# रिक्शावाला की अजब कहानी # ….2

जिससे कोई उम्मीद नहीं होती ,
अक्सर वही कमाल करते है |

vermavkv's avatarRetiredकलम

अंजिला ने पता नहीं क्या जादू कर रखा था कि हमेशा मैं सिर्फ उसके बारे में ही सोचता रहता था | वह मुझे राजेंदर नहीं बल्कि “राजू”  कह कर बुलाती थी, जिसे सुनकर मुझे अपनापन का एहसास होता था |

 चाहे बाबा भोले नाथ का मंदिर जाना हो या कही और ….. मेरे रिक्शा में ही जाती थी |  सचमुच मेम  साहब थी बहुत दिलदार | जितना भी पैसे मांगता वो कभी मना नहीं करती | अपनी ज़िन्दगी तो मस्ती  से गुज़र रही थी |

मैं रात में  रैन बसेरा में बैठा रोटी खाते हुए इन्ही सब  ख्यालों में खोया हुआ था, तभी रघु काका की कड़क आवाज़ ने मुझे ख्यालों की दुनिया से हकीकत की दुनिया में ला दिया | 

मुझे बिना किसी बात के मुस्कुराता देख समझ गए कि मेरे मन में अंजिला का ही ख्याल चल रहा है |

वैसे मैं रघु काका से कुछ भी नहीं…

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