#रिक्शावाला की अजीब कहानी# …7

मैं आश्चर्य चकित हो बस अंजिला को ही देखे जा रहा था | वो किसी भी तरह से विदेशी नहीं लग रही थी | उसके हाव – भाव, सोच -विचार और एक दुसरे के साथ मिलकर रहने और आपस में सहयोग करने की भावना ….सभी कुछ हमारे देश और हमारे समाज के सभ्यता और संस्कृति से मेल खा रही थी | 

पता नहीं वो इतनी जल्दी इन सारी बातों को कैसे सिख पायी | आज तो वह केवल चेहरे से विदेशी लग रही थी, लेकिन बोल –चाल, बात- व्यवहार  में पक्की भारतीय नारी लग रही थी |

हॉस्पिटल में भी उसकी फुर्ती देख कर मैं आश्चर्य चकित था |  रघु काका को स्ट्रेचर से सहारा देकर उतारने  से ले कर वहाँ डॉक्टर के सामने कुर्सी पर बैठाना, …डॉ से बात करना …..और फिर पैर में प्लास्टर के बाद उन्हें वापस  स्ट्रेचर पर लिटाना ….सब काम बड़ी फुर्ती और सहजता से कर रही थी |

और इतना ही नहीं, जहाँ -जहाँ पैसों की आवश्यकता पड़  रही थी उसका  भुगतान भी अपने पैसों से कर रही थी |

आज के ज़माने में ऐसे विचार वाली लड़की का मिलना सचमुच आश्चर्य की बात है …….पढ़ी लिखी, सुन्दर- सुशील और अच्छे विचारो वाली सभी  गुण तो है उसमे | आज की घटना को देखने के बाद, मेरे मन में उसके प्रति स्नेह और भी बढ़ गया |

एक ओर कल पार्टी में दोस्तों के बीच मस्ती करते हुए एकदम विंदास देखा था …जैसे फुल ऑन ज़िन्दगी जीना चाहती हो और आज एक संवेदनशील दोस्त की तरह नज़र आ रही थी |

रघु काका के पैरों में प्लास्टर चढा था इसलिए हमदोनो ने उन्हें सहारा देकर अपने रिक्शे में बिठाया | और मैं अपनी रिक्शे के सीट पर बैठ कर चलने को हुआ |

तभी अंजिला ने कहा. ..ठहरो, मैं भी चल रही हूँ , अभी काका को सहारे की ज़रुरत है और वो भी  काका के साथ सहारा देने के लिए रिक्शे में बैठ गई |

यह देख कर मैंने  आश्चर्य से पूछा …आप को अपने काम पर नहीं जाना है क्या ?

नहीं, पहले मैं काका के साथ उनके घर जाउंगी और फिर वहाँ सारा इंतज़ाम देख कर वापस आ जाउंगी |

और हाँ,  तुम जरा सावधानी से धीरे धीरे रिक्शा चलाना …ताकि काका  को तकलीफ ना हो | उसने मुझे हिदायत दी | 

साथ में यह भी कहा …. काम- काज तो लगा ही रहता है | आज का जो काम है उसे बाद में कर लुंगी | आज तो रघु काका को मदद  की आवश्यकता है | .इसलिए पहले इनको मदद करना ज़रूरी  है |

जब यह तुम्हारे पिता तुल्य है तो हमारे भी हुए ना  ….उसने मेरी तरफ देखते हुए बोली |

मैं अंजिला की बात सुन कर निरुत्तर हो गया  और अपनी रिक्शा पर बैठ कर सावधानी पूर्वक धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा |

रास्ते में दवा की दूकान देख कर अंजिला मुझे रुकने को कहा और डॉक्टर के पर्ची की सारी दवा उस दुकान से खरीद कर वापस रिक्शे में बैठ गई |

थोड़ी ही देर में हमलोग काका की झोपडी के सामने पहुँच गए | मैंने रिक्शा खड़ी की और  रघु काका को सहारा देकर रिक्शे से उतारने लगा  तो अंजिला भी मेरी मदद करने लगी और हमदोनो ने सहारा देकर काका को घर के अंदर ले आए |

मैं उन्हें बिस्तर पर लिटाने ही वाला था कि अंजिला ने मुझे टोका ….ठहरो, पहले मुझे  बिस्तर को  ठीक कर लेने दो | उसने बिस्तर को ठीक किया और फिर हमलोगों ने उनको सहारा देकर बिस्तर पर लिटा दिया |

उसके बाद मैंने अंजिला से  कहा ..अब चलिए मैडम, आप को छोड़ देता हूँ | आप को देर हो रही होगी |

अंजिला ने कहा … तुम रघु काका  की देख भाल करो और इनके ही पास रहो, जब तक ठीक नहीं हो जाते | तब तक मैं कोई दूसरा रिक्शा लेकर काम पर चली जाउंगी |

नहीं नहीं, .ऐसा मत बोलो …रघु काका अचानक बीच  में बोल पड़े |

अब मैं बिलकुल ठीक हूँ | तुम राजू को लेकर जाओ | सिर्फ रात में राजू आकर मेरे खाने का इंतज़ाम कर देगा  | दिन में मुझे ऐसी कोई ज़रुरत नहीं पड़ेगी |

और फिर अंजिला के तरफ देखते  होते हुए बोले ……तुमने मेरी बहुत सेवा किया है |  इतना तो कोई अपना सगा भी नहीं करता है …तुम से तो कोई  ऐसा रिश्ता भी नहीं है …फिर भी तुमने मेरे बच्चे के समान  देख भाल किया है |. मैं अपने दिल से तुम्हे आशीष  देता हूँ |

आज की घटना से मेरे दिल के अन्दर जो तुम्हारे प्रति नफरत और शिकवा- शिकायत था वो सब दूर हो गया | मुझे आज यह भी महसूस हुआ कि चेहरा चाहे देशी हो या विदेशी……..असल बात तो उसके विचार और उसकी भावना महत्व रखता है |

मेरा आशीर्वाद तुम दोनों के लिए है …तुम दोनों सदा खुश रहो |

मैं अंजिला की ओर देख कर कहा …अब चलते है, आपको शायद देर हो रही होगी..|

हाँ हाँ, तुम लोग जाओ , मेरा खाना  और दवा तो पास में ही रखा है | मैं समय पर दवा खा लूँगा …काका ने कहा |

मैडम रिक्शा पर बैठते हुए कहा…. पहले मुझे  BHU कैम्पस ले चलो |  मुझे वहाँ लाइब्रेरी में कुछ काम है | फिर हमलोग महंत से मिलने मंदिर चलेंगे , उनसे कुछ और भी ज़रूरी जानकारी हासिल करनी है |

ठीक है मैडम …मैंने कहा और रिक्शा फर्राटा भरता हुआ चल दिया |

मैडम तेज़ कदमो से चलते हुए लाइब्रेरी में चली गई और मैं रिक्शे पर बैठा उनका इंतज़ार करता रहा |  

मैडम आज जल्दी काम ख़तम करने के मूड में लग रही थी, इसीलिए BHU के लाइब्रेरी से काम ख़तम कर बाहर आयी  और रिक्शे में बैठते ही बोली …आज महंत जी से मिलने का प्रोग्राम कैंसिल करते है और सीधा काका के पास चलते है |

पता नहीं ठीक से खाना और दवा लिया होगा या नहीं | ऐसी हालत में उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था |

मैं भी अंजिला की बातों से सहमती जताते हुए कहा …अब हम लोग ही तो उनका सहारा है |

बात करते हुए रास्ते का पता ही नहीं चला और हमलोग काका के पास पहुँच गए |

काका ने हम दोनो को देख कर आश्चर्य से कहा …तुमलोग इतनी जल्दी आ गए ?

अंजिला ने ज़बाब दिया… हाँ काका , आज मेरा मन पढाई में लगा ही नहीं |   इसलिए मैंने अपना काम जल्दी निपटा कर आप से मिलने आ गई | पता नहीं क्यों, आज मुझे अपने मम्मी – डैडी की याद आ रही है |

अंजिला की बात सुन कर  रघु काका ने पूछा ….क्या तुम्हारे माँ -पिता अब इस दुनिया में नहीं है ?

इस पर अंजिला ने तुरंत कहा ….नहीं नहीं,  ऐसी कोई बात नहीं है | मेरे मम्मी –डैडी  दोनों जिंदा है और बिलकुल स्वस्थ है |

लेकिन. मुझे तकलीफ  इस बात की है कि उन दोनों से मिलना नहीं हो पाता है | पिछले दो सालो से मैं उनलोगों से मिल नहीं सकी | हाँ, कभी कभी फ़ोन से बात हो जाती है |

इस पर रघु काका  ने कहा …ऐसा क्यों है बेटी ?  आखिर उनलोगों से मिल क्यों नहीं पाती हो ?

रघु काका की बातें सुन कर अंजिला भावुक हो गई और कहा …,यही तो अंतर है काका …आप के समाज में और हमारे समाज में |

मैं एक विदेशी लड़की हूँ और विदेशों में आपसी रिश्ते और सम्बन्ध का ज्यादा  महत्व नहीं होता है |

मेरे मम्मी -डैडी तो है, और हमलोगों के बीच सम्बन्ध भी अच्छे है | लेकिन आपस में भावनात्मक लगाव नहीं है |  यहाँ मैंने देखा है कि बच्चो का सम्बन्ध माँ बाप से बहुत गहरा होता है और इनमे त्याग और समर्पण की भावना होती है |

मेरे माँ- बाप बचपन से ही मुझे  होस्टल में रख कर मेरी पढाई पूरी कराई | मुझे मेरे माँ -बाप का प्यार नहीं मिल सका ,क्योंकि  मेरे माता –पिता में तलाक  हो चूका है |

मेरी मम्मी  दूसरी शादी कर के प्रसन्न है और सुखी जीवन जी रही है और यही हाल मेरे पापा की है | मेरे पापा ने भी दूसरी शादी कर ली है |

ये लोग कभी कभी फोन कर लेते है और  मुझे पैसे भी देते रहते है | लेकिन मेरे लिए उनलोगों के पास टाइम नहीं है | उनलोगों की ज़िन्दगी बस मशीन बन गई है और उनका एक ही नशा है …पैसे कमाना और मौज मस्ती करना .|

इसके उलट यहाँ के लोग ज्यादा भावुक होते है और उनमे आपस का रिश्ता बहुत गहरा होता है | मैं इन्ही पर तो शोध कर रही हूँ और खुद भी यहाँ की संस्कृति और परंपरा को अपनाने की कोशिश कर रही हूँ |

मैं आप लोगों के बीच रह कर एक अजीब शांति का अनुभव करने लगी हूँ | मैं मंदिर में जाकर प्रभु से देर तक बातें भी किया करती हूँ |

अंजिला की कहानी सुन कर काका के आँख में आँसू आ गए | उन्होंने अपने गमछे से आँख को पोछते हुए कहा …यह कैसी विडंबना है, एक तरफ तुम हो जो विदेशी होकर भी स्वदेशी बनने की कोशिश कर रही हो और दूसरी तरफ मेरा अपना बेटा है जो स्वदेश को छोड़ कर विदेश में जा बैठा है. एक विदेशी के साथ |

 सचमुच यह भगवान् की कैसी लीला है,  समझ नहीं पाता हूँ |

इस तरह बात करते हुए शाम के सात बज चुके थे .| मैंने ने अंजिला से कहा ..चलिए मैडम , अब आप को होटल  छोड़ आता हूँ |

मैडम ने पूछा  ..रघु काका के खाने का क्या इंतज़ाम करोगे |

मैंने कहा … आप को छोड़ कर वापस आऊंगा और  खाना बना कर काका को खिला दूंगा |

इसपर अंजिला ने अपनी इच्छा प्रकट की और बोली…..चलो  मैं भी खाना बनाने में तुन्हें सहयोग करती हूँ और मैं खाना खा कर ही होटल जाउंगी |

इस पर मैंने कहा … मैडम,  हमलोग का खाना तो बहुत साधारण होता है और यहाँ तो काँटा- चम्मच भी नहीं है | आपको अपने हाथों से खाना  पड़ेगा |..

अंजिला हँसते हुए बोली …..तुम मेरी फिक्र मत करो.. अब मैं बिलकुल देशी बन गयी हूँ और आराम से अपने हाथों से खाना लुंगी |

इतना कह कर वो मेरे साथ मिल कर खाना बनाने लगी | और पहली बार अंजिला के हाथ का खाना |

सचमुच , आज का खाना बहुत ही स्वादिस्ट बना है ….क्योकि इसमें अंजिला का प्रेम और स्नेह भी शामिल है…(क्रमशः ).

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