कागज़ का नोट लगाया और देखते ही देखते कितने हाथ एक साथ आ गए उसे मदद करने को, जो उस महिला के परिशानियों को समाप्त करने के लिए काफी थे |
इन्ही सब बातों को सोचते सोचते आ रहा था, तभी सामने से आता एक व्यक्ति रमेश से टकराया | वो अनजान व्यक्ति उसकी ओर देखते हुए सॉरी बोला है , और पूछा — कृपया इस पते (address) पर जाने का रास्ता बता सकते है ?
रमेश ने देखा तो वो वही बुढिया का address था |
आज यह घटना बिल्कुल प्रासंगिक लग रही है क्योंकि जब सालों से लॉक डाउन (lockdown) है और रोज़ कमाने खाने वाला मजदूर जो अपने घर से दूर मुंबई और दिल्ली में फंसे हुए है, उनको भी रहने और खाने की समस्या उत्पन्न हो गई है और उनलोगों को भी इसी तरह की सहायता की आवश्यकता है | .
.क्यों ना हम सब मिल कर उस बुढिया की तरह इस लोगों का भी दुःख और परेशानी दूर करने का प्रयास करें | वैसे भी अभी के परिवेश में इस सब भौतिक सुख सुविधा का महत्व कम पड़ गया है और सबों को चिंता है कि किस तरह covid-19 से अपनी सुरक्षा की जा सके |

यह सही है कि अपने दर्द का दुखड़ा तो हर कोई रोता है लेकिन सच्चा इंसान वो है जो दुसरो के दुःख को महसूस करे |
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं,
जिंदगी ऐसी होती, जिंदगी वैसी होती
तुम नही होती, तो जिंदगी कैसी होती…
तुम नही होती तो कलम,दवात और रोशनाई नही होती
तुम ना होती तो मेरे गीत, गजल और ठहाके ना होते,
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते है
जिंदगी में सुकून होता, दिल बेचैन न होता
जीवन संघर्ष का एहसास भी नही होता
मगर तुम तो हो, फिर मैं क्यों सोचता हूँ
तुम ना होती तो मेरी जिंदगी कैसी होती।।
विजय वर्मा

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Happiness does not obey a law of Mathematics.
When u start Dividing happiness among others,
it actually Multiplies…
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