# महाभारत की बातें #..8

अश्वत्थामा आज भी जिंदा है

अश्वत्थामा का जन्म द्वापर  युग में हुआ था । इनके पिता का  नाम द्रोणाचार्य और माता का नाम कृपी था  । कहानी कुछ इस तरह है कि द्रोणाचार्य को लम्बे समय तक कोई पुत्र प्राप्ति नहीं हो रही थी | इसलिए वे  भटकते  हुए हिमाचल की वादियों में पहुँच गए |

वहाँ तमसा नदी के किनारे एक दिव्य गुफा में तपेश्वर नामक स्वय्मभू शिवलिंग है। यहाँ गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी  कृपि ने शिव की तपस्या की । इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।

कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी बाल़क को जन्म दिया । अश्वत्थामा  ने जन्म लेते ही अश्व की तरह गर्जना की और फिर  आकाशवाणी हुई की इसका नाम अश्वत्थामा रखा जाये  क्योंकि उनकी गर्जना से चारों दिशाएं गूँज उठी थी ।

जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान था जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी ।

लेकिन अश्वत्थामा के जन्म के बाद द्रोणाचार्य की आर्थिक स्थिति  बहुत ही दयनीय हो गयी थी। उन्हें अपने घर में ना पीने को  दूध तथा ना खाने को अन्न मिलता था । एक दिन अश्वत्थामा दूध  पीने  के लिए जिद्द करने लगे | तब माँ ने आटा घोल कर उन्हें दिया था  |

अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए,, पत्नी के कहने पर अपने बचपन के साथी द्रुपद के पास सहायता मांगने को  गए | लेकिन द्रुपद ने उन्हें यह कह कर तिरस्कृत किया कि दोस्ती बराबर वालों में होती है | मैं एक राजा  हूँ और तुम एक भिखारी  हो |

उनकी बातों को सुनकर द्रोणाचार्य अन्दर से पीड़ा से भर गए और उसी समय उन्होंने प्रण किया कि इसे अपनी औकात ज़रूर बताएँगे |

अंत में द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर जाने का निश्चय किया। वहां पहुँचने पर भीष्म पितामह ने कौरव और पांडव पुत्रो को अस्त्र शास्त्र विद्या सिखाने के लिए इन्हें गुरु के रूप में नियुक्त किया |

इसके बाद उन्होंने  कौरवों और पांडवों को अस्त्र और शस्त्र विद्या सिखाई तथा इनके साथ ही अश्वत्थामा को भी शिक्षा दी ।

वीर योद्धा अश्वत्थामा 

अश्वत्थामा एक वीर योद्धा था और श्रेष्ठ धनुर्धारी भी था। लेकिन उसने यह  गलती थी  कि वो  कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा । उनके  पिता द्रोणाचार्य भी कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे। अश्वत्थामा को इतनी क्षमता थी कि उन्हें पांडवों को हराने के लिए कौरवों की जरुरत नहीं थी बल्कि वो अकेला ही उन सब पर भारी थे |

भीष्म पितामह के मृत्यु सैया  पर  जाने के बाद,  द्रोणाचार्य को कौरवों का  सेनापति बनाया गया और इन्होने भयंकर युद्ध से  पांडवों में खलबली मचा दी | लेकिन पांडव के तरफ से भी साहस  के साथ   मुकाबला किया जा रहा था |

अपने शक्की स्वभाव के  कारण दुर्योधन को लग रहा था कि चूँकि अर्जुन गुरु द्रोणाचार्य  का प्रिय शिष्य है अतः वो अर्जुन के विरूद्ध अपने समर्थ के अनुसार युद्ध नहीं कर रहे है |

दुर्योधन और शकुनी के आरोपों से तिलमिलाए गुरु द्रोणाचार्य  ने युद्ध के 15 वे दिन यह संकल्प लिया कि आज ही मैं सारे पांडवों का वध करके इस युद्ध को समाप्त कर दूंगा |

मैं तब तक नहीं रुकुंगा , जब तक मुझे मेरे पुत्र अवस्थामा के मरने की खबर नहीं मिलेगी |

द्रोणाचार्य द्वारा लिए गए इस प्रतिज्ञा से पांडव के खेमे में खलबली मच गयी |

भगवान् कृष्ण चिंतित हो पांडवो को मंत्रणा के लिए बुलाया |

उन्होंने एक योजना बनाई  और कहा कि हमें छल का सहारा लेना होगा |

 युद्ध के समय द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा के मरने की झूठी खबर सुनानी होगी |

चूँकि किसी अन्य  कहने पर वे विश्वास नहीं करेंगे लेकिन अगर धर्मराज  युधिष्ठिर यह झूठ बोलेंगे तो उन्हें विश्वास हो जायेगा |

इस पर धर्मराज युधिष्ठिर झूठ बोलने के लिए तैयार नहीं हुए | तब कृष्ण ने एक योजना सुझाई |

उन्होंने कहा  पहले भीमसेन सेना में मौजूद अश्वत्थामा नमक हाथी को मारेंगे  और फिर जोर से चिल्लायेगे … अश्वत्थामा  मारा गया , अश्वत्थामा  मारा गया ,|

गुरु द्रोणाचार्य  सुनते ही धर्मराज युधिस्तिर से इसकी सत्यता की पुष्टि  करना चाहेंगे |

और अगर युधिस्तर भी यह कहते है कि अस्वथामा मारा गया तो वे विश्वास  कर लेंगे और अपना अस्त्र त्याग देंगे |

इस पर धर्मराज  युधिष्ठिर ने कहा कि मैं  कहूँगा कि अस्वथामा मारा गया , पर साथ में यह भी कहूँगा कि मनुष्य नहीं हाथी |

इस पर श्री कृष्ण तैयार हो  गए |

योजना के अनुसार भीम ने अस्वथामा नामक  हाथी को मार दिया और जोर से चिल्लाया .. अश्वत्थामा मारा गया ,,, अश्वत्थामा मारा गया |

यह सुनकर गुरु द्रोणाचार्य  ने युधिष्ठिर  से पूछा  .. क्या यह सत्य है  ? ..

इसपर युधिष्ठिर  ने कहा .. हाँ, अश्वत्थामा  मारा गया और इतना कहते ही कृष्ण के इशारे पर शंख नाद,  घंटी और घरियाल  की आवाज़ गूंज उठी | युधिष्ठिर के मुँह से निकला शब्द .. नर नहीं हाथी,  उस शोर गुल में दब गया | और द्रोणाचार्य उसे सुन नहीं सके |

द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के मृत्यु का सोच हर शोकाकुल हो गए और अपने  अस्त्र त्याग दिए | वे  रथ से नीचे उतर कर जमीं पर बैठ गए और शोकाकुल  हो अपनी आँखे बंद कर लिए |

उसी समय श्री कृष्ण का इशारा पाते ही  ध्रिश्द्युम  अपने रथ से उतरा  और तलवार से गुरु द्रोणाचार्य  का सिर काट दिया |

इंतकाम की आग 

जब इस बात का पता अश्वत्थामा को चला तो वह अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने ठान लिया कि वह पांचो पांडवों को मार डालेगा। अश्वत्थामा रात्रि के समय चुपके से उनके सिविर में गया और  उसने द्रोपदी के पांच पुत्रों को पांच पांडव समझकर मार डाला।

जब यह बात द्रोपदी को पता चली तो उसने पांचो पांडवों को उसे पकड़ कर  लाने को कहा। सभी पांडव श्रीकृष्ण के साथ उसको पकड़ने चले पड़े।

अश्वत्थामा तथा पांडवों के बीच  छोटा सा युद्ध हुआ। अश्वत्थामा अपने पिता की छल से मृत्यु होने के कारण अत्यधिक क्रोधित था। उसने क्रोध में आकर पांडवों पर ब्रम्हास्त्र छोड़ दिया | उसको कटने के लिए इधर से अर्जुन ने भी ब्रम्हास्त्र छोड़ दिया।

लेकिन ऋषि मुनियों के समझने पर अर्जुन ने तो अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को वापस लेना नहीं आता था। तो उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के पेट में पल रहे उसके बेटे की तरफ मोड़ दिया |

तब  श्रीकृष्ण क्रोधित हो उठे और बोले कि तुमने एक निर्दोष की हत्या की है और जब तुमको ब्रम्हास्त्र वापस लेना ही नहीं आता तो तुमको इसे चलाने  का हक भी नहीं होना चाहिए ।

श्रीकृष्ण का श्राप 

श्रीकृष्ण ने कहा कि ये जो तुम्हारे माथे पर मणि है इसको तुम निकाल दो क्योंकि अब तुम इसको धारण करने के लायक नहीं रहे। मणि अश्वत्थामा के जन्म से उसके माथे पर लगी हुई थी जो उसका सुरक्षा कवच था।

श्री कृष्ण का फरमान सुनते ही अश्वत्थामा घबरा उठा और भागने की कोशिश करने लगा। लेकिन श्रीकृष्ण ने जबरदस्ती उसकी मणि निकाल  ली और उसको श्राप दे दिया कि वह 5000 सालों तक इस पृथ्वी पर बेसहारा विचरण करता रहेगा | 

अश्वत्थामा आज भी जिंदा है

लोगों का कहना है कि श्री कृष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा आज तक इस पृथ्वी पर घूम रहे हैं । जगह जगह उनको देखे जाने के किस्से सुनने को मिलते हैं ।

कहा जाता है कि मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20  किलोमीटर दूर असीरगढ़ का एक किला है |  इस किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा को पूजा करते हुए देखा गया है। लोगो का कहना है कि अश्वत्थामा आज भी इस मंदिर में सबसे पहले पूजा करने आते हैं। अश्वत्थामा पूजा करने से पहले किले में स्थित तालाब में पहले नहाते हैं।

कुछ लीगो का यह भी कहना है कि अश्वत्थामा मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी देखे गए है |

अश्वत्थामा अमर है और आज भी जीवित हैं । भगवान क्रष्ण के श्राप के कारण अश्वत्थामा को कोड रोग हो गया । वह आज भी भटक रहे है ।

  चूँकि कृष्ण उनके माथे में लगी मणि निकाल ली थी , अतः वहाँ बने जख्म से रक्त टपकता है और रक्त के दर्द से वे कराहते हैं ।

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