
जी हाँ, मैं सड़क हूँ, मिट्टी, पत्थर और डामर से बना | मैं तो गाँव को शहरों से जोड़ता हूँ , जंगलों और पहाड़ों से गुजरता हूँ | मेरी उम्र कितनी है मुझे नहीं मालूम |
मुझे कभी एक दम सीधी तो कभी घुमावदार बनाया गया | कभी मुझे खूबसूरत तो कभी बदसूरत बनाया गया | मैं तो परिस्थितियों का मारा हूँ … आपकी ज़िंदगी की तरह |

सड़क और ज़िंदगी
आज एक सड़क से मुलाक़ात हो गई ,
इशारो इशारो में कुछ बात हो गई ,
खुशी से वो आ कर बोली मेरे पास
ज़िंदगी के सफर पर चलोगे मेरे साथ
सड़क की बातें सुन कर मैं चौका
अपने आशंकाओं के पासा मैंने फेंका ,
सुना है चरित्र तुम्हारा भद्दा है
कही पर सपाट तो कही गड्ढा है
जीवन की गाड़ी हिचकोले खाएगी ,
फिर किस तरह तू मुझे बचाएगी |
तू ज़िंदगी के बारे में ज्यादा न सोच,
छोटे छोटे लम्हों में खुशियों को खोज|
ज़िंदगी तो बेवफा है, छोड़ कर जाएगी
अंत में, तेरे हाथ कुछ नहीं आएगी
उसने जीवन दर्शन की घुट्टी पिला दिया
मैं भी खुश हो उसके साथ हो लिया
अच्छा लगा अपने दायरे से बाहर निकलना
धूल उड़ाती टेढ़े मेंढ़े सड़क के साथ बिचरना
बारिश की पहली बौछार मेरे मन को भिंगो रही थी
हँसती खिलखिलाती वो सड़क, मुझे लिए जा रही थी ,
जीवन की पहली यात्रा का कौतूहल मेरी आँखों में था ,
और,गाँव के मिट्टी की सौंधी खुशबू मेरी साँसो में था
मैं बिस्मित सा दौड़ता, चारों तरफ देख रहा था
सड़क किनारे खेतो की हरियाली मन भा रहा था
बगीचे में झूमती आम की अमराइयाँ थी ,
आकाश में उड़ते पक्षियों की परछाइयाँ थी
छोटे नालों में बच्चे धमा चौकड़ी मचा रहे थे,
और उस पानी में कागज़ की नाव चला रहे थे
फसलों के बोझ से लदी बैल गाडियाँ भी दिखी
गाँव के टूटे फूटे खपरैल की घर भी दिखी |
आपस में लोगों का उमड़ता प्यार दिखा
कहीं – कहीं आपस में तकरार भी दिखा
मेहनतकस इंसान खुशी के गीत गा रहे थे
प्रकृति की सुंदर रचनाएँ मन को भा रहे थे
अब सड़क से मुझे प्यार होने लगा था
उसकी बातों पर एतबार होने लगा था
मैंने पूछा – तू कहाँ ले आया है ?
उसने कहा – तू अपने देश मे आया है
मैं सड़क के साथ बढ़ता जा रहा था
कि अचानक सड़क कही गुम हो गई
मैं ज़ोर से चिल्लाया, तुम कहाँ हो ?
मेरे पास आ जाओ , तुम जहाँ हो
वीरान जंगल में मेरी आवाज़ गूंज गई
डर के मारे, मेरी आवाज़ रुँध गई ….
तभी धूल भरी आँधी ने शोर मचाई
मैंने पूछा – मेरी सड़क कहाँ है भाई ?
उसने एक जोरदार अठठहास लगाया ,
मुझे ज़िंदगी की हकीकत समझाया ,
तेरी ज़िंदगी का सफर बस यहीं तक था
अब तू सड़क से नहीं वायु मार्ग से जाएगा ,
उसकी बातें सुन कर मैं डर गया
ज़िंदगी के प्रति लगाव और बढ़ गया ,
तभी चीख से मेरी नींद खुल गई
ज़िंदगी, हकीकत से रु ब रु हो गई
सपने की दुनिया से मैं बाहर आया
सामने आईना देखा तो घबराया
वो ज़िंदगी का असल रूप दिखला गया
मैं कौन हूँ यह हकीकत बतला गया ॥
(विजय वर्मा)

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Categories: kavita
अच्छी कविता।
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Thank you so much, dear.
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💚
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Thank you so much.💕
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