#मैं रोज़ लिखता क्यों हूँ ?

एक दिन मैंने खुद से ही प्रश्न कर डाला कि मैं लिखता क्यों हूँ ? सचमुच मेरे लिए इसका उत्तर आसान नहीं था | तभी मेरे मन के किसी कोने से आवाज़ आई –

जब मैं अपने अन्दर की भावनाओ को व्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता हूँ तो उसकी अभिव्यक्ति कागज़ के पन्नो पर शब्दों के रूप में होती है जिससे मुझे असीम शांति मिलती है | …

मेरे वही शब्द कभी कभी कविता का रूप ले लेते है | आज उन्ही शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत है …..”मैं लिखता क्यों हूँ ” ?

मैं रोज़ लिखता क्यों हूँ ?

दिल और दिमाग में एक द्वंद है

मेरी भाषा कही गद्य कहीं छंद है

कभी सपनो को जीता हूँ

कभी गम को पीता   हूँ

मैं रोज ही  लिखता हूँ |

पर लेखक नहीं दीखता हूँ

इसे  कोई  पढता  है

कोई नहीं भी पढता है

फिर भी मैं लिखता हूँ

हाँ, मैं लिखता हूँ

मैं कविता लिखता हूँ

मैं कहानी लिखता हूँ

मैं गीत लिखता हूँ

मैं गजल लिखता हूँ

मैं संस्मरण लिखता हूँ

इसे कोई पढता है

कोई नहीं भी पढता है

फिर भी मैं लिखता हूँ

मैं लिखता हूँ, क्योंकि

लेखनी मेरा प्यार है

लेखनी मेरा जूनून है

लेखनी मेरी जान है

लेखनी मेरा धर्म है

लेखनी मेरा ईमान है

इसे कोई पढता है

कोई नहीं भी पढता है

फिर भी मैं लिखता हूँ

मैं लिखता हूँ, क्योंकि

लिखता हूँ तो जीता हूँ

लिखता हूँ तो पीता हूँ

लिखता हूँ तो खाता हूँ

लिखता हूँ तो सोता हूँ

कभी पन्नो पर लिखता हूँ

कभी यादों में लिखता हूँ

इसे कोई पढता है

कोई नहीं भी पढता है

फिर भी मैं लिखता हूँ

मैं लिखता हूँ, क्योंकि

लिखना एक मज़बूरी है

जैसे जीवन जीना ज़रूरी है

पुरानी यादों को  संजोता हूँ

आने वाले पलों को जीता हूँ

अपनी कल्पनाओं में खोता हूँ

इसे कोई पढता है

कोई नहीं भी पढता है

फिर भी मैं लिखता हूँ

          ( विजय वर्मा)

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6 replies

  1. वाह! I write, therefore I am!
    बड़ा गूढ़ दर्शन है!
    जय हो बंधुवर!

    Liked by 1 person

  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर जी |
    आपके शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते है |💕

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  3. Main likhata hun kyonki. Bahut sundar.You have justified in poem.

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