साल बदल रहा है , लेकिन साथ नहीं …
स्नेह सदा बनी रहे ..

मन की थकान जो उतार दे
ऐसा वह अवकाश चाहिए
इस भागती लडखडाती ज़िन्दगी में
कुछ फुर्सत की सांस चाहिए
चेहरे को नहीं, दिल को भी पढ़ सके
ऐसे ही लोगों का साथ चाहिए |
मेरी पहली ड्राइविंग
बात उन दिनों की है जब मेरा ट्रान्सफर रेवदर शाखा से शिवगंज शाखा में हुआ था | शिवगंज वैसे ना तो शहर था और ना ही गाँव, लेकिन सारे सुख सुविधा उपलब्ध था | इसलिए मन लग जाता था | एक सिनेमा हाल “महावीर टाकिज” था जो हमारे मनोरंजन का एक मात्र साधन था |
आस पास के गाँव में ऋण देने और क़िस्त उगाही के लिए हमारी शाखा में एक जीप थी, और उसका ड्राईवर बाबूलाल जी था | जीप का उपयोग मैं फील्ड विजिट के लिए करता था |
एक बार की बात है कि हमारे जोनल मेनेजर के तरफ से फरमान आया कि हमारे शाखा और आस पास की…
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आपकी जिंदगी चहकती रहे, आपकी यादों की
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बहुत बहुत धन्यवाद सर जी |
आप सबों की शुभकामना हमारे साथ है |
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कहानी यूं ही चलती रहे ।
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मैं तो आप से भी प्रेरणा पाता हूँ |
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