#मैंने सही किया या गलत ?

दोस्तों,

मैं इस दिनों अपने ब्लॉग में अपने संस्मरण पोस्ट कर रहा हूँ | हमारे ऑनलाइन दोस्त इसे बहुत पसंद कर रहे है | सचमुच जीवन में घटी छोटी – छोटी सुखद घटनाये जब दुबारा याद करते है तो चेहरे पर बरबस ही मुस्कराहट  दौड़ जाती है |

आज कल हमारे कुछ दोस्त भी संस्मरण लिख कर अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रहे है | उनके पोस्ट पढ़ कर मुझे भी संस्मरण लिखने की प्रेरणा मिलती है | इसलिए आज फिर एक अपना संस्मरण लिख रहा हूँ | मुझे आशा है कि इसे पढ़ कर आप के चेहरे पर भी  मुस्कराहट  दौड़ जाएगी |

बात उन दिनों कि (३५ साल पुरानी) जब मैं स्टेट बैंक ज्वाइन करने से पूर्व कुछ दिनों के लिए बैंक ऑफ़ इंडिया में कार्यरत था और मेरी पोस्टिंग थी झुमरी तिलैया में | यह पहले बिहार का हिस्सा था  अब झारखंड राज्य का हिस्सा है |

मेरी नयी नयी नौकरी थी, मैं अकेला ही वहाँ रहता था |  इसलिए जब भी मुझे मौका मिलता मैं  छुट्टी लेकर घर भागता था | एक  स्टाफ था नवल सिंह, वह हमारी शाखा में दफ्तरी था | लेकिन  हमारी तरह उसकी  नौकरी  नयी नहीं थी बल्कि  वह १० साल पुराना  स्टाफ था |

उसकी आदत ऐसी थी कि वह बैंक को बिना कुछ बताये ही  अचानक शाखा से गायब हो जाता था और हमेशा लम्बी छुट्टी बिता कर आता था | उसके अनुपस्थिति में ब्रांच में डाक्यूमेंट्स के रख रखाव में बड़ी समस्या होती थी, क्योंकि  उन दिनों बैंक में सभी कार्य मैन्युअल हुआ करते थे | ना कंप्यूटर का ज़माना था और ना ही मोबाइल और इन्टरनेट ही था | इसलिए छुट्टियों  में उस स्टाफ से कांटेक्ट करना भी मुश्किल होता  था |

उसको लेकर हमारे शाखा प्रबंधक महोदय हमेशा परेशान रहते और  छुट्टी से वापस आने पर उसे हर बार वार्निंग देते | लेकिन फिर दुबारा गलती ना करने का वादा करता और  माफ़ी मांग लेता | लेकिन  कुछ दिनों के बाद फिर से  वही गलती दुहराता था |

ऐसे ही एक बार वह बिना किसी को बताए  शाखा से गायब हो गया और 15 दिन तक उसका कोई  अता – पता नहीं था | गुस्से में आकर हमारे शाखा प्रबंधक महोदय ने हेड ऑफिस रिपोर्ट करने के लिए चिट्ठी लिखी और उसे पोस्ट करने के लिए मुझे दिया गया |

मैं मन ही मन सोचने लगा कि  ज़रूर कोई मज़बूरी  होगी नवल सिंह के साथ , तभी तो उसे  अपनी  सैलरी कटवा कर भी उसे  छुट्टी लेना पड़ता है |

मैंने  चिट्ठी अपने पास ही रख लिया | मुझे उससे हमदर्दी थी क्योकि मैं भी छुट्टी लेकर घर बहुत भागता था | उस समय मैं  कुँवारा ही था |

दो दिनों के बाद हमारे शाखा प्रबंधक श्री डी. एकाम्बरम ने मुझे सुबह सुबह अपने चैम्बर में बुलाया और सामने बैठा कर हमारे लिए चाय मंगवाई | मैं उनके इस व्यवहार से घबरा रहा था | क्योंकि वे कड़क स्वभाव के थे और हमारी नौकरी भी सिर्फ छः माह पुरानी ही थी |

मैं उनके सामने बैठ कर चाय पी रहा था और सोच रहा था कि शायद वे नवल सिंह के चिट्ठी न पोस्ट करने वाली बात जान चुके है | अब पता नहीं मुझे क्या सजा मिलेगी ?

तभी उन्होंने मेरी ओर देख कर कड़क आवाज़ में कहा – तुम नवल सिंह को क्यों बचाना चाहते हो ? मुझे पता है कि तुमने मेरी दी हुई चिट्ठी को अभी तक पोस्ट नहीं किया है |

मैंने  दयनीय दृष्टि उनकी ओर डाली और धीरे से कहा – सर, वह बाल – बच्चे वाला आदमी है | अगर कोई  अनुशासनात्मक कार्यवाही हो गयी तो वो मुसीबत में आ जायेगा |

इससे पहले कि मेनेजर साहब  कुछ बोल पाते  नवल सिंह पसीने से लथपथ चैम्बर में दाखिल हुआ | उसके चेहरे पर उदासी थी और उसने  अपना सर मुंडवा रखा था |

वह हाथ जोड़ कर मेनेजर साहब को बोला – मेरे पिता जी का देहांत हो गया है | इसीलिए इस बार मैं बैंक से बिना छुट्टी लिए गैर हाज़िर रहा |

उसके पिता की मौत की खबर नवल सिंह से सुन कर अचानक हमलोगों को उससे सहानुभूति होने लगी |

मैं मुस्कुराते हुए मेनेजर साहब की तरफ देख कर मन ही मन कह रहा था – अच्छा किया कि वो आपका दिया हुआ चिट्ठी मैंने पोस्ट नहीं किया | अब तो मुझे डांटने का आपको कोई  हक़ नहीं बनता है |

इस बीच  मेनेजर साहब का गुस्सा भी शांत हो चूका था और उसे अपने काम पर लग जाने का निर्देश दिया |

मेनेजर साहब की बात सुन कर नवल सिंह अंदर ही अंदर खुश होते हुए गेट की तरफ पलटा ही था कि  उसी  गेट से  धडधडाती  हुई एक औरत चैम्बर में प्रवेश की | उसके गोद में करीब एक साल का बच्चा था |

आश्चर्य से हमलोग उस महिला की तरफ देखने लगे | तभी वो महिला हाथ जोड़ कर बोली —मेनेजर साहब, मैं नवल सिंह की बीबी हूँ | मैं यह पूछना चाहती हूँ कि बार बार इसे छुट्टी क्यों देते है ? ये गाँव जाकर पता नहीं क्या क्या गुल खिलाता है ? यह हम पर और बच्चो पर ध्यान भी नहीं देता है |

मेनेजर साहब ने ज़ल्दी से उत्तर दिया – हमने इसे छुट्टी नहीं दिया था | इसके पिता का देहांत हो गया था इसलिए यह इतने दिन अनुपस्थित था | देखिये इसने बाल भी मुंडवा रखा है |

इतना सुनना था कि उसकी पत्नी बिफर उठी  और  गुस्से में कहा – आप लोग सब मिले हुए हो | इनके  पिता का तो देहांत दो साल पहले ही हो चूका है |

हंगामा होते देख  वहाँ  भीड़ लग चुकी थी | तभी हमारे दुसरे स्टाफ श्री के. डी. सिंह जी बोल पड़े —  बिलकुल सही कह रही है यह औरत |  दो साल पूर्व भी इसी तरह बाल मुंडवा कर आया था | और दो माह पूर्व भी चाचा के मरने का बहाना बना कर शाखा से गायब रहा था  | लेकिन जब इसका परिवार यहाँ है तो यह जाता कहाँ है ?

इस बार उनकी पत्नी आँखे तरेर कर कहा – मुझे पता है, इ कहाँ जाते है ? गाँव में इन्होने किसी को रखे हुए ……

नवल सिंह दौड़ कर अपनी पत्नी का मुँह बंद कर दिया  और उससे क्षमा याचना करने लगा |

लेकिन उनकी पत्नी तो घायल शेरनी बनी हुई थी | आज पहली बार खुल कर अपने मन की भड़ास निकालने का मौका उसे मिल रहा था |

बात बिगड़ता देख, नवल सिंह ने  अपनी पत्नी के पैर पकड़ लिए  |

हमारे देश की नारी और गाँव के संस्कार बहुत ही गजब का है | पत्नी ज़ल्दी से अपना पैर अलग कर बोली – यह  आप क्या कर रहे है ? हमें पाप का भागी तो ना बनाएं | उसकी पत्नी का गुस्सा एक झटके से काफिर हो गया | और वो दोनों चैम्बर से बाहर चले गए |

मैं बैठा बैठा सोचता रहा – मैंने  चिट्ठी पोस्ट न कर के  सही किया या गलत ?     

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24 replies

  1. सोच का फ़र्क पड़ता है, आपके हिसाब से ग़लत लेकिन नवल सिंह के हिसाब से सही!!!!!!!!!!!

    Liked by 2 people

  2. बहुत अच्छी लेखनी है आपकी

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    • आपके शब्द मेरा हौसला बढ़ते है |
      हौसलाफजाईके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, डियर |💕

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  3. आपने तो उसका भला ही सोचा था पर वही गलत निकला | आपने सही किया है लेकिन वो इंसान ही गलत था इसलिए आपका उसे बचना भी गलत हो गया | बड़ा ही मुश्किल सवाल है | 😂

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  4. नवल के प्रति आपका भाव आपके मर्मता और मित्र भाव को दर्शाता है । आपका पोस्ट से आपके जीवन के यात्रा का एक खूबसूरत पहलू दिखता है जो प्रेरणा दाई है ।

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    • आपके खूबसूरत शब्द हमे प्रेरणा देते है |
      आपने हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, डियर |💕

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  5. Age kya hua phr??

    Yeh to adhri story hi hui.

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  6. रोचक संस्करण

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