
दोस्तों,
कोलकाता का दक्षिणेश्वर मंदिर काफी प्रसिद्ध है जो माँ काली का मंदिर है | चूँकि मैं कोलकाता में रहता हूँ अतः अक्सर ही वहाँ दर्शन हेतु जाता रहता हूँ |
जब मैं पहली बार दर्शन को गया तो यहाँ की पूजा – पाठ और विधि – व्यवस्था को देख कर काफी प्रभावित हुआ था |
यहाँ मंदिर में दर्शन हेतु सुबह और शाम का समय निर्धारित किया गया है | यहाँ भक्तों की बहुत भीड़ होती है, लेकिन यहाँ की सुचारू व्यवस्था के कारण मंदिर में पूजा अर्चना में कभी परेशानी नहीं होती है |
यहाँ चप्पल – जूते, मोबाइल, बैल्ट और अन्य सामान मंदिर में ले जाने की मनाही है इसलिए यहाँ बने काउंटर पर जमा करने की सही व्यवस्था है |
सबसे पहले प्रसाद लेकर हम लोग एक लम्बी कतार में लग गए लेकिन माँ के दर्शन का ध्यान कर समय का पता ही नहीं चला और बहुत अच्छी तरह से माँ काली के दर्शन और पूजा अर्चना हो गई |
इसी प्रांगण में भगवान् शिव का भी मंदिर है और हमलोगों ने वहाँ भी भक्ति – भाव से पूजा अर्चना की |

शाम का वक़्त था और यहाँ हुगली नदी किनारे बसा यह मंदिर बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहा था | हमलोग यहाँ से गंगा नदी में नाव द्वारा सैर करते हुए बेलूर मठ चले गए |
आधे घंटे की गंगा नदी में नाव से यात्रा कर और यहाँ के प्राकृतिक सुन्दरता को देख कर बहुत आनंद महसूस हो रहा था |
सचमुच, हुगली नदी के किनारे बसा यह मंदिर प्राकृतिक सुन्दरता की अद्भुत मिशाल है | यहाँ आने के बाद भक्तगण भक्ति के साथ साथ यहाँ के मनोरम दृश्य का भी लुफ्त उठाते है |
दक्षिणेश्वर मंदिर में मेरी बहुत आस्था है | मुझे इस मंदिर के बारे में और अधिक जानने की इच्छा हुई | मैंने इस मंदिर के बारे में जो जानकारी प्राप्त की उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ….
दक्षिणेश्वर काली मन्दिर, विवेकानन्द सेतु के उत्तरी छोर के निकट, हुगली नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक हिन्दू मन्दिर है। इस मंदिर की मुख्य देवी, भवतारिणी है, जिसे हम काली माता के रूप में जानते है |
यह मन्दिर, प्रख्यात दार्शनिक एवं धर्मगुरु, स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि है,| वे रामकृष्ण मिशन के संस्थापक, स्वामी विवेकानंद के गुरु थे।
वर्ष १८५७-६८ के बीच, स्वामी रामकृष्ण इस मंदिर के प्रधान पुरोहित रहे। तत्पश्चात उन्होंने इस मन्दिर को ही अपना साधनास्थली बना लिया। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा और ख्याति का प्रमुख कारण है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस से इसका जुड़ाव ।

आज भी मंदिर के मुख्य प्रांगण के उत्तर पश्चिमी कोने में रामकृष्ण परमहंस का कक्ष हैं जो उनकी ऐतिहासिक स्मृति के रूप में संरक्षित करके रखा गया है |
यह कलकत्ता के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, और इसकी विशेषता है कि इसे वर्ष १८५४ में जान बाजार की रानी रासमणि ने बनवाया था।
रानी रासमणि, बंगाल में एक सामाजिक कार्यकर्ता, एवं कोलकाता के जानबाजार की जनहितैषी ज़मीन्दार के रूप में प्रसिद्ध थीं। वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर की संस्थापिका थीं |
प्रचलित लोक कथन के अनुसार, एक दिन रानी रासमणि को भगवान् शिव और माँ काली के दर्शन हेतु वाराणसी जाने की इच्छा हुई | उन दिनों नाव के द्वारा कोलकाता से वाराणसी जाने का एक मात्र साधन था |
लेकिन रात में ही उन्हें स्वप्न में देवी काली ने भवतारिणी रूप में दर्शन दिया था, और देवी माँ की इच्छा पूर्ण हेतु रानी रासमणि ने उत्तर कोलकाता में, हुगली नदी के किनारे देवी भवतारिणी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
आज जो हम कोलकाता में दक्षिणेश्वर काली मंदिर देखते है वह उन्ही की देन है | इसकी एक बहुत दिलचस्प घटना है जिसे मैंने पढ़ा था ..
यह सन १८५० के आसपास का वक़्त था |, माँ काली की इच्छा की पूर्ति हेतु रानी रासमणि द्वारा हुगली नदी के किनारे दक्षिणेश्वर मंदिर के निर्माण हेतु ज़मीन की खरीदारी की जा रही थी |
इस मंदिर निर्माण का जिम्मा रासमणि ने उठा रखा था | मगर एक निम्न जाती की महिला का मंदिर बनवाना तब के समाज को रास नहीं आया |
उच्च जाति के लोग इसे रोकने के लिए तरह तरह के बिघ्न पैदा करने लगे | उस समय के एक ऊँची जाति के जमींदार ने 16 बार मुकदमा किया | लेकिन वह रासमणि से हर बार मुकदमा हार गया |
रानी रासमणि ने न सिर्फ मुक़दमा जीता बल्कि मंदिर बनवाने का ज़िम्मा एक कंस्ट्रक्शन कंपनी को सौप दिया |

मंदिर निर्माण के बहुत पहले ही पूर्व वर्दवान जिले के प्रख्यात शिल्पी नविन चन्द्र भास्कर महीने भर कलकाता में रानी रासमणि के जन बाज़ार वाले घर में रहे और वहीँ रह कर उन्होंने हविष्य अन्न खाकर विधि विधान से देवी काली की मूर्ति बनाई |
इस मूर्ति को बनाने हेतु वे कच्चे माल बिहार के जमालपुर से लाते और उन्होंने कसौटी पत्थर हासिल करने के लिए एक पहाड़ ही खरीद लिया था |
मंदिर का निर्माण तय समय में १८५३ में पूरा ज़रूर हुआ , पर कानूनी मामलों के सुलझने के बाद अंततः १८५५ में इस मंदिर का उद्घाटन हो सका |
रानी रासमणि के कठिन प्रयासों से यह भी इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी रानी के बाद उसकी बेटियां इस मंदिर के सेवायत उत्तराधिकारी रही |
उद्घाटन के बाद दक्षिणेश्वर मंदिर को आधुनिक युग का सबसे भव्य काली मंदिर का दर्ज़ा प्राप्त है और अब तो यहाँ हर जाति हर धर्म के लोग दर्शन करने जाते है |

रानी रासमणि ने अपने विभिन्न जनहितैषी कार्यों के माध्यम से प्रसिद्धि अर्जित की थी । उन्होंने तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु, कलकत्ता से पूर्व पश्चिम की ओर स्थित, सुवर्णरेखा नदी से जगन्नाथ पुरी तक एक सड़क का निर्माण करवाया था।
इसके अलावा, कलकत्ता के निवासियों के लिए, गंगा – स्नान की सुविधा हेतु उन्होंने केन्द्रीय और उत्तर कलकत्ता में हुगली के किनारे बाबुघाट, अहेरिटोला घाट और नीमताल घाट का निर्माण करवाया था, जो आज भी कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण घाटों में से एक हैं।
उन्होंने, स्थापना के दौर में, इम्पीरियल लाइब्रेरी (वर्त्तमान भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता) एवं हिन्दू कॉलेज (वर्त्तमान प्रेसिडेन्सी विश्वविद्यालय, कोलकाता) के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान किया था।
रानी रासमणि को अक्सर लोकसंस्कृति में सम्मानजनक रूप से “लोकमाता” कहा जाता है।
लेकिन इस लोक माता की पूरी कहानी जानने के लिए पीछे के इतिहास को जानना होगा |
28 सितंबर 1793 को हरेकृष्ण दास और रामप्रिया देवी के घर जन्म हुआ |. इनके पिता ‘कैवर्त’ समुदाय के थे, जिनका काम नदी से मछलियाँ पकड़ना था और वही आजीविका का साधन था |
बंगाली समाज में इस समुदाय को नीची नज़रों से देखा जाता था | जब रानी रासमणि सात साल की थीं, तभी उनकी माँ गुज़र गईं |

11 साल की छोटी उम्र में ही जनबाज़ार, कोलकाता के बाबू राजचंद्र दास से उनका लगन हो गया और उनकी तीसरी पत्नी बनकर अपने ससुराल आई |
उनके पति उम्र में रानी से काफी बड़े थे. लेकिन अपने इलाके के वे एक अमीर ‘ज़मींदार’ हुआ करते थे | इसलिए रानी के पिता ने यह रिश्ता तय कर दिया. |
गौने के बाद वे ससुराल आईं और अंतराल में चार बेटियों की माँ बनीं |
बाबू राजचंद्र ऊँचे विचार के थे | उन्होंने रानी को घर तक बांध कर नहीं रखा, बल्कि रानी को अपने व्यापार में शामिल किया |
दोनों ने मिलकर इतने अच्छे तरीके से व्यापार चलाया कि ज़मींदारी के साथ-साथ सूद पर पैसे भी देने शुरू कर दिए | उन दिनों, राजा राम मोहन रॉय बाबू राजचंद्र के करीबी थे |
लेकिन तभी 1830 में ही बाबू राजचंद्र की मौत हो गई | उनकी अचानक मौत से यह सवाल खड़ा हुआ कि अब ज़मीन – जायदाद और लोगों का ध्यान कौन रखेगा ?
पति के साथ रहते हुए रानी रासमणि ने इतने दिनों में व्यवसाय को चलाना और जिम्मेदारी उठाना सीख ली थी |
अतः, रानी ने यह जिम्मा अपने कन्धों पर उठा लिया | जिस समय में उन्होंने ये काम किया, तब विधवाओं के लिए ऐसा करना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी |
उन्होंने समाज की भलाई के लिए बहुत से कार्य किए इसलिए रानी रासमणि को सम्मानजनक रूप से “लोकमाता” कहा जाता है।
19 फरवरी 1861 को रानी रासमणि का निधन हो गया. लेकिन इतिहास उनकी कहानी अब भी कह रहा है. आगे भी कहता रहेगा.|
उन्होंने जो धर्म के लिए और लोक- कल्याण के लिए कार्य किये उसके कारण उनका नाम इतिहास में अमर हो गया |
जगन्नाथपुरी के भगवान् ब्लॉग हेतु नीचे link पर click करे..
BE HAPPY….BE ACTIVE….BE FOCUSED….BE ALIVE…
If you enjoyed this post, please like, follow, share and comments
Please follow the blog on social media …link are on contact us page..
Categories: infotainment
हमने तो केवल किताबों में पढा था। वो भी स्वामी विवेकानंद वाले टैप्टिक में कि उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण जी इस मंदिर में रहते थे। आपने तो दर्शन ही करा दिये। 🙏
LikeLiked by 1 person
हमें इस मंदिर में बहुत आस्था है, इसलिए इसके बारे में कुछ
जानने की इच्छा हुई और सब लोगों से शेयर कर दिया ..
जय माँ काली ..
LikeLike
Thanks for sharing ,sir nice read.😊😊
LikeLiked by 1 person
Yes, I have tried to have darshan of Maa Kali.
I’m glad you liked this blog.
LikeLiked by 1 person
पहले ईस मंदिर में दर्शन कर चुके है लेकिन ईसके बारे मे बहुत अच्छी जानकारी आज मीली, आभार
LikeLiked by 1 person
जी सर ,
हमने माँ काली के दर्शन कराने की कोशिश किया है |
मुझे ख़ुशी है आपने मेरे ब्लॉग को पसंद किया ..
LikeLike
🙏🙏
LikeLiked by 2 people
माँ की कृपा हम सबों पे बनी रहे ..
जय माँ काली |
LikeLiked by 1 person
Nice articles with facts and figure about Dakhineswar Kaali temple .Jai Kaalii Mata ki Jai. 👌🌹
LikeLiked by 1 person
Thanks for your kind words..
जय माँ काली
LikeLiked by 1 person
Very good information. I had the opportunity of visiting both Dakshineshwar temple and Belur Math in 2015
LikeLiked by 2 people
yes sir ,
The trip to Kolkata is considered to be complete
only when we visit kali Temple and
Dakshineswar Temple to offer Puja .
Thank you sir ..
LikeLiked by 1 person
Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Success is not final, failure is not fatal..
it is the courage to continue that counts..
LikeLike