
मेरा दिल भी तुझपे क़ुर्बान है क्या
तुझमें बसती मेरी जान है क्या
आँसू से ख़ून होने तक रुलाती है
दिल्लगी इतनी भी आसान है क्या..
अंजिला नयी रिक्शा पर बैठते ही पूछा … राजू, तुम “ई- रिक्शा” चला तो लोगे ना ?
हाँ मैडम, आप परेशान मत होइये | मैं आप को सुरक्षित मंदिर ले जाऊंगा और आज भाड़ा भी नहीं लूँगा … हँसते हुए मैं मजाक से बोला |
अंजिला राजू के चेहरे पर हँसी देख कर मन ही मन खुश हो रही थी | सच, आज के ज़माने में इतना सच्चा इंसान कहाँ मिलता है ?
उसके साथ रहने से एक अजीब सा आनंद महसूस होता है | कहीं मैं उसकी ओर आकर्षित तो नहीं हो रही हूँ..अंजिला अपनी आँखे बंद किये इन्ही ख्यालो में खोई थी तभी मेरी आवाज सुन कर उसकी तन्द्रा भंग हुई |
उसने आँखे खोल कर देखा…, मंदिर के सामने अपनी रिक्शा पहुँच चुकी थी |
मैं ने कहा ….मैडम, हमलोग मंदिर पहुँच गए है |
इस पर अंजिला ने आश्चर्य से कहा …अरे, इतनी जल्दी हमलोग मंदिर भी पहुँच गए ?
इस पर मैंने हँसते हुए ज़बाब दिया … हाँ मैडम ! हमलोग तो “ ई –रिक्शा” से आये है, जल्दी तो पहुंचेगे ही |
यह रिक्शा तो मशीन से चलता है ना, इसलिए तेज गति से चल कर हमलोग कम समय में ही पहुँच गए ….. मैं अपनी नयी रिक्शे पर हाथ फेरते हुए बोला |
अंजिला रिक्शा से उतर कर मुझे कुछ पैसे दिए और कहा …पास के दूकान से फूल, मिठाई और नरियल ले कर आओ, आज मैं पूजा करुँगी |
जी मैडम , आप तो यहाँ इतने दिनों तक रहने के बाद, हमलोगों की पूजा करने की विधि और हमारी धार्मिक आस्था के बारे में अच्छी तरह जान गई है ..,,मैंने आश्चर्य प्रकट करते हुआ कहा |
कैसी बातें करते हो राजू ! मैं तो इन्ही सब चीजों पर शोध कर रहीं हूँ | मैं कैसे नहीं जानूंगी भला | और हाँ, मुझे अब भगवान् में भी आस्था हो गई है …अंजिला ने मंदिर की ओर देखते हुए कहा |
मैं फूल माला और प्रसाद लेकर आ गया और अंजिला ने रिक्शा को फूलों की माला से सजा दी | नरियल फोड़ कर विधिवत पूजा अर्चना की |
अंजिला मेरे साथ मंदिर के अन्दर जाकर भगवान् को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और पंडित जी से प्रसाद लेकर हमलोग रिक्शे के पास आ गए |

मैंने अपने हाथों से अंजिला के मुँह में मिठाई खिलाई और रिक्शा दिलाने के लिए धन्यवाद दिया |
इसमें धन्यवाद कैसा राजू ?
तुम तो मेरे दोस्त हो और मुसीबत में दोस्त की मदद करना ही इन्सानियत है ..अंजिला बोलते हुए भावुक हो गई |
अच्छा ठीक है मैडम, चलिए अब आप को होटल छोड़ देता हूँ | वैसे भी आप दिन भर की भगा -भागी में काफी थक गयी होंगी …मैंने अंजिला को हाथ पकड़ कर रिक्शे में बिठाया |
थोड़ी ही देर में हमलोग होटल आ गए और मैंने घड़ी देखा तो रात के आठ बज चुके थे |
अभी हमें रघु काका के पास जाकर उनसे आशीर्वाद भी लेना है, वो मेरे पिता तुल्य है | वो नाराज़ है तो क्या हुआ | गुस्सा करना उनका अधिकार है और उनको मनाना मेरा कर्त्तव्य |
इस बनारस नगरी में एक वही तो है जो हरदम मेरा ख्याल रखते है |
ऐसा सोच कर मैंने अंजिला से कहा …अब मुझे जाने दीजिये | अभी रघु काका के पास भी जाना है |
ठीक है चले जाना , लेकिन मेरे साथ डिनर करने के बाद …अंजिला ने विनती करते हुए कहा |
नहीं नहीं मैडम, अगर देर हो गयी तो रघु काका अपनी रिक्शा लेकर निकल जायेगे और उनसे भेंट नहीं हो पाएगी |
अंजिला की सहमती पाकर, मैं अपनी नयी रिक्शा लेकर रघु काका के झोपडी की ओर चल पड़ा |
और मैं थोड़ी देर के बाद उनके पास पहुँच गया | रघु काका अपनी रिक्शा लेकर निकलने ही वाले थे कि मुझे देख कर वो रुक गए |
मैंने काका के पैर छू कर प्रणाम किया और बोला … काका, प्रसाद लेकर सबसे पहले आप के पास ही आया हूँ….आपको प्रसाद देने और आपका आशीर्वाद लेने | मुझसे अगर कोई भूल हुई है तो हमें माफ़ कर दें और अपना आशीर्वाद दीजिये |
इस पर रघु काका प्रसाद लेते हुए धीरे से कहा …खुश रहो, आबाद रहो |
लेकिन मुझे उनकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि वो अभी भी हमसे नाराज़ है | वो ऐसा सोच रहे होंगे कि मैंने उन्हें चिढ़ाने के लिए नया रिक्शा लेकर उनके पास आया हूँ |
कुछ देर तक तो हमलोग यूँ ही खड़े रहे, मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि उनसे क्या बोलूं …,उनको कैसे समझाऊं |
तभी उन्होंने अपना रिक्शा उठाया और चल दिए | मैं खड़ा सिर्फ देखता रह गया |

मैं भारी मन से अपने रैन बसेरा में वापस चला आया | दिन भर की थकान के कारण जल्द ही नींद आ गयी और सुबह उठा तो दिन काफी चढ़ चुके थे |
मैं हडबडाहट में उठा और ज़ल्दी ज़ल्दी- तैयार होने लगा | फिर भी मैडम के पास पहुँचने में देर हो ही गयी |
अंजिला पहले से ही तैयार बैठी थी और मुझे देखते ही उन्होंने मुझसे ने कहा …क्या बात है राजू ! ….लगता है रघु काका से काफी डांट फटकार सुने हो, इसीलिए तुम्हारा चेहरा लटका हुआ है |
चाय लो , अंजिला मेरी ओर चाय का कप देते हुए कहा ….मैं अभी अभी तुम्हारे लिए ही बना कर रखा था | इससे तुम्हारा मूड भी ठीक हो जायेगा |
हम दोनों चाय पी रहे थे तभी अंजिला बोल पड़ी …राजू , आज हम विश्वनाथ मंदिर नहीं जायेंगे बल्कि कही और चलते है | मुझे बनारस के बारे में और अधिक जानकारी चाहिए ताकि मैं अपना शोध पूरा कर सकूँ |
ठीक है मैडम , परन्तु हमारा विचार है कि उस मंदिर का जो महंत है उन्हें बनारस की बहुत जानकारी है , हमलोग पहले उनसे मिलकर कुछ जानकारी इकट्ठा करते है फिर उसी के अनुसार दिन भर घुमने का कार्यक्रम बनायेंगे …मैंने अपना विचार रखा और मैडम भी मान गई |
हमलोग थोड़ी ही देर में बाबा भोलेनाथ के सामने थे | मैंने भी हाथ जोड़ कर भगवान् को प्रणाम किया | तभी मेरी नज़र थोड़ी दूर पर बैठे महंत जी पर पड़ी वो वहाँ बैठे कुछ लिख- पढ़ रहे थे |
प्रणाम महंत जी …अंजिला ने हाथ जोड़ कर महंत जी को प्रणाम किया |
आशीर्वाद देते हुए उन्होंने पूछा …कैसे आना हुआ बच्चों ?
मुझे बनारस नगरी के बारे में आप से जानने की इच्छा है, आप मुझे कुछ यहाँ के बारे में बताएं |
उन्होंने कहा ..ऐसा माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तब रौशनी की सबसे पहली किरण काशी में ही पड़ी । जैसा की कहा जाता है कि भगवान शिव जी इस काशी के राजा हैं |
इसलिए इस वजह से अन्य ग्रह भी अपनी मर्ज़ी से यहाँ पर कुछ नहीं कर सकते है, जब तक कि शिव जी का आदेश न हो।
यह भी मान्यता है कि शनि देवता जब भगवान शिव जी की खोज में यहाँ आए तब वे इस शिव जी के मंदिर में लगभग साढ़े सात सालों तक प्रवेश नहीं कर पाए। इसीलिए आप देख रहे है कि मंदिर के बाहर ही “शनि देव” जी का मंदिर दिख रहा है |
बनारस एक महत्वपूर्ण धार्मिक शहर होने के साथ-साथ, यह शिक्षा और संस्कृति का भी मुख्य केंद्र है। शहर का बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी(बी.एच.यू) एशिया का सबसे बड़ा यूनिवर्सिटी है।
एक और खास विशेषता है कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, बनारस घराना इसी शहर में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है।
भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, रविदास, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, पंडित रवि शंकर, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि प्रमुख हैं। गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन भी यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।

यहाँ का एक विशेष रिवाज़ भी है जो सुनने में भले ही अजीब है पर हर साल वाराणसी में इस रिवाज़ का पालन किया जाता है। यहाँ हर साल अश्वमेध घाट पर बारिश के मौसम में मेंढकों की शादी कराई जाती है। पंडित मेंढकों की शादी के सारे अनुष्ठानों को पूरा कर मेंढकों को नदी में छोड़ देते हैं।
इसके आलावा इससे जुडी और भी जानकारी चाहिए तो पुराने धार्मिक ग्रंथो और किताबों से इन्हें प्राप्त किया जा सकता है और उन किताबों को प्राप्त करने के लिए यहाँ की प्रसिद्ध कचौड़ी -गली जाना होगा |
महंत जी की बात सुनकर मैडम ने कहा …राजू, आज हमलोग को कचौड़ी गली चलना चाहिए | मुझे तो वहाँ की विशेषताओं को देखने की इच्छा हो रही है |
मैं मैडम को अपने रिक्शा पर बैठाया और चल दिया बनारस की कचौड़ी- गली, जो बहुत ज्यादा दूर नहीं थी | जैसे ही हमलोग इस कचौड़ी गली में घुसे …..सामने ही राजबंधु की मिठाइयों की प्रसिद्ध दुकान दिखी जो देसी घी की मिठाइयां और कचौड़ी के लिए प्रसिद्ध है |
लोगो से सुना था कि उनके व्यंजनों के स्वाद ही अलहदा है। मैडम ने कचौड़ी और मिठाई देखते ही खाने की इच्छा प्रकट की / और मुझे साथ लेकर इस दुकान में बैठ गई |
भूख तो हमें भी लगी थी, सो हमलोगों ने गरम गरम कचौड़ी – जिलेबी के अलावा परवल की मिठाई का भी मज़ा लिए | वाकई बहुत स्वादिस्ट थे, खाकर मज़ा आ गया |
खाने के बाद थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर मुझे ठाकुर प्रसाद एंड संस का बोर्ड नजर आया | ठाकुर प्रसाद मतलब कि वे हिंदू कैलेंडर , पांचांग और धार्मिक पुस्तकों के बड़े प्रकाशक है ।
दूकानदार से बात करने पर पता चला कि ठाकुर प्रसाद न सिर्फ कैलेंडर बल्कि कई तरह के धार्मिक साहित्य का प्रकाशन भी करते हैं।
अंजिला जैसा चाहती थी वो सभी किताब यहाँ उपलब्ध थी | पुरे एक घंटे तक मैडम किताबों का अवलोकन करती रही और और ज़रूरत की सभी पुस्तकें पाकर अंजिला बहुत खुश थी |
इस तरह घूमते हुए शाम हो चुकी थी ..और अंजिला के चेहरे पर थकान साफ़ झलक रही थी |
थकान के वावजूद आज अंजिला बहुत खुश थी / वह मेरे रिक्शे पर बैठी और बोली….राजू, आज मुझे एक नयी बनारस को देखने और समझने का मौका मिल रहा है …….(.क्रमशः)

इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें…
रिक्शावाला की अजीब कहानी …5
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: story
Nice story
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thank you dear .please read the story in sequence and let me know your comment .
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Nice and story is progressing.
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Yes dear ..
This is a story of a poor man struggling during corona pandemic last year .
I hope you will enjoy the story..
Stay connected and stay happy…
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
इतिहास लिखने के लिए कलम नहीं,
हौसलों की जरुरत होती है।
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