
शिखंडी का प्रतिशोध
शिखंडी सिर्फ महाभारत का एक किरदार नहीं है. बल्कि उसका अलग ही महत्व है.| वो शिखंडी, जिसे एक वर्ग के अगुआ के रूप में देखा जाता है |
आज के ब्लॉग में आइये सिखंडी के बारे में जानते है |
दरअसल शिखंडी अपने पुनर्जन्म में काशीराज की राजकुमारी अम्बा थी |
उसकी दो और बहने थी जिनका नाम अम्बिका और अम्बालिका था।।
एक समय की बात है कि अम्बा के विवाह योग्य हो जाने पर उसके पिता ने अपनी तीनो पुत्रियों का स्वयंवर रचाया।
लेकिन उसी समय हस्तिनापुर के संरक्षक भीष्म ने अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए जो हस्तिनापुर का राजा भी था, काशीराज की तीनों पुत्रियों को स्वयंवर से बल पूर्वक हरण कर लिया। और उन तीनों को वे हस्तिनापुर ले आए ।
अम्बा पहले से ही शाल्व नरेश से प्रेम करती थी, इसलिए उसने हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य से विवाह करने से मना कर दिया |
तब भीष्म ने अम्बा को उसके प्रेमी के पास पहुँचाने का प्रबंध कर दिया |
किंतु अम्बा के हरण होने के कारण उसका प्रेमी रजा शाल्व उसे अपनाने से इनकार कर दिया और वहां से अम्बा को तिरस्कृत होकर लौटना पड़ा ।
अम्बा ने इन सब का दोषी भीष्म को माना | इसलिए भीष्म से विवाह करने का हठ ठान लिया | उसने भीष्म से विनती किया कि वह उसे अपना लें , वर्ना वह अपना प्राण त्याग देगी |
लेकिन भीष्म तो आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा से बंधे थे | इसलिए उन्होंने उससे शादी करने से इनकार कर दिया |

अतः अम्बा प्रतिशोध वश भीष्म को दण्डित करने के लिए सहायत मांगने हेतु बहुत सारे राजाओं के पास गयी |
सारे राजाओं ने भीष्म के ताकत को देखते हुए उसके मदद को तैयार नहीं हुए | उन्ही में से कुछ राजाओं ने अम्बा को भीष्म के गुरु परशुराम के पास मदद मांगने की सलाह दी |
अम्बा अपने दुःख को लेकर परशुराम के पास पहुँची | अम्बा के दुःख से दुखी होकर परशुराम जी स्वयं भीष्म के पास पहुंचे और उन्होंने समझाने का प्रयास किया |
उनके इनकार करने पर , उन दोनों में भयंकर युद्ध हुआ | लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला , क्योकि भीष्म को तो इच्छा मृत्यु का वरदान था |
अंततः अम्बा ने प्रतिज्ञा की कि वही एक दिन भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी । इसके लिए अम्बा ने घोर तपस्या किया और तब उसका जन्म पुनः एक राजा की पुत्री के रूप में हुआ । पुर्वजन्म की स्मृतियों के कारण अम्बा ने पुनः अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए घोर तपस्या आरंभ कर दी।
तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया |
उसके बाद शिखण्डी का जन्म पंचाल नरेश द्रुपद के घर मूल रूप से एक कन्या के रूप में हुआ था। उसके जन्म के समय एक आकशवाणी हुई कि उसका लालन – पालन एक पुत्री नहीं वरन एक पुत्र के रूप मे किया जाए।
इसलिए शिखंडी का लालन-पालन पुरुष के समान किया गया। उसे युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया गया |
और कालंतर में उसका विवाह राजा हिरण्यवर्मा की पुत्री से करवा दिया गया।
विवाह के बाद प्रथम रात्री को उनकी पत्नी को शिखंडी के पुरुष ना होने का भेद का पता चला. और वह क्रोध से उबल पड़ी |
राजकुमारी ने शिखंडी को बहुत अपमानित किया और वो अपने पति का त्याग कर अपने पिता के पास चली आई |
पिता ने जब दामाद का सच जाना तो राजा द्रुपद पर क्रोधित हो उठे क्योंकि उन्होंने छल किया था |
हिरण्य वर्मा ने सेना को युद्ध लड़ने लिए तैयार होने होने को कहा |
दूसरी ओर इस घटना से आहत शिखंडी ने आत्महत्या का विचार लेकर वह पंचाल से भाग गए । वे वन में जाकर घोर तपस्या करने लगे |
शिखंडी के तप से प्रसन्न होकर यक्ष यक्षस्थूलाकर्ण ने अपना लिंग परिवर्तन कर अपना पुरुषत्व उन्हें दे दिया। इस प्रकार शिखंडी एक पुरुष बनकर पंचाल वापस लौट आए | अपने महल लौटकर अपने पिता को सारी बात बता दी | इसके बाद युद्ध टाला गया |
हिरण्य वर्मा ने शिखंडी के पुरुषत्व की परीक्षा ली और फिर अपनी भूल के लिए क्षमा मांग कर अपने बेटी को शिखंडी को ख़ुशी ख़ुशी सौप दिया |
दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय हो गया लेकिन जिस यक्ष ने अपना पुरुषत्व शिखंडी को दिया उसके साथ तो गजब हो गया |
यक्ष राज कुबेर जब यक्षस्थूलाकर्ण के पास आये तो स्त्री के रूप में होने की वजह से वह यक्ष के सामने नहीं आया | जिससे कुबेर क्रोधित हो गए और सारी बातें जान कर उन्हें शाप दे दिया कि जब तक शिखंडी जीवित रहेगा तब तक तुम स्त्री रूप में ही रहोगे |
दरअसल ऐसा इसलिए हुआ क्योकि भगवान् शिव ने राजा द्रुपद को वरदान दिया था कि तुम्हे एक पुत्र प्राप्त होगा जो विवाह से पहले तक स्त्री रूप में रहेगा और विवाह के बाद पुरुष बन जायेगा | इस तरह महादेव का वरदान पूर्ण हुआ |

शिखंडी का प्रतिशोध पूरा हुआ
महाभारत का वो युद्ध जिसमे कौरवो के तरफ से भीष्म पितामह संचालन कर रहे थे और पांडवो के तरफ से भगवान् श्री कृष्ण उनका साथ दे रहे थे | जब अर्जुन का बाण चलता था तो कौरव की सेना में हाहाकार मच जाता था और रोज़ शाम में जब युद्ध समाप्त होता था तो सब योद्धा अपने अपने शिविरों में लौट आते थे |
पितामह भीष्म भी जब अपने शिविर में वापस पहुंचे तो वहाँ दुर्योधन आ कर उन पर आरोप लगाया और वो पितामह से शिकायत भरी लफ्जों में कहा .. भीष्म पितामह, आप अपनी क्षमता के अनुरूप नहीं लड़ रहे है | ऐसा लगता है कि हमारी तरफ होकर भी आप पांडवों का साथ दे रहे है | इसलिए आप पांडवों का बद्ध नहीं कर पा रहे है |
दुर्योधन के इस आरोप से तंग आकर उन्होंने अचानक से प्रतिज्ञा ले ली कि मैं गंगापुत्र भीष्म, आज यह प्रतिज्ञा लेता हूँ ..कि कल युद्ध भूमि में मैं पांचो पांडवो का बद्ध कर दूँगा |
बस इतना सुनते ही दुर्योधन खुश हो गया और अपने भाइयों और मित्रों को जाकर बताने लगा, कि कल ही यह युद्ध समाप्त हो जाएगा | क्योंकि कल पितामह भीष्म सभी पांडवों का बद्ध करने वाले है ,ऐसी प्रतिज्ञा उन्होंने ली है | कल हमारे कोई दुश्मन नहीं बच सकते |
यह बात आग की तरह चारो तरफ फ़ैल गई और पांडवों के शिविर तक भी पहुंची | वहाँ द्रौपदी मौजूद थी और उसे जब यह बात पता चली तो वो भागे भागे कृष्ण के पास आई और बोली भगवान आप हमें बचाइए | हमारे पतियों पर संकट आन पड़ी है |
पितामह भीष्म ने कल ही रन भूमि में पांडवो का वद्ध करने की प्रतिज्ञा ले ली है | कृपया इस समस्या का समाधान बताएं | तब श्री कृष्ण कुछ सोच विचार कर कहा .. चलो पितामह के शिविर में चलते है | शायद वहाँ कोई समाधान मिल जायेगा |

श्री कृष्णा भीष्म के शिविर के बाहर खड़े रहे और द्रौपदी को शिविर के अंदर भेजा | जब द्रौपदी अंदर पहुंची तो पितामह आँखे बंद कर ध्यान में बैठे थे | द्रौपदी हाथ जोड़ कर बोली..”प्रणाम पितामह”, जैसे ही द्रौपदी ने यह कहा तो पितामह भीष्म ने कहा .. अखंड सौभाग्यवती भवः | बोलकर उन्होंने जैसे ही आँखे खोली तो द्रौपदी को सामने पाकर असमंजस में पड़ गए |
पितामह बोले.. हे द्रौपदी, तुम मुझसे ये क्या करवा दिया | .. मुझसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद ले लिया ? जबकि हमने कुछ देर पहले ही प्रतिज्ञा ली है कि कल तुम्हारे पतियों का रण भूमि में वद्ध करूँगा |
तुमने हो हमें असमंजस में डाल दिया ..यहाँ इस तरह आने की तुम्हारी खुद की योजना नहीं लगती | यह बताओ कि यह किसकी योजना थी.. तुम ठीक ठीक बताओ कि यहाँ तुम किसके कहने पर यहाँ आई हो |
द्रौपदी ने सच सच बता दी कि यह श्री कृष्णा का सुझाव था और उन्ही के साथ आई हूँ | वो अभी बाहर खड़े है | तो पितामह उन्हें शिविर में अंदर लाने को कहा |
जब श्री कृष्ण शिविर के अंदर पहुचे तो पहले पितामह हाथ जोड़ कर प्रणाम किए और फिर कहा कि आप ने मुझे कैसी असमंजस में डाल दिया है प्रभु | मेरी प्रतिज्ञा को मेरी ही वचन से तुडवा दिया |
एक तरफ पांडवों का बद्ध करने की प्रतिज्ञा और दूसरी तरफ द्रौपदी को अखंड सौभाग्वती का वरदान | अब तो इस समस्या का समाधान आप को ही बताना होगा |
तब भगवान कृष्ण बोले.. हे पितामह, उपाय तो आप को स्वम ही पता है |
तब पांडवों को बुलाया गया और सबसे पहले भीष्म पितामह ने सबों से एक वचन से ले ली कि पितामह की उनकी एक बात माननी होगी | जिसे पांडव बंधू ने स्वीकार कर ली | तब भीष्म ने अर्जुन की ओर मुखातिब होकर बोले कि कल रण भूमि में अर्जुन तुम मेरा बद्ध करोगे |
इस पर अर्जुन ने तुरंत कहा, मैं आपका वद्ध कैसे कर सकता हूँ पितामह | फिर पितामह बोले कि तुम्हारे प्राण लेने का विचार मैंने तो त्याग दिए है लेकिन तुम्हे कल हमारा प्राण लेना ही होगा | और तुम्हे यह काम अवश्य ही करना होगा, यह मेरी आज्ञा है |
इस पर अर्जुन बोले कि आप के सामने मैं तो बहुत कमजोर एक योद्धा हूँ | तो उन्होंने कहा कि .बिलकुल सही, अगर मैं पूरी ताकत से लडूँगा तो तुम मुझे हरा नहीं सकते |
पर एक उपाय है जिससे तुम यह काम कर सकते हो | तुम सामने किसी नारी को कर देना तो मैं अपना अस्त्र नहीं चला पाउँगा | तो अर्जुन बोला कि युद्ध भूमि में औरत कहाँ से लाऊंगा, पितामह |
तब भीष्म ने एक योजना बताई कि तुम्हारे सेना में जो शिखंडी है , वास्तव में वह शिखंडिनी पैदा हुई थी | बाद में वो यक्ष की मदद से शिखंडी हो गया | उसे तुम सामने लेकर आना और उसके पीछे से तीर चला देना |

कुरुक्षेत्र के युद्ध में १० वें दिन शिखंडी अर्जुन के साथ युद्ध भूमि में भीष्म के सामने आ गया, लेकिन भीष्म ने शिखंडी के रूप में अंबा को पहचान लिया और उन्होंने अपने हथियार रख दिए।
और तब अर्जुन ने शिखंडी के पीछे से उन पर बाणों की बौछर लगा दी और उन्हें बाण शय्या पर लिटा दिया। इस तरह अर्जुन द्वारा भीष्म को परास्त किया गया, जिन्हें किसी भी अन्य विधि से परास्त नहीं किया जा सकता था।
और अंत में महाभारत के युद्ध में शिखंडी ही भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बनी।

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