
यह बात बिलकुल सत्य है कि अगर उलझे रिश्तों की गांठे खुल सकती हो, तो उन रिश्तो के धागों पर कैची नहीं चलाते , वर्ना पछताने के सिवा और कुछ नहीं हासिल होगा |
महाभारत का वो युद्ध, जिसमे कौरवो के तरफ से भीष्म पितामह युद्ध का संचालन कर रहे थे और पांडवो के तरफ से भगवान श्री कृष्ण स्वम् उनका साथ दे रहे थे |
जब अर्जुन का बाण चलता था तो कौरव की सेना में हाहाकार मच जाता था , और रोज़ शाम में जब युद्ध समाप्त होता था तो सब योद्धा अपने अपने शिविरों में लौट आते थे |
पितामह भीष्म भी जब अपने शिविर में वापस पहुँचते थे तो वहाँ दुर्योधन उन पर आरोप लगाने को तैयार बैठा रहता था | वो पितामह से शिकायत भरी लफ्जों में कहा…..भीष्म पितामह, आप अपनी क्षमता के अनुरूप युद्ध नहीं लड़ रहे है |
ऐसा लगता है कि हमारी तरफ होकर भी आप पांडवों का साथ दे रहे है | इसलिए आप पांडवों का वद्ध नहीं कर पा रहे है | यह रोज़ का नियम बन गया था, पितामह जब भी शिविर में वापस लौटते तो दुर्योधन वही आरोप दुहराता था |

एक दिन जैसे ही शिविर में पितामह पहुँचे कि दुर्योधन ने फिर से वही आरोप लगाया . | .. पितामह इस तरह रोज़ रोज़ के आरोप से तंग आकर उन्होंने अचानक से प्रतिज्ञा ले ली कि…..मैं गंगापुत्र भीष्म, आज यह प्रतिज्ञा लेता हूँ ..कि कल युद्ध भूमि में मैं पांचो पांडवो का बद्ध कर दूँगा |
बस इतना सुनते ही दुर्योधन खुश हो गया और अपने भाइयों और मित्रों को जाकर बताने लगा, कि कल ही यह युद्ध समाप्त हो जाएगा, क्योंकि कल पितामह भीष्म सभी पांडवों का बद्ध करने वाले है , ऐसी प्रतिज्ञा उन्होंने ली है |
अब हमारे कोई दुश्मन नहीं बच सकते |
यह बात आग की तरह चारो तरफ फ़ैल गई और पांडवों के शिविर तक भी पहुंची | वहाँ द्रौपदी मौजूद थी और उसे जब यह बात पता चली तो वो भागे भागे श्री कृष्ण के पास आई |
वह श्री कृष्ण से बोली…… भगवान, आप हमें बचाइए | हमारे पतियों पर संकट आन पड़ी है | पितामह भीष्म ने कल ही रन भूमि में पांडवो का वद्ध करने की प्रतिज्ञा ले ली है |
कृपया इस समस्या का समाधान बताएं | यह युद्ध आप के वजह से ही हो रहा है |
इस पर भगवान कृष्ण ने कहा … .पहली बात तो यह कि युद्ध मेरी वजह से नहीं बल्कि हर किसी के अपने अपने कर्मों और सोच की वजह से हो रहे है , और रही समाधान की बात, तो चलो पितामह के शिविर में चलते है शायद वहाँ कोई समाधान मिल जायेगा |

श्री कृष्णा भीष्म के शिविर के बाहर खड़े रहे और द्रौपदी को शिविर के अंदर भेजा | जब द्रौपदी अंदर पहुंची तो देखा कि पितामह आँखे बंद कर ध्यान में बैठे है |
द्रौपदी हाथ जोड़ कर बोली..” प्रणाम पितामह”, जैसे ही द्रौपदी ने यह कहा तो पितामह भीष्म ने कहा ..अखंड सौभाग्यवती भवः | ऐसा बोलकर उन्होंने जैसे ही आँखे खोली तो द्रौपदी को सामने पाकर असमंजस में पड़ गए |
पितामह द्रौपदी की ओर देख कर बोले…हे द्रौपदी, तुम मुझसे ये क्या करवा दिया .. मुझसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद ले लिया ? जबकि हमने कुछ देर पहले ही प्रतिज्ञा ली है कि कल तुम्हारे पतियों का रण भूमि में वद्ध करूँगा |
तुमने तो हमें असमंजस में डाल दिया | यहाँ इस तरह आने की तुम्हारी खुद की योजना नहीं लगती है | तुम सच बताओ कि यह किसकी योजना थी. |
तुम ठीक ठीक बताओ कि तुम किसके कहने पर यहाँ आई हो | इस पर द्रौपदी ने सच सच बता दिया कि यह श्री कृष्णा का सुझाव था और उन्ही के साथ यहाँ आई हूँ | वो अभी बाहर खड़े है |
तो पितामह ने उससे कहा …तुम श्री कृष्ण को शिविर में अंदर लेकर आओ |
जब श्री कृष्ण शिविर के अंदर पहुचे तो पहले पितामह हाथ जोड़ कर प्रणाम किए और फिर कहा कि आप ने मुझे कैसी असमंजस में डाल दिया है प्रभु |
मेरी प्रतिज्ञा को मेरी ही वचन से तुडवा दिया | एक तरफ पांडवों का बद्ध करने की प्रतिज्ञा और दूसरी तरफ द्रौपदी को अखंड सौभाग्वती का वरदान |
अब तो इस समस्या का समाधान आप को ही बताना होगा | तब भगवान कृष्ण बोले.. हे पितामह, उपाय तो आप को स्वयं ही पता है…
तब पांडवों को बुलाया गया और सबसे पहले भीष्म पितामह ने सबों से एक वचन ले ली कि पितामह की एक बात उन सबों को माननी होगी | जिसे पांडव बंधू ने स्वीकार कर ली |
तब भीष्म ने अर्जुन की ओर मुखातिब होकर बोले …. कल रण भूमि में अर्जुन तुम मेरा बद्ध करोगे | इस पर अर्जुन ने घबरा कर तुरंत कहा…. मैं आपका वद्ध कैसे कर सकता हूँ पितामह | फिर पितामह बोले कि तुम्हारे प्राण लेने का विचार मैंने तो त्याग दिए है लेकिन तुम्हे कल हमारा प्राण लेना ही होगा और तुम्हे यह काम अवश्य ही करना होगा, … यह मेरी आज्ञा है |

इस पर अर्जुन बोले …. आप के सामने मैं तो बहुत कमजोर एक योद्धा हूँ | इस पर पितामह ने कहा ……बिलकुल सही बोल रहे हो , अगर मैं पूरी ताकत से लडूँगा तो तुम मुझे हरा नहीं सकते | पर एक उपाय है जिससे तुम यह काम कर सकते हो |
तुम युद्ध के समय मेरे सामने किसी नारी को कर देना तो मैं अपना अस्त्र नहीं चला पाउँगा |
तो अर्जुन बोला … लेकिन , युद्ध भूमि में औरत कहाँ से लाऊंगा, पितामह | तब भीष्म ने एक योजना बताई कि तुम्हारे सेना में जो सिखंडी है ,वह वास्तव में वह सिखंदनी पैदा हुई थी | बाद में वो यक्ष की मदद से सिखंदी हो गया | उसे तुम सामने लेकर आना और उसके पीछे से तुम मुझ पर तीर चला देना |
अर्जुन ने वैसा ही किया और इस प्रकार ना तो भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा टूटने दी और सब को अपने अपने संकट से बाहर भी निकाल दिया | महाभारत की यह प्रसंग हमें ज़िन्दगी में दो बातें सिखाती है ..
पहला कि किसी भी विपरीत परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए बल्कि उस पर विजय पाने का उपाय सोचना चाहिए | हर समस्या का समाधान संभव है |
कौरव की पत्नियाँ भी अगर ऐसा कर देती तो उनको भी पितामह का आशीर्वाद मिल जाता और वो कौरव लोग भी जिंदा होते |

और दूसरी बात यह है कि…संस्कार सबसे बड़ी चीज़ है | अगर संस्कार जिंदा है तो हम जिंदा है | यही कारण था कि द्रौपदी को अखंड सौभाग्यवती का वरदान देने के बाद भीष्म पितामह ने अपने प्राण देकर उस वचन को पूरा भी किया |
दर्द …जब आँखों से निकला ,
तो सब ने कहा…”कायर” है ये..
दर्द ….जब लब्जो से निकला,
तो सब ने कहा….”शायर” है ये..
दर्द…. जब मुस्कुरा के निकला,
तो सब ने कहा….”लायर” है ये …???
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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ज़िन्दगी तेरी अज़ब कहानी .. 1
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Categories: motivational
सही बात है कर्म तो महान है। शुभ प्रभात….
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धन्यवाद डिअर ..
जैसा कर्म वैसा फल..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
भावनाएं ही तो है ….जो दूर रह कर अपनों की
नजदीकियों का एहसास कराती है , वरना
दुरी तो दोनों आँखों के बिच भी है …||
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