# तुम ज़िन्दगी हो या आईना #

फैला रहा है आईना गलत फहमीयो का सिलसिला,

 हर किसी से कह रहा है – तूमसे अच्छा कोई नही |

सभी कहते है कि आईना कभी झूठ नहीं बोलता | यह सच है कि अगर कोई मुझे मेरे  व्यक्तित्व से सही  परिचय करवा सकता है तो वह है आईना |

यह जो आईना है यह वैसा ही हमारा  बिंब हमें दिखा देता है। वक़्त के साथ बदलते चेहरों से लेकर हर उन बदलावों का गवाह होता है यह आईना |

सच, तुम मेरी ज़िन्दगी हो या आईना, मुझे पता नहीं ? 

तुम ज़िन्दगी हो या आईना

कौन हूँ मैं, ये जाना कभी नहीं

खुद को भी कभी पहचाना नहीं

दुनिया तो बस मुसाफिरखाना है

किसी का नहीं स्थाई ठिकाना है

ये ज़िन्दगी बस एक  ख्वाब है

अगर समझ सको तो ज़बाब है

प्यार के बारे में जानता हूँ इतना

इसकी गहराई समुन्दर है जितना

तुम्हारी हँसी में,  मेरी हँसी है

तुम्हारी रुदन,  मेरी  बेबसी है

कुछ भी तो स्थाई यहाँ रहता नहीं

तुम ज़िन्दगी हो या आईना पता नहीं,

                    विजय वर्मा

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Categories: kavita

6 replies

  1. Sahi hai aaina kabhi jooth nahi bolta.Sundar Kavita

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