
किसी ने सही कहा है कि ….शांति की इच्छा हो तो पहले मन को शांत करो …
मन को शांत रखने के लिए ध्यान करना ज़रूरी है, और जब मन शांत होगा तो खुशियों को खुद ब खुद अनुभव कर सकेंगे |
पर यह ध्यान क्या है इसे कथन को चरितार्थ करता एक कहानी प्रस्तुत है …
एक ध्यानी व्यक्ति था | वह एक वृक्ष के नीचे बैठ ध्यान कर रहा होता है , तभी अचानक उसे एक लकडहारा नज़र आता है जो वहाँ लकड़ी काट रहा था |
उसे देख कर वो कुछ नहीं कहता ,| इसी तरह दुसरे दिन भी वह उसे लकड़ी काटते देखता है, पर वह ध्यानी कुछ नहीं कहता है |
परन्तु तीसरे दिन जब वही लकड़हारा उसी जगह फिर लकड़ी काटने आता है तो ध्यानी व्यक्ति इस बार उससे बोला ….सुनो भाई, तुम रोज़ यहाँ बहुत लकड़ी काटने आते हो | बहुत मिहनत करते हो |
लगता है तुम अच्छा खासा धन इकठ्ठा कर रखा होगा | उस ध्यानी व्यक्ति की बात सुन वह लकडहारा हँस पड़ा और कहा …. जैसा तुम सोचते हो वैसा कुछ भी नहीं है |
इन सारी लकड़ी से मुझे बहुत कम आमदनी होती है जिसके कारण हमारे घर का गुजरा बड़ी मुश्किल दे हो पाता है |

उसकी बात सुन ध्यानी व्यक्ति उससे बोला ….. तुम कुछ दूर आगे क्यूँ नहीं जाते |
क्या तुम नहीं जानते कि आगे वहाँ चन्दन का वृक्ष है, जिसे बेचकर ज्यादा धन कमा सकते हो |
उस ध्यानी व्यक्ति की बात सुन वह लकड़हारा चौकता है, लेकिन अगले पल मन ही मन सोचता है कि यह बाबा झूठ बोल रहा है |
अगर यह सच है तो यह बाबा यहाँ तप करने के बजाए चन्दन की लकड़ियाँ काट कर खुद ही बहुत धन नहीं कमा लिया होता |
फिर वह दुसरे ही पल सोचता है कि क्यों ना इसकी बात की सच्चाई का पता लगाया जाए और जाकर देख लिया जाए | क्या पता यह सच कह रहा हो |
ऐसा सोचकर दुसरे दिन वो लकडहारा वहाँ पहुँचा तो यह देख कर आश्चर्यचकित हो गया कि सचमुच में उस जंगल में बहुत सारे चन्दन के बृक्ष है |
उसकी धारणा कि उससे ज्यादा जंगले के बारे में कोई नहीं जनता है ,गलत साबित हो गई | वह उस ध्यानी बाबा के पास लौट कर आया और कहा… ..मैंने तुम्हे गलत समझा था, मुझे क्षमा कर दो |
मैं सोच रहा था कि तुम झूठ बोल रहे हो | लकडहारे की बात सुन ध्यानी बाबा बोले ..तुम्हे क्षमा मांगने की कोई ज़रुरत नहीं है | ,
मैं ने तो तुम्हे वही बताया जो तुम नहीं जानते थे | वो लकडहारा चन्दन की लकड़ियों को काट कर बेचा तो बहुत पैसे मिले, |
अब वह सात दिनों में सिर्फ एक दिन जंगल जाता और ज्यादा कमाए पैसों से आराम से सप्ताह भर खाता था | इसी तरह महीनो गुजर गए |

एक दिन फिर अचानक उसे ध्यानी बाबा मिल गए , तो ध्यानी बाबा उससे पूछ बैठे … क्या, अभी तक तुम उन्ही चन्दन की लकड़ी को बेचकर ही धन कमा रहे हो |
तो वो जबाब देता है …जी हाँ, मैं अब तक चन्दन की लकड़ी ही बेचता हूँ | तब उस ध्यानी बाबा उस लकडहारा से बोले … अरे बाबा, तुम वहाँ से कुछ दूर और आगे बढ़ो वहाँ चांदी की खदान है | ,
तुम चन्दन की लकड़ी को छोडो और अगर एक दिन चांदी ले आओगे तो महीनो बैठ कर खाओगे |अब वो लकडहारा उस बाबा की बात मान और आगे जाता है तो सचमुच चांदी की खदान देखता है और वो वैसा ही करने लगा. |
एक दिन वो चांदी लाता तो उसे बहुत पैसे मिलते और उससे महीनो बैठ कर खाता | अब उस लकडहारा को उस ध्यानी बाबा के उपर पूरा विश्वास हो गया था |
वह अब लकडहारे से सेठ बन गया था | एक दिन वह जंगल में जा रहा था तभी उसे वो ध्यानी बाबा फिर मिल गए |
बाबा फिर उससे पूछता है क्या अभी तक सिर्फ चांदी ही ले जा रहे हो ? वो सेठ जैसे ही हाँ कहता है तो बाबा कहते है कि अरे भाई थोडा और आगे बढ़ो | , वहाँ तुम्हे सोने का खदान मिलेगा |
सेठ सोचता है कि मुझे पहले ऐसा ख्याल क्यों नहीं आया | वो आगे जा कर देखता है तो सचमुच चारो तरफ सोना ही सोना पाता है | वो खुश होकर ढेर सारी सोना ले आता है और सालों बैठ कर खाता है | इसी तरह एक युग बीत गया |

फिर एक दिन वो सेठ उस ध्यानी व्यक्ति के पास जाता है तो बाबा पूछते है कि क्या तुम अभी तक सोने के खदान तक ही पहुँचे हो ,वहाँ से आगे बढ़ो ,आगे हीरों की खदान है |
वो फिर आगे जाता है तो पाता है कि वहाँ हीरे ही हीरे बिखरे पड़े है /अब तो उस सेठ के ठाठ बाट राजाओं जैसे हो गए थे /
महल खड़े कर लिए और बहुत धन इकठ्ठा कर लिया / हालाँकि अब उस लकडहारा (सेठ) की उम्र 60 साल के पार हो गई थी /
अब कई दशकों के बाद वह आखरी बार उस बाबा से मिलने जाता है , वहाँ पहुँच कर वो बाबा को हाथ जोड़ कर धन्यवाद् कहता है ,इस पर बाबा कहते है कि अरे सेठ, अभी तू उसी हीरे की खदान पर ही रुक गया . |
जा देख आगे ..लेकिन वो सेठ के पास बहुत धन इकठ्ठा हो गया था इसलिए उसमे थोड़ी अकड़ आ गई गई थी, उसने बाबा की बात बीच में काटते हुए बोल पड़ा …अब मुझे परेशान मत करो |
अब हीरों के आगे भला क्या हो सकता है | तब बाबा उस सेठ से कहता है कि हीरों के आगे मैं हूँ | क्या तुम्हे कभी ख्याल नहीं आया कि यह आदमी जिसे पता है हीरों के खदान का ,फिर भी वह हीरे नहीं भर रहा |
इसको ज़रूर उससे भी कीमती चीज़ हाथ लग गई होगी, तभी यह निश्चिंत इस बृक्ष के निचे बैठा हुआ है ?
क्या यह कभी ख्याल नहीं आया ? उस ध्यानी बाबा की बात सुन वह सेठ रोने लगता है और उस ध्यानी बाबा के पैर पकड़ लेता है | और कहता है मैं भी कैसा मुर्ख हूँ कि यह देख ही नहीं पाया ,जिसने सभी हीरे जवाहरात छोड़ दिए है , ज़रूर उसके बाद उससे भी कीमती चीज़ होगा | मुझे कभी यह ख्याल ही नहीं आया /

मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारे पास ऐसा क्या धन है जिसके सामने इस दुनिया का का सारा धन छोटा है /
ध्यानी व्यक्ति उस सेठ से कहता है मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ कि वह धन है ध्यान | इस पर सेठ कहता है कि मुझे तो ध्यान करना ही नहीं आता /
बाबा कहते है कि ध्यान करना बहुत सरल है | बाहर का धन तो बहुत इकठ्ठा कर लिया अब अपने अंदर देखो |
आराम से बैठ कर देखो कि तुम्हारे भीतर क्या चल रहा है | अगर कोई अनुभव हो तो उसे पकड़ना नहीं जाने देना |
हो सकता है उसके ऊपर परमात्मा भी मिले ,पर तुम उसे भी मत पकड़ना , और तब तक देखते रहो जब तक कि सभी अनुभव , सभी विचार, शांत नहीं हो जाते |
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: motivational
Bhut hi accha blog h sir ji
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Thank you dear..I will try to continue in that series..
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Very nice Chachaji
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thank you ..keep going..
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Very nice and inspiring.
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thank you dear ..your words encourage me to write and write..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
WHEN You move your focus from competition to
contribution, life becomes a celebration.
Never try to defeat people, just win their hearts..
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