
ह्रदय परिवर्तन
आज मैं जब समाचार पत्र पढ़ रहा था, तभी मेरी नज़र एक खबर पर आकर रुक गई | उसे पूरी पढने के बाद इतना प्रभावित हुआ कि इसे अपने ब्लॉग का हिस्सा बनाने से अपने को रोक नहीं सका |
मेरे मन में विचार आया कि क्यों ना हम सभी इसके द्वारा दिए गए सकारात्मक विचारों को महसूस करें |
जैसा कि हम सभी जानते है कि माओवादी विचार धारा से प्रभावित एक संस्था जिसका नाम “प्यूपिल वार ग्रुप” था, वह अपने समय में हिंसक घटनाओं के चलते काफी मशहूर था और जो चाहता था कि सता का परिवर्तन बंदूक के बल पर हो / इन्हें आम भाषा में नक्सालवादी भी कहते है |
इस संस्था के सदस्य ज्यादातर गरीब और समाज के दबे कुचले लोग हुआ करते थे, जो जंगलों में छिप कर रहते थे और सत्ताधारी लोगों के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में शामिल रहते थे /
इनका मुख्य कार्य क्षेत्र आंध्र प्रदेश, ओड़िसा, बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ का कुछ भाग था जो पहाड़ और जंगलो में रह कर अपनी गतिविधियों का संचालन करते थे |
सन 2013 में सरकार ने 76 जिलों को नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित किया था | क्योकि नक्सल लोग इस इलाके के पहाड़ी और जंगली क्षेत्र में अपना गतिविधियाँ चलाते थे |
आज मैं इसी के तहत जिस गाँव की चर्चा कर रहा हूँ ..वह है “मासपारा” गाँव जो दांतेवाडा से करीब 10 किलोमीटर की दुरी पर है और काफी पिछड़ा इलाका है |
यहाँ की साक्षरता दर मात्र ४२% ही है और इस गाँव में स्कूल होना बड़े गर्व की बात समझी जाती थी |
लेकिन नक्सल लोगों ने इस स्कूल को 2008 में और फिर प्रशासन द्वारा फिर शुरू होने पर दोबारा २०१२ उसे उड़ा दिया था और इसके अलावा इस क्षेत्र के रोड को भी काफी क्षति पहुंचाई ताकि पुलिस उन तक नहीं पहुँच सके |

उसी समय सरकार के प्रयास से कुछ माओवादियों ने सरेंडर कर दिया और समाज के मुख्य धारा में शामिल हो कर अपना जीवन यापन करने का फैसला लिया था |
आज समाचार पत्र में छपे खबर के अनुसार उनमे से एक पूर्व नक्सल (ex-maoist) जिसने अपने को सरेंडर किया था उसने उस स्कूल को अपने हाथों से एक एक ईटा जोड़ कर तीन महीने में पुनः तैयार कर दिया जिस स्कूल को उसने माओवादी गतिविधियों के तहत सन 2004 में उड़ा दिया था |
उसके बाद यह स्कूल बिलडिंग जीर्ण शीर्ण हालत में एक खंडहर का रूप ले चूका था क्योकि उसके बाद यह स्कूल हमेशा के लिए बंद हो चूका था |.
मनुष्य का दिमाग अगर विध्वंश करने पर आ जाये तो बड़ी से बड़ी क्षति पहुँचा सकता है |
लेकिन दूसरी ओर, वह अपने सोच को सकारात्मक कर लेता है तो उन्ही गलतियों को दोबारा सुधार करने की कोशिश करता है |
कुछ इसी तरह की कहानी उस माओवादी की है ..उसका नाम है सन्तु कुंजम (santu kunjam) है और उसने सरेंडर करने के बाद अपनी भूल सुधार करते हुए सबसे पहले उस स्कूल की खुद अपने हाथो से ना सिर्फ मरम्मत कर उसे खड़ा किया बल्कि गाँव के बच्चो को वहाँ लाकर फिर से स्कूल शुरू करने की कोशिश कर रहा है |
जैसा कि उसने बताया कि इसके बाद अब उसका अगला कदम है कि उन रोड का पुनः मरम्मत करना चाहता है, जिसे उसने पुलिस से मुठभेड़ के दौरान उड़ा दिया था, बर्बाद कर दिया था |
इस तरह की माओवादी गतिविधियों से सबसे ज्यादा नुक्सान उन बच्चो को उठाना पड़ता है जो पढना चाहते तो है लेकिन हालात और संसाधनों के आभाव में अशिक्षित रह जाते है और गरीबी की जलालत से बाहर निकल नहीं पाते है |और फिर वही लोग एक दिन बन्दुक उठाकर नक्सल की राह पकड़ लेते है |
यह समाचार हमारे समाज के लिए शुभ संकेत है |
अगर इसी तरह मुख्य धारा से भटके हुए लोगों में सद्बुद्धि आये और वे हिंसा का मार्ग छोड़ कर शांति और भाई चारे के साथ देश और समाज के विकास में अपना योगदान दे तो हमारा देश तरक्की करेगा और सब का कल्याण होगा |

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