रिक्शावाला की अजीब कहानी .…12

चिल-चिलाती धूप में सड़क पर है रिक्शा दौड़ता,

किसी अपनों के सपने संजोये है रिक्शा दौड़ाता .

छिपाते हुए अपने मुफलिसी के घावों को

देखो, वो जा रहा अपने गाँव है रिक्शा दौड़ाता…..

कल रात की घटना को याद करके मन सिहर जाता है | ऐसा लग रहा था जैसे रघु काका की आत्मा इस झोपडी में भटकती रही हो | इसलिए अब इस झोपडी में रहने का कोई मतलब ही नहीं है |

यहाँ अब ना तो मेरे पास कोई  काम है और ना ही खाने पीने का कोई साधन |

वैसे भी सोहन काका और बहुत से लोग कल ही अपने – अपने गाँव के लिए पैदल ही रवाना हो चुके है |

इन्ही सब बातों को सोचता हुआ आज सुबह ही सुबह कुछ ज़रूरी सामानों को रिक्शे पर लाद  कर रस्सी से अच्छी तरह बाँध दिया | ताकि उबड़ खाबड़ रास्ते पर चलने से भी रिक्शे से सामान नहीं गिर सके |

मैंने तो कल रात में ही ठान  लिया था कि चाहे जैसे भी हो,…. रास्ते  में कितनी ही तकलीफ क्यों ना सहना पड़े, रिक्शे से ही अपने गाँव की दुरी नाप दूंगा |

लोग कहते है कि यहाँ से करीब ४०० किलोमीटर दूर हमारा गाँव होगा | और रास्ता नहीं मालूम है तो  क्या हुआ ..लोग पूछते – पूछते कहाँ नहीं चले जाए है |

मैं बस चलने को ही हुआ कि पीछे से किसी ने आवाज़ लगाईं | पीछे मुड कर देखा तो बिनोद भाई मेरी  तरफ आ रहे थे |

मुँह  को पूरी तरह गमछा से लपेटे हुए, मुझे देख कर आश्चर्य से पूछा…राजू भाई ! आप भी अपने गाँव जा रहे हो क्या ?

हाँ भाई,  अब यह शहर बेगाना लगता है,  इसलिए अब बस निकल रहे है |

कल सोहन काका और आज आप भी जा रहे हो | मैंने तो बिलकुल अकेला पड़ जाऊंगा …वो चिंतित हो कर  बोल रहे थे |

तो आप भी अपने गाँव चले जाइये | आप का गाँव तो सोहन काका के गाँव से नजदीक ही है …मैंने कहा |

आप ठीक कहते हो. अगर आप के जाने के रास्ते  में मेरा गाँव पड़ता तो आप के साथ ही निकल लेता | ल्रेकिन मेरा गाँव तो इलाहाबाद की तरफ है, बिलकुल उलटी दिशा है …उन्होंने दुखी हो कर कहा |

मैं राम राम कह कर रिक्शे पर बैठा ही था कि बिनोद भाई  ने फिर कहा …राजू भाई दो मिनट रुकिए, हम घर से अभी आते है |

मुझे समझ में नहीं आया कि हमें रुकने के लिए क्यों  बोल रहे है | फिर भी मैं अपने रिक्शे पर बैठा उनके  वापस आने का इंतज़ार करता रहा |

थोड़ी देर के बाद बिनोद भाई आये और एक पेपर में लपेट कर दो रोटी और गुड़ देते हुए कहा …खाली पेट यात्रा की शुरुवात नहीं करनी चाहिए | दो रोटी खा लीजिये और इ बोतल में पानी है, पी कर और भगवान् का नाम लेकर रवाना हो जाइये |

बहुत बहुत धन्यवाद  बिनोद भाई ..अगर जिंदा रहे तो फिर वापस आप से भेट होगी | मेरे आँखों में आँसू आ गए | मुझे रोता देख बिनोद भाई की भी आँखे नम हो गई |

दुःख क्यों ना हो, आखिर दो साल का साथ जो था |

सुबह से कुछ नहीं खाया था सो भूख तो लगी हुई थी | मैं पेपर में लपेटे हुए रोटी और गुड को निकाल कर खाने लगा |

बिनोद भाई  बोले… आज घर में कोई सब्जी नहीं था,  इसलिए……

मैं बीच में ही बात काट कर  बोल पड़ा …अरे कोई नहीं भाई | इसे खा कर ही मन तृप्त हो गया | सच कहूँ तो भूख तो लगी ही थी |

ठीक है राजू भाई…, अपना ख्याल रखना …मुझे जाते हुए देख हाथ हिलाता हुआ बोल रहे थे |

रिक्शा तेज़ गति से आगे बढ़ रही थी, सड़क बिलकुल सुनसान थी , और किसी तरह मेन हाईवे पर आ गया,  तभी सड़क के किनारे मिल का पत्थर दिखाई दिया ….पटना २५० किलोमीटर |

मैं समझ गया इसी रास्ते पर चलना है | रास्ते में सिर्फ ट्रक चलते हुए दिखाई पड़  रहे थे |

मैं सड़क के बायीं तरफ से चलता रहा, तभी कुछ लोग पैदल चलते दिखाई दिए |

मैंने जानने के इरादे से पूछा …आप लोग माथे पर गठड़ी लेकर पैदल कहाँ जा रहे हो ?…

उन्होंने चलते हुए ही बताया | हमलोग बनारस में मिस्त्री का काम  करते थे | अब करोना के कारण काम सभी बंद हो गए है |

मकान मालिक घर छोड़ने के लिए कहने लगा | तब हमलोग क्या करते | मज़बूरी में वापस गाँव की ओर जा रहे है | उम्मीद है ५० किलोमीटर की दुरी तीन दिन में पूरी कर पाएंगे अगर सब कुछ ठीक रहा तो |

तभी मिस्त्री की पत्नी बोल पड़ी…भाई साहब !  आप का रिक्शा तो खाली  ही है,  थोड़ी दूर तो ले चलो,  ताकि शरीर में वापस जान आ जाये |

मैंने देखा वो मिस्त्री की पत्नी गर्ववती है ,और चलने में कष्ट हो रहा है |

DCF 1.0

मैं रिक्शा को तुरंत  रोक कर कहा …बैठ जाओ बहन | मैं तुम्हे जहाँ तक साथ रास्ता जायेगा वहाँ तक ले चलूँगा |

मिस्त्री जो उस औरत का पति था, मेरे व्यवहार से काफी प्रभावित हुआ और कहा …तुम बहुत अच्छे आदमी लगते हो | कहाँ तक जाओगे ?

मुझे तो दरभंगा तक जाना है, जो यहाँ से ४०० किलोमीटर दूर है |

बाप रे, इतना दूर ? तुम्हे तो बहुत समय लगेगा | शायद महीनो लग जायेगा ..उसने घबरा कर बोला |

अब और कोई उपाय नहीं है भैया | चाहे जो भी हो चलते जाना है |

बातों बातों में उससे दोस्ती हो गई और दोपहर की चिलचिलाती धुप  से हाल बेहाल था | तभी मिस्त्री भैया ने कहा …अरे भाई, इतनी गर्मी में रिक्शा चला कर थक गए होगे,  क्यों ना सामने उस पेड़ के नीचे थोडा आराम कर लें |

आप ने तो मेरे मन की बात कह दी,  मैं भी यही सोच रहा था …मैंने कहा और रिक्शा को पेड़ की छावं में खड़ा कर वही बैठ कर सुस्ताने लगा |

वहाँ पर कुछ और भी पैदल यात्री बैठ कर विश्राम कर रहे थे |

उसकी पत्नी ने गठड़ी खोल कर उस में से सत्तू वाला रोटी एक पेपर पर बिछा कर बोली …रिक्शा वाले भैया आप भी रोटी खा लो | जब साथ चल रहे है तो खाना भी साथ  खाएंगे |

हे प्रभु , तेरी लीला  निराली है | तूने इस भूखे को खाना का इंतज़ाम कर दिया और आज एक बहन के हाथों खाना भेज दिया …मैं मन ही मन प्रभु को धन्यवाद दिया |

भूख तो मुझे बहुत जोर की लगी थी .. मैं भी उनलोगों का दिया हुआ दो रोटी लेकर खाने बैठ गया |

पहला निवाला मुँह तक आया ही था कि मैंने  देखा …एक छोटा सा मासूम बच्चा पास में बैठा हुआ मेरी ओर ललचाई नज़र से देख रहा है | शायद वो भी बहुत भूखा लग रह था |

रोटी का टुकड़ा मेरे मुँह में जाते जाते रुक गया मैं उठ कर उस बच्चे के पास गया और उसकी माँ से पूछा …लगता है तुम्हारे बच्चे को बहुत भूख लगी है | खाना है तो उसे खिला दो |

मेरी बात सुन कर उसके आँख में आँसू आ गए | अपने बच्चे को सीने से लगा कर बोली …सुबह से हमलोग कुछ भी नहीं खाए है, भैया | इस वीरान जगह में कहीं से भीख भी नहीं मिल सकती है जिससे अपने बच्चे की भूख मिटा सकूँ |

मुझे उस बच्चे को देख कर बहुत दया आ रही थी इसलिए उसकी माँ से कहा …मेरे पास दो रोटी है , इसमें से एक रोटी तुम भी लेकर इस बच्चे को खिला दो  |

उसने झट से रोटी ले ली और दोनों माँ बेटा मिल कर रोटी खाने लगे |

रोटी खाने के बाद पानी पी कर मुझे बहुत आशीर्वाद देने लगी | उसे क्या पता कि इस का हक़दार तो मेरी मुँह बोली बहन है, जो थोड़ी दूर पर बैठी रोटी खा रही थी

मैं वापस अपने जगह पर आ गया और बाकि बचे एक रोटी को खा कर पानी पी लिया |

पेट तो नहीं भरा लेकिन मन को संतुष्टि हुई |

मैंने उस बहन से कहा ….वाह,  मज़ा आ गया बहन |  बहुत दिनों के बाद सत्तू वाली रोटी (मकुनी ) खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है | आज घर की याद आ गयी | बहुत बहुत धन्यवाद आप लोगो का |

इसमें धन्यवाद किस बात की भाई,… दाने  दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है…मिस्त्री भाई ने कहा |

हमलोग खाना खा कर एक घंटा आराम किया … और फिर अपनी यात्रा शुरू कर दी |

मैं ने मिस्त्री भाई को कहा कि तुम भी अपने पत्नी के साथ रिक्शे में बैठ जाओ | मुझे तो रिक्शा खीचने की आदत है |

मैं एक शर्त  पर तुम्हारी रिक्शा पर बैठूँगा ….मिस्त्री भाई ने कहा  |

कौन सी शर्त भाई …मैंने आश्चर्य से पूछा |

शर्त यह कि थोड़ी दूर के बाद मैं रिक्शा खीचूँगा और तुम पीछे बैठ कर आराम करोगे |

इस तरह फेर बदल कर रिक्शा चलाते  रहेंगे तो किसी को भी ज्यादा थकान नहीं होगी |

लेकिन आप को रिक्शा चलाने आता है भाई …..मैंने पूछा |

अरे, हाँ – हाँ,  जब दिल्ली में था तो वहाँ रिक्शा ही चलाता था |

तब तो आप की शर्त मंज़ूर है और फिर क्या था अपनी रिक्शा अपनी गति से चलने लगी |

कहते है ना कि जब रास्ते में कोई साथी मिल जाये तो रास्ते आसानी से कटने लगते है |

लेकिन सचमुच ज़िन्दगी इतनी आसान  होती नहीं है | सामने ही पुलिस वाला दिख गया, जो आगे जाने से रोक रहा था |

हमलोग बहुत सारे लोग इस सड़क पर चल रहे थे | सभी को सूना कर भोपू से जोर जोर से बोलने लगा ….  आगे जाने की मनाही है,  इसलिए आप सभी लोग वापस लौट जाएँ |

मैं तो सुन कर सकते में आ गया | अब भला हम कैसे अपने गाँव पहुँच पाएंगे | तभी हमलोग मजदूर भाइयों में एक ने कहा …आप लोग चिंता मत करो,  मुझे दूसरा रास्ता पता है ..जो पास के गाँव से हो कर जाती है |

हाँ,  दुरी थोड़ी  बढ़ जाएगी | लेकिन और दूसरा उपाय भी तो नहीं है |

हमलोग चौड़ी हाईवे की सड़क को छोड़ कर गाँव की पगडण्डी पकड़ ली |

कुछ दूर पगडण्डी पर चलने के बाद फिर हाई वे पर आ गया ……..

इसी तरह रास्ते कट रहे थे …तभी हम ने देखा एक बृद्ध  आदमी सड़क के किनारे पड़ा छटपटा रहा है | पता करने पर उसके साथ जो थे उन्होंने बताया कि एक गाड़ी ने उसे धक्का मार  कर भाग गया है |

काफी खून बह रहा है , इन्हें जल्द हॉस्पिटल ले जाना ज़रूरी है लेकिन कोई भी गाड़ी इधर से गुज़रता है, वो मदद के लिए रुकता ही नहीं है………(क्रमशः )…

इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें…

रिक्शावाला की अजीब कहानी …13

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

If you enjoyed this post, don’t forget to like, follow, share and comments.

Please follow the blog on social media….links are on the contact us page

http:||www.retiredkalam.com



Categories: story

6 replies

  1. कहानी में बहुत मजा आ रहा है।

    Like

  2. Beautiful story with beautiful pictures. But it is too long and still have suspense.

    Liked by 1 person

  3. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    अच्छे लोगों का स्वभाव गिनती के शुन्य जैसा होता है ,
    जैसे शुन्य की कोई कीमत नहीं होती, परन्तु….
    शुन्य जिसके साथ होता है , उसकी कीमत बढ़ जाती है |

    Like

Leave a reply to vermavkv Cancel reply