आज की कविता दिल और दिमाग के बीच की कशमकश का है, मुश्किल तो यही है कि दिल की सुनो या दिमाग की ? कुछ लोग रिश्ते दिल से निभाना चाहते है और कुछ दिमाग से।
आप क्या करते है, दिल की सुनते है या दिमाग की ? आप अपने विचार जरूर मेरे साथ शेयर कीजियेगा ।
दिल और दिमाग
कागज़ पर कलम दौड़ता दिखाई देता है
आज जख्म फिर हरा दिखाई देता है
यूँ तो किसी चीज़ की कमी नहीं है लेकिन.
दुःख आज अपना हँसता दिखाई देता है |
न जाने क्यूँ मन उदास होता है
तनहाइयों में बार बार खोता है
ज़िन्दगी जैसे नीरस हो चली हो
दिल अपना बार बार रोता है |.
बहुत समझाया ज़िन्दगी को …
“शांति” में ही आनंद होता है ,
दिल और दिमाग में द्वंद है
दिल कहता, आनंद में शांति होता है
पर दिमाग इसे नकारता है
और कहता है कि
आनंद पैदा करो
शांति खुद आ जाएगी |
( विजय वर्मा )
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Categories: kavita
Good one. Nice sketches, Verma ji
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Thank you very much for your
encouraging words..
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🙏
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Stay connected…stay happy..
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🙏
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Good night
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🙏 wish you healthy time ahead
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Thank you dear..
But I must say…Good morning here..
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🙏
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Please visit http://www.retiredkalam.com
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Ok sir
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Thank you dear ..
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Very nice uncle ❤
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Thank you dear ,
Stay blessed..
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Bahut sahi kaha, anand aur shaanti mein jo sahi chunaav kar paya wahi sukhi hai 👏
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बिलकुल सही डिअर |
हमारे अन्दर हमेशा ही एक द्वंद चलता रहता है |
अपने विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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You’re welcome sir! 😊
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Stay blessed..
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बहुत ही वास्तिविक और उम्दा पंक्तियाँ
💕💕
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वास्तविकता है कि हमारे अन्दर हमेशा ही एक द्वंद चलती रहती है |
और कभी कभी ये शब्द बन कर उभर आते है |
आपके विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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True sir👌🌷🌷
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Thank you dear,
Stay connected …stay happy…
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अच्छी कविता। दिल और दिमाग दोनों का सही सामंजस्य सुखी जीवन का राज है।
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बहुत बहुत धन्यवाद /
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बेहद खूबसूरत पोस्ट
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बहुत बहुत धन्यवाद |
मुझे ख़ुशी हुई कि आपको पोस्ट अच्छी लगी |
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Lovely sketches..
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Thank you dear ..
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“दिलऔर दिमाग”
ये दोनों ऐसे होते हैं जिन्हें एक पटरी पर लाना हमेंशा ही कठिन होता है।दिल को दिमाग नहीं होता और दिमाग को दिल नहीं। दिल के विचार को हमेंशा दिमाग के तराजू पे नहीं तौला जा सकता। कुछ ऐसे फैसले होते हैं जिसे सिर्फ दिल से ही लिए जाते हैं वहीं कुछ फैसले सिर्फ दिमाग से। फिर भी दोनों ऐसी खिड़की है जो हमेंशा ही खुला रखना पड़ता है।एक के द्वारा लिए गये फैसले पर दूसरी खिड़की से अक्सर झांकना जरूरी होता है।
पर,रिश्ते की जहां तक बात होती है– वहां प्यार,स्नेह,दया,धर्म,उदारता,सहिष्णुता और सम्मान जैसे शब्द भी विचारणीय हो जाते हैं। ऐसे में दिमाग की कम दिल की अधिक आवश्यकता होती है फैसले लेने में। ये मेरे अपने विचार हैं।
वैसे विवेक भी कम महत्व की चीज नहीं होती।
:– मोहन”मधुर”
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मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
आपने बहुत अच्छी बात कही है कि दिल या दिमाग
को ज़रुरत के हिसाब से उपयोग में लाना चाहिए ताकि लिया गया निर्णय सही हो |
अपने विचार शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
कभी तुझको मुझसे गिला रहती है ,
कभी मुझको तुझसे शिकायत रहती है ,
फिर भी हमें साथ साथ रहना है …
क्योंकि, तुझको मेरी और मुझको तेरी ज़रुरत रहती है |
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