दो हीं चीजें ऐसी है, जिन्हें देने में किसी का कुछ नहीं जाता …
एक मुस्कराहट और दूसरा दुआ …हमेशा बांटते रहिये , हमेशा बढती रहेगी …

पापा और मम्मी को होश तो थी लेकिन वे लोग दर्द से छटपटा रहे थे | कांच के टुकड़े उनके चेहरे में धंस गए थे क्योंकि हमारी कार बहुत जोर से चट्टान से टकरा गई थी | वो तो गनीमत थी कि मुझे ज्यादा चोट नहीं आई थी |
मैं अपने मम्मी और पापा को इस तरह तड़पता देख रही थी और अपने को बिलकुल असहाय महसूस कर रही थी | मेरी सिसकियाँ निकल रही थी लेकिन मेरी रोने की आवाज़ सुनने वाला और सहायता करने वाला वहाँ कोई नहीं दिख रहा था |
रास्ता बिलकुल सुनसान था और चारो तरफ धुप अँधेरा भी |
ऐसी स्थिति में मैं डर से थर – थर काँप रही थी | मुझे डर लग रहा था कि कहीं वो बदमाश लोग फिर से ना आ जाएँ |
मैं रोते हुए भगवान् से प्रार्थना कर रही थी …हे भगवान्, मेरे मम्मी –…
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