इतिहास लिखने के लिए कलम नहीं,
हौसलों की जरुरत होती है।

मेरा दिल भी तुझपे क़ुर्बान है क्या
तुझमें बसती मेरी जान है क्या
आँसू से ख़ून होने तक रुलाती है
दिल्लगी इतनी भी आसान है क्या..
अंजिला नयी रिक्शा पर बैठते ही पूछा … राजू, तुम “ई- रिक्शा” चला तो लोगे ना ?
हाँ मैडम, आप परेशान मत होइये | मैं आप को सुरक्षित मंदिर ले जाऊंगा और आज भाड़ा भी नहीं लूँगा … हँसते हुए मैं मजाक से बोला |
अंजिला राजू के चेहरे पर हँसी देख कर मन ही मन खुश हो रही थी | सच, आज के ज़माने में इतना सच्चा इंसान कहाँ मिलता है ?
उसके साथ रहने से एक अजीब सा आनंद महसूस होता है | कहीं मैं उसकी ओर आकर्षित तो नहीं हो रही हूँ..अंजिला अपनी आँखे बंद किये इन्ही ख्यालो में खोई थी तभी मेरी आवाज सुन कर उसकी तन्द्रा भंग हुई |
उसने आँखे खोल कर देखा…, मंदिर के सामने अपनी रिक्शा…
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