# सुख की खोज #

अगर आज हम अपने मन में  विचार करें कि हम जो सारा जीवन संघर्ष करते रहे ह , हम क्या-क्या करते रहे और क्यूँ करते रहे ?

तो हम पाते है,  कि हम सिर्फ दो बातो को ध्यान में रख कर ज़िन्दगी की जद्दोजेहद में लगे रहे है  और वो दो बातें है — , पहला  हमें हमेशा सुख मिलता रहे और दूसरा हम दुःख से हमेशा दूर रहे | इन्ही दो बातों को ध्यान रखकर ज़िन्दगी की जंग लड़ते रहे है हम |,

सदा इच्छा रही कि सुख हमारे जीवन से जाए ना और दुःख हमारे  जीवन में कभी आए ना.| लेकिन परिणाम क्या मिला ?

.क्या इस पल में  भी हम सुखी है ? .. नहीं,   लेकिन क्यूँ  ?

यह एक विचारनिए प्रश्न है, आखिर कमी कहाँ रह गई है ? यह सुख – दुःख क्या है ?

इसका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि जब  हम स्थान, या वस्तु जो हमारे निकट है, हमारे मन के अनुकूल नहीं होता है तो हम दुखी हो जाते है  और इसके विपरीत जब हम स्थान या वस्तु हमारे   मन के अनुकूल है  तो इसे पाकर सुखी समझते है |

यह  सुख – दुःख हर पल बदलता रहता है | एक पल में हम खुश है तो दुसरे पल में दुःख का अनुभव करने लगते है | , हमारा  विवेक और  अविवेक हमें दुखी और  सुखी करता रहता है |

अगर हम अपने ज़िन्दगी में बीते समय का हिसाब लगायेंगे,  तो पाते है कि  हमारे  ज्यादा समय दुखी के रहे |  ,सुख  के पल तो क्षणिक ही थे | कुछ समय ही साथ रहते है |.

क्या सचमुच इतना ज्यादा दुःख है हमारी ज़िन्दगी में ? , ..शायद नहीं | , हकीकत में उतना दुःख नहीं है, जितना हम दुःख को पाल कर रखते है |

 एक बड़ी ही प्रसिद्ध कहानी है , जिसे सुनाना चाहते है —

एक राज़ा  था , वह चक्रबर्ती  सम्राट था |, उसके पास सभी ऐसो आराम के सभी सामान थे | ,किसी चीज़ की कमी नहीं थी , | बाबजूद इसके ,वह सुखी नहीं था |

उसे कभी ख़ुशी  महसूस नहीं होती थी | वो समझ नहीं पा  रहा था  कि क्या कारण है कि उसका मन हमेशा दुखी रहता है |

इसी व्याकुलता में एक दिन वो अपने गुरु जी के पास गया और उनसे निवेदन किया कि  मेरे पास सब कुछ है,… किसी चीज़ की कमी नहीं है |

परन्तु मुझे कभी ख़ुशी महसूस नहीं होती है, ,इसका कारण समझ में नहीं आ रहा है | कोई ऐसा उपाय बताएं कि मैं   सुखी हो जाऊं |

इस पर गुरु के राजा से कहा — तुम एक उपाय करो |  अपने राज्य में कोई ऐसा व्यक्ति की तलाश करो जो कभी भी दुखी नहीं होता हो , ,हमेशा खुश रहता है | अगर वो व्यक्ति मिले तो तुम उसका कुर्ता पहन लेना , बस  तू परम सुखी हो जायेगा |

गुरु जी के ऐसी बात को सुन कर राजा को बड़ा  आश्चर्य हुआ, कि भला  ऐसा सुखी व्यक्ति के कपडे पहन लेने मात्र से मैं कैसे सुखी हो जाऊंगा |

परन्तु उसे अपने गुरु के बात पर विश्वास था, इसलिए गुरु के कहे अनुसार उसने अपने राज्य में ऐसी  घोषणा करवा दी |

राजा सबसे पहले महल के सभी सैनिको, दरबारियों  को राज्य सभा में बुलाया और उनसे पूछा  कि तुम लोगों में कौन ऐसा व्यक्ति यहाँ है, जो सुबह से रात तक हमेशा खुश  रहता है | कभी दुःख उसे सताता नहीं हो | ,

वो व्यक्ति सामने आए | मैं उसका कुर्ता  पहन लूँगा और उसे अपना आधा राज्य दे दूँगा |.

सभा में उपस्थित सभी लोग राजा की बातें सुन कर हैरान होकर एक दुसरे का मुख देखने लगे | ,ऐसा कोई था ही नहीं , जिसे दुःख ना हो |

सब लोगों ने राजा  के सामने  सिर झुका कर खड़े रहे | तब राजा ने कहा — ठीक है , . तुम में ना सही पर जाओ और जाकर नगर में घोषणा करवा दो  कि जो भी ऐसा व्यक्ति हो , जो कभी दुखी ना होता हो वो राजा के सामने पेश हो,|  राजा  के द्वारा आधा राज्य दे दिया जायेगा /

और सैनिकों को भी आदेश दिया गया कि ऐसा व्यक्ति ढूढ़ कर  यहाँ लाना है |

पुरे राज्य में जिससे भी  सैनिक पूछते तो सभी यही कहते, मुझे तो  दुःख है | एक भी ऐसा व्यक्ति सैनिक  नहीं ढूंढ पाए. |

तो सैनिक लोग  चिंचित मुद्रा में आपस में बाते करने लगे कि राज़ा को क्या मुँह दिखायंगे | हम उनके आदेश का पालन नहीं कर सके |

इतने में उनलोगों ने देखा कि एक युवा साधू – फ़क़ीर किस्म का एक चट्टान पर बैठा बहुत खुश दिख रहा है और लगातार हँस  रहा है | ,

उसके बारे में पता लगाने पर जाना कि यह हमेशा खुश रहता है बाबजूद इसके कि  चाहे कितना भी उसे दुःख दिया जाए,और कितना भी  बेइज्जत किया जाए |

सैनिक उसके पास गए और पूछा — ,बाबा क्या आप हमेशा खुश रहते हो ? ,कभी भी दुखी नहीं होते हो ? .

वो फ़क़ीर साधू  बोला — ..हाँ, मैं हमेशा ही खुश रहता हूँ | कभी भी दुःख महसूस नहीं होता, | मैं तो मस्त मौला फ़क़ीर हूँ |

तब सैनिक बोले कि आप को राजा के पास चलना होगा ,| वो फ़क़ीर तुरंत  राजा के पास जाने को तैयार हो गया .

उसे  राजा के सामने पेश किया गया |

राजा ने उस युवा साधू से पूछा,– .. हे महात्मन, क्या आप सदैव प्रसन्न  रहते है ? ,

वो फ़क़ीर बोला — ..हाँ, मैं हमेशा प्रसन्न रहता हूँ | मुझे  कभी दुःख का अनुभव नहीं होता |

राज़ा को बड़ा अद्भुद लगा कि यह साधू तो बहुत साधारण सा दीखते है | इनके पास कोई सुख – सुविधायें भी नहीं |

ना अपना रहने के लिए घर, और ना धन ही है, फिर भी हमेशा खुश रहता है |

राज़ा फिर बोले कि यदि आप हमेशा ही प्रसन्न रहते है तो मुझे आप का कुर्ता चाहिए | , कृपया मुझे अपना कुर्ता  दे दीजिए |

महात्मा बोले — हे राजन , मेरे पास तो पहनने को कुर्ता ही नहीं है तो तुम्हे कहाँ से दूँ |

ऐसी जबाब सुनकर राजा बड़ी अचरज में पड़  गए, कि जिस व्यक्ति के पास पहनने को एक कुर्ता  भी नहीं है वो इतना प्रसन्न कैसे है ?

मेरे पास इतने कुर्ते है कि रोज नया पहनू तो भी कभी ख़तम नहीं हो सकते |

राजा  उस महात्मा के चरणों में गिर पड़े और बोले कि इसका राज़ बताइए |

तो महात्मा बोले — ईश्वर ने जो भी मुझे  दिया है वो अपनी योग्यता से बहुत अधिक लगती है | मैं हर पल उस ईश्वर को धन्यवाद् देता हूँ कि उसके मुझे मेरी योग्यता से बहुत अधिक देता रहता है |

यह सत्य है कि हम लोग तो इश्वर से हमेसा और पाने की इच्छा रखते है , कभी भी  उनके प्रति धन्यवाद् का भाव नहीं आता है |

हम  बस उसे तब याद करते है जब हम परेशानियों से घिर जाते है | ,

अगर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता  का भाव रखेंगे और यह विचार करे कि प्रभु ने जो भी हमें दिया है, मेरे लिए काफी है | तो संतुष्टि  की भाव और ख़ुशी  दोनों ही  प्राप्त होगी |               

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोय  

सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ….      

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: motivational

5 replies

  1. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    प्रार्थना से परिस्थिति बदले या न बदले ,
    पर व्यक्ति का चित्त अवश्य बदल जाता है ..

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  2. very nice article!we need to read it again n again as reminder.

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