
लघु कथा
फैक्ट्री में ड्यूटी का शिफ्ट समाप्त हो चूका था | राजेश को अपने अगले साथी को मशीन का चार्ज देते हुए रात के करीब साढ़े बारह बज चुके थे , हालाँकि राजेश की शिफ्ट रात के बारह बजे ही समाप्त हो गई थी |
उसने अपनी खटारा मोटरसाइकिल को स्टार्ट कर अपने घर की ओर चल पड़ा | हर 15 दिनों पर यह शिफ्ट बदल जाता है, लेकिन यह रात वाला शिफ्ट दुखदाई होता है |
इन्ही सब बातों को सोचता , मोहन अपने बाइक पर बैठा चला आ रहा था | रात का घोर अँधेरा था | फैक्ट्री से घर की दुरी करीब 5 किलोमीटर थी लेकिन सेक्टर -2 का इलाका काफी सुनसान रहता है |
इस जाड़े के मौसम में न तो कोई आदमी और न ही कोई गाडी ही दीख रहा था | पूरी की पूरी सड़क सुनसान थी |
जैसे ही राजेश रसियन हॉस्टल मोड़ पर पहुँचा तभी अचानक सामने एक परछाईं सी नज़र आयी | जब वह और कुछ नजदीक पहुँचा तो सफ़ेद कपड़ो में लिप्त कोई आदमी नज़र आया | हालाँकि वहाँ रौशनी कम थी अतः उसका चेहरा साफ़ साफ़ नज़र नहीं आ रहा था |

वह हाथ हिला कर रुकने का निवेदन कर रहा था | राजेश ने सोचा कि उसे भी शायद सेक्टर -2 की तरफ जाना है इसीलिए वह उससे लिफ्ट मांग रहा है |
उसके पास पहुँचते ही राजेश ने अपनी बाइक को ब्रेक लगा दी और उस आदमी को अपने बाइक के पीछे बैठने का इशारा किया |
वो आदमी पीछे बैठ गया | देखने में जवान ही लग रहा था हालाँकि अँधेरा होने के कारण उसका चेहरा राजेश नहीं देख सका | वह पीछे बैठ गया और राजेश को चलने को कहा |
राजेश थका हारा था और ज़ल्दी से अपने घर पहुँच कर आराम करना चाह रहा था, क्योंकि उसे जोरों की नींद भी आ रही थी |
अतः पीछे बैठे आदमी के बारे में कुछ भी सोचना मुनासिब नहीं समझा और गाडी को तेज़ गति से आगे दौड़ाने लगा | कुछ देर तक तो शांति रही तभी पीछे से किसी की आवाज़ आयी |
हालाँकि पीछे बैठा आदमी ही बोल रहा था लेकिन उसके आवाज़ में अजीब सा सम्मोहन था और यह भी लग रहा था कि बोलते समय वह आदमी गुस्से से काँप रहा है |
उसने कहा — आपको पता है ? दो दिन पूर्व ही इसी मोड़ पर एक आदमी का एक्सीडेंट हुआ था |
यह सुन कर राजेश चौक गया और उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा – हाँ, हाँ ! हमारे फैक्ट्री का ही वर्कर था | शायद उसका नाम दिनेश था और वह मोटरसाइकिल से आधी रात को ड्यूटी से आ रहा था और इसी मोड़ पर एक कार से टकरा जाने के कारण उसकी मौत हो गयी थी |

कुछ देर तक शांति रही, रमेश पीछे बैठे व्यक्ति के जबाब का इंतज़ार कर रहा था तभी पीछे बैठे व्यक्ति के कहा — क्या सारी गलती मेरी थी ?
यह सुनकर राजेश अचकचा गया और उसे समझ में नहीं आ आया कि पीछे वाला व्यक्ति क्या बोल रहा है ?
पर जब उसने अपने दिमाग में उसके कहे गए शब्दों को दुहराया कि क्या सारी गलती मेरी थी ?
तब उसको हकीकत समझ में आयी और फिर राजेश को डर के मारे रोंगटे खड़े हो गए |
अचानक जाड़े के दिन होने के बावजूद माथे से पसीने टपकने लगे |
वह इतना डर गया कि डर के मारे पीछे भी देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था |
वह अचानक अपनी गाडी की स्पीड तेज़ कर दी, और बेतहासा अपनी मोटरसाइकिल को भगाने लगा | उसका दिमाग शुन्य हो गया और उसे लगा जैसे बेहोशी छाने लगी हो |
और अगले ही क्षण उसकी मोटरसाइकिल सड़क पर पड़े एक पत्थर से टकरा गया | एक जोर की आवाज़ के साथ मोटरसाइकिल सड़क के एक ओर फेका गयी |
उसके बाद राजेश को कुछ होश नहीं था | उसकी जब आँखे खुली तो अपने को एक हॉस्पिटल के बिस्तर पर पाया | उसके आँख खुलते ही डॉ ने पूछा — अब कैसी तबियत है ?

राजेश को धीरे धीरे रात की घटना याद आ गयी | राजेश ने ज़ल्दी से उस डॉ से पूछा – मैं इस हॉस्पिटल में कैसे पहुँचा ?
आपको बेहोशी की हालत में रात को एक आदमी छोड़ कर चुप चाप चला गया था | वह सफ़ेद कपड़े पहने जवान आदमी दिख रहा था |
मैं आपको स्ट्रेचर पर लिटा कर उस आदमी से कुछ पूछने के लिए मुड़ा ही था कि अचनक वह न जाने कहाँ गायब हो गया ?
अजीब आदमी था, न आपके बारे में कुछ बताया और न अपने बारे में कुछ कहा |
राजेश समझ गया .. उस भटकती आत्मा को उसका नुक्सान पहुँचाने का कोई इरादा नहीं था |
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