# कौन हूँ मैं ?- 2

कौन हूँ मैं ?  यह एक कठिन प्रश्न है | लोगों को अपने बारे में जानने में सारी उम्र गुज़र जाती है | सच, ज़िंदगी में सबसे कठिन समय यह नहीं होता है जब कोई मुझे  समझता नहीं है , बल्कि यह तब होता है जब हम  अपने आप को ही नहीं समझ पाते.|

चलो , कुछ समय निकाल कर अपने बारे में पता करते है …कौन हूँ मैं ?

कौन हूँ मैं ?

दुनिया के भूल भुलैया में

खोया हुआ पहचान हूँ मैं ,

अपनो  ने जो ज़ख्म दिए

उन ज़ख्मों के निशान हूँ मैं,

बार बार क्यों पूछते हो यारो

कहाँ से आया, कौन हूँ मैं ?

 अनजान चेहरों के जंगल में

अपना वजूद ढूंढता, इंसान हूँ मैं

(विजय वर्मा)

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Categories: kavita

11 replies

  1. सुन्दर कविता।

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  2. Very well written. Beautiful.

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  3. Who am I?.Really a hard question. Composition is nice.

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    ज़िंदगी ने सबसे कोई न कोई कीमत वसूल की |
    कोई सपनों की खातिर, आफ्नो से दूर रहा ‘
    कोई अपनों की खातिर सपनों से |

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