क्यों दरें ज़िन्दगी में क्या होगा ?
हर वक़्त क्यों सोचे कि बुरा होगा ,
बढ़ते रहें मंजिलों की ओर हम,
कुछ भी न मिला तो क्या ?
तजुर्बा तो नया होगा …

थानेदार के आश्वासन देने के बाद संदीप ने फैसला किया कि राधिका, रेनू और माँ को लेकर अपने घर में शिफ्ट कर लिया जाए और फिर शाम को ही सबलोग चलने को तैयार हो गए |
सोफ़िया की तो इच्छा नहीं थी कि सब लोग यहाँ से जाए क्योकि उनलोगों के रहने से इतने बड़े घर में उसका अकेलापन दूर हो गया था |
सभी लोगों के साथ हँस बोल कर कैसे समय गुज़र जाता, पता ही नहीं चलता था | लेकिन सामाजिक बदनामी के डर से उनलोगों को रोक नहीं पाई |
उनलोगों को विदा करते हुए सोफ़िया उदास हो गई , लेकिन तभी उसके दिमाग में एक ख्याल आया और वह माँ जी से बोली….अच्छा तो यह होता कि जब तक शादी नहीं हो जाती है तब तक राधिका यही रहे |
शादी के बाद दुल्हन बन कर आप के पास जाए तो ज्यादा ठीक रहेगा |
वैसे…
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