
बात उन दिनों की है जब मुझे पहली बार कोलकाता में पोस्टिंग मिली थी | साल २००४ में मैं कोलकाता के एक शाखा में ज्वाइन किया था | मुझे मेट्रो शहर में रहने का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए मैं घबरा रहा था |
लेकिन संयोग से मुझे मेरे दूर के सम्बन्धी के पास रहने का ठिकाना मिल गया | मैं गिरीश पार्क इलाके में अपना ठिकाना बनाया | वहाँ से बैंक की दुरी इतनी थी कि मैं पैदल रोज़ बैंक आना जाना कर सकता था |
रविवार का दिन था और बैंक की छुट्टी थी | इसलिए मैंने सुबह सबह कुछ दुरी पर स्थित पार्क में बैठ कर समय बिताने की योजना बनाई |
मैं अकेला ही वहाँ के सार्वजानिक उद्यान मे टहल रहा था | जाड़े का मौसम था और सुबह की चमकती धूप की गर्माहट मुझे अच्छी लग रही थी | थोड़ी देर टहलने के बाद वहाँ एक बेंच पर बैठ गया |
मैं उत्सुकता से वहाँ के लोगों को देख रहा था | वहाँ हरी – हरी घास पर एक तरफ बच्चे खेल रहे थे तो कुछ लोग आपस में गप्पे मारते हुए ज़िन्दगी का लुफ्त उठा रहे थे | कुछ लोग एक ग्रुप बना कर ताश खेल रहे थे |

जनवरी का प्रथम सप्ताह था, इसलिए कुछ लोग सपरिवार एक कोने में पिकनिक भी मना रहे थे | हमारे बगल में कुछ उम्र दराज़ लोग बैठे थे जो गरम – गरम समोसे और चाय का आनंद ले रहे थे | सचमुच यहाँ तो सडक पर ही चलता फिरता दूकान नज़र आ रहा था | फूटपाथ पर ही खाने की तरह तरह के ब्यंजन उपलब्ध थे |
कुछ लोग झाल – मुढ़ी खाते हुये इंडिया और पकिस्तान के क्रिकेट मैच का विश्लेषण कर रहे थे | मैं उनलोगों की बाते सुन रहा था और महसूस कर रहा था कि छुट्टी के दिनों में सभी लोग अपने घरो से निकल कर पार्क जैसे जगहों में बैठ कर छुट्टी का आनंद उठाते है |
अन्य दिन तो भागमभाग की ज़िन्दगी होती है –..बस में भीड़, लोकल ट्रेन में और मेट्रो में तो भीड़ के क्या कहने | हर आदमी भागता नज़र आता है |
मैं इन्ही सब बातों में खोया था तभी एक सज्जन हमारे पास आकर मेरे कान की सफाई करने की गुहार करने लगे | ये झोला छाप कान के डॉक्टर थे शायद | मैंने कभी अपने कान की सफाई नहीं कराई थी सो मैंने उसे साफ़ मना कर दिया |

तभी मेरे पास बैठे महाशय उसकी तारीफ़ करते हुए मुझसे कहा – आप एक बार अपनी कान ज़रूर सफाई करा लीजिये | आपको आराम महसूस होगा | मैंने भी अभी अभी अपने कान की सफाई कराई है | ये लोग बिलकुल एक्सपर्ट होते है |
मेरे बगल में बैठा आदमी फर्राटेदार हिंदी बोल रहा था | बंगाल में हिंदी भाषी लोग से ज्यादा लगाव हो जाता है | शायद वो भी बिहारी था, इसलिए उससे बातें करने लगा | इतने में वो झोला छाप कान का डॉक्टर मेरे पास ही बैठ गया और अपने लकड़ी के छोटे बक्से से औज़ार निकालने लगा | वह सफ़ेद पायजामा और कुरता पहने हुए था |
बातों बातों में पता चला कि वह बंगलादेशी है और काफी दिनों से फुटपाथ पर रह कर अपना गुज़ारा करता है और यही छोटे मोटे काम कर अपना पेट भरता है |
मुझे उस पर दया आ गयी और मैं बहुत सारी हिदायते देते हुए अपना कान साफ़ कराने को तैयार हो गया | वह एक पतली सी औज़ार मेरे कान में डाल कर मेरे कान की सफाई करने लगा | उसने कान से निकले गन्दगी को मेरे आँखों के सामने दिखाया | देखते देखते बहुत सारी गन्दगी मेरे कानो से निकाल कर मेरे सामने रख दिया |
सचमुच एक्सपर्ट की तरह मेरे कानों की पूरी सफाई कर दिया और मुझे थोड़ी भी तकलीफ नहीं हुई | मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि मेरे कान के भीतर इतनी गन्दगी थी | अब मुझे अच्छा लग रहा था | मैंने उसे पैसे दिए और फिर पास में बैठे उस महाशय से बाते करने लगा |

उन्होंने बताया कि वे रहने वाले तो बिहार के है, लेकिन पिछले तीस वर्षो से यहाँ रह रहे है और अब तो यहीं का होकर रह गए है | उसने बात जारी रखते हुए आगे कहा —
- कोलकाता शहर की बहुत सारी खासियत है | इसे सिटी ऑफ़ जॉय कहा जाता है | यह करीब ४०० साल पुराना शहर है और अपने आप में एक इतिहास को समेटे हुए है। इसकी एक नहीं बहुत सारी खूबियाँ है |
- हावड़ा ब्रिज कोलकाता शहर की पहचान है। इस तरह का पुल देश में अन्यत्र कहीं नहीं है।
- कोलकाता ने देश को पांच नोबेल पुरस्कार प्राप्त विद्वान दिए हैं। उनके नाम हैं सर रोनाल्ड रॉस, सीवी रमण, रवीन्द्रनाथ टैगोर, आमर्त्य सेन और मदर टेरेसा। सत्यजीत रे को विश्व सिनेमा में उनके योगदान के लिए ऑस्कर अवार्ड से नवाजा गया था।

- कोलकाता में स्थित नेशनल लाइब्रेरी देश का सबसे बड़ा पब्लिक लाइब्रेरी है।
- कोलकाता पोलो क्लब दुनिया का सबसे पुराना पोलो क्लब है।
- अगर क्रिकेट खेल की बात करें तो आपको पता रहना चाहिए कि सीट के लिहाज से ईडन गार्डन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है।
- कलकतिया लोग भले ही यहां के चिड़ियाखाना को पसन्द नहीं करते, लेकिन सच बात तो यह है कि यह देश का सबसे पुराना चिड़ियाखाना है।
- भारत में अब तक भले ही फुटबॉल विश्वकप का आयोजन नहीं हुआ है, लेकिन कोलकाता का साल्टलेक स्टेडियम इस तरह के आयोजन के लिए सक्षम है। यह सिटिंग अरेन्जमेन्ट के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फुटबॉल स्टेडियम है।

- . कोलकाता को पुस्तक-प्रेमियों का स्वर्ग माना जाता है। जी हां, कॉलेज स्ट्रीट बुक मार्केट में आपको दुनिया की सभी किताबें मिल सकती हैं। अगर यहां नही मिली तो समझिए कि वह किताब अस्तित्व में ही नहीं है।
- कोलकाता दुनिया के उन चन्द शहरों में है, जहां अब भी ट्राम चलते हैं।
- कोलकाता में अब भी हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे का चलन है।
- बातें करते हुए काफी समय बीत चूका था और मुझे भूख सता रही थी | इसलिए उनसे इजाजत लेकर वहाँ से वापस आ गया | लेकिन मन ही मन सोच रहा था कि कोलकता में पोस्टिंग लेकर कोई गलती नहीं की |
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Categories: मेरे संस्मरण
Satyajit Ray’s films were my introduction to Bengali films. I especially enjoyed “The Music Room”. I’ve seen “The Apu Trilogy” on public television, I think, and would enjoy seeing it again since it included music by Ravi Shankar, whom I was privileged to see perform live in Lincoln, Nebraska when I was a university student back in 1968 or 1969. The story line for the three was compelling as well, one of Ray’s best works. Ray composed the music for “Shakespeare Wallah”, another film I especially enjoyed. Of course, Bollywood films are another type of film, but I enjoy them for the music and dance. The stories are pretty tamer, much like the American musicals of the 1930s and 1940s, so you just relax and set aside your critiques since they are fun, not meant to be deep.
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What beautiful memories you have. You are a kind hearted man and fond of art and culture.
Thanks for sharing your feelings.❤️❤️
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My pleasure! Many people don’t enjoy subtitled films, so they miss out on a literal world of truly beautiful, interesting, and excellent films made in countries other than the USA or English-language films.
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You are very correct, Sir.
We should know and enjoy the beauty of other cultures, maybe the film.
Thanks for sharing your feelings..💕
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Films are an easy way to see how other people view themselves, what their values are. I think of the film, “Lagaan: Once Upon a Time in India”, is one of my favorites because it is about the little guys beating the big guys by learning how to play cricket and winning relief from a tax they couldn’t pay. It’s a theme that would resonate in any culture! Of course the drought that made the farmers unable to pay the British rulers the tax made them desperate to come up with any way to void the tax and learning how to play cricket, even learning how to play the game and challenging the people who clearly had an advantage of already knowing the game well made for high tension until the farmers won against all odds! It is an inspiring movie, eh?
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What a beautiful analysis of the film “Lagaan”.You are a true lover of Art and culture.
Thank you so much for sharing your views.💕💕
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It’ a classic of the little guy winning against all odds against the big guy! An Indian engineer ho worked where I worked a few years ago lent me his copy, and I’m glad he did! I became a favorite.
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very interesting, Sir.
You know much about Indian culture.
Thanks for sharing your feelings.
❤️❤️
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बहुत सुन्दर।
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
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That was such a lovely blog about Kolkata. Got to know about a lot if facts that I never knew before, thank you!
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Thank you so much for your appreciation, Anjali.
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My pleasure, sir!! 😌
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.❤️❤️
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Beautiful blog on Kolkata.I have enjoyed seven years in Kolkata.Nice and memorable.
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Thanks for sharing your feelings.
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