#लोकल ट्रेन में एक बार# 

हेलो फ्रेंड्स,

मैंने अपने बैंकिंग सफ़र में सबसे लम्बा समय कोलकाता में बिताये है | यहाँ चार शाखाओं में अलग अलग समय पर कार्य करते हुए करीब 11 साल व्यतीत किये है | यहाँ रहने के दौरान बहुत से खट्टे- मीठे अनुभव हुए है  |

आज जब मैं  रिटायर हो चूका हूँ तो उन कुछ यादगार पलों को फिर से याद करना चाहता हूँ | कुछ ऐसी घटनाये भी यादों में बसी है कि जिसे  याद करते ही चेहरे पर बरबस मुस्कराहट आ जाती है | आज के वर्तमान समय में जब हम सभी तनाव भरी ज़िन्दगी जी रहे है | तो क्यों न ऐसे समय में उन पुरानी घटनाओं को याद कर थोडा मुस्कुरा लिया जाए |

आज भी एक ऐसे ही  मेरे संस्मरण का ज़िक्र यहाँ कर रहा हूँ, मुझे आशा है कि आप सभी के चेहरे पर भी मुस्कराहट ज़रूर बिखर जाएगी |

बात उन दिनों की है, जब हमारी पोस्टिंग श्याम बाज़ार शाखा में थी | मैं कोलकाता के बांसद्रोणी इलाका में रहता था | ऑफिस आने जाने का सबसे सुविधा जनक साधन मेट्रो रेल ही था | लेकिन उसमे भी रोज़ रोज़  धक्का – मुक्की करते हुए भीड़ का हिस्सा बनना पड़ता था | इसके बाबजूद अंडरग्राउंड मेट्रो का सफ़र ” बस ” के मुकाबले आरामदायक थी क्योंकि प्रदूषणों से निजाद मिलता था |

उन दिनों मेरे बेटे की पोस्टिंग बर्दमान में थी और  हमारा परिवार भी वही था | संयोग से मुझे एक माह के लिए बर्दमान से कोलकाता ऑफिस आना जाना करना पड़ा |

बर्दमान से कोलकाता का लोकल ट्रेन से एक घंटे का सफ़र था | मुझे लोकल ट्रेन का नया – नया अनुभव हो रहा था | साल का अंतिम दिन ,यानी 31 दिसम्बर था और मुझे किसी भी हालत में 6.00 बजे शाम तक वर्दमान पहुँचना था |

क्योंकि न्यू इयर के मौके पर मेरे पोती (granddaughter) का स्टेज शो था जिसमे मुझे रहना था | मैं उस छोटी सी गुडिया का performance देख कर उसका लुफ्त उठाना चाहता था |

मैं शाखा से कुछ जल्दी यानी 4.00 बजे ही निकल गया और स्टीमर से नदी पार कर हावड़ा स्टेशन पहुँच गया |

ट्रेन के प्रस्थान होने में अभी समय था, इसलिए टिकट लेने हेतु ticket vending मशीन के लाइन में लग गया | कोलकाता में जहाँ भी देखो भीड़ ही भीड़ नज़र आती है | टिकट लेने में भी भीड़ थी |

मैं किसी तरह भीड़ में मशीन से टिकट लेने में कामयाब हो गया / तभी किसी ने मेरे फुलपैंट के   पॉकेट  से मेरा मोबाइल निकाल लिया | मैंने उसे देखा भी  और चिल्लाते हुए उसके पीछे भागा | तब तक भीड़ का फायदा उठा कर पता नहीं तुरंत कहाँ गायब हो गया ?

मैं स्टेशन पर इधर उधर उसे  ढूंढता रहा लेकिन कही उसका पता नहीं चला | मैं बहुत परेशान हो उठा |

तभी अनाउंस हुआ कि बर्दमान की ट्रेन प्रस्थान करने वाली है |  मैंने सोचा कि वह चोर तो मिलेगा नहीं और ट्रेन चली गयी तो अगली ट्रेन के लिए एक घंटा और यहाँ इंतज़ार करना होगा |

मैं छः नंबर प्लेटफार्म की तरफ भागा , क्योंकि  लोकल ट्रेन हमेशा उधर  से ही जाती थी | मैं प्लेटफार्म पर पहुँचा ही था तो देखा कि ट्रेन धीरे – धीरे सरक रही है और तुरंत ही रफ़्तार पकड़ने वाली है  | इसलिए मैं दौड़ते हुए किसी तरह चलती ट्रेन में चढ़ गया | ट्रेन में भीड़ बहुत थी, लेकिन किसी तरह  मुझे बैठने की थोड़ी जगह मिल गयी |

मैं अपनी सीट पर बैठ कर आँखे बंद किये अपने मोबाइल चोरी का शोक मना रहा था | ट्रेन अपनी गति से जा रही थी और मेरा दिमाग मोबाइल खोने के बाद की कार्यवाही के बारे में सोच रहा था |  

कुछ समय बाद अपनी  आँखे खोल कर घडी में समय देखा तो एक घंटा का सफ़र तय कर चूका था यानी अब बर्दमान स्टेशन आने वाला होगा | मैंने बगल वाले पैसेंजर से पूछा – बर्दमान आने में अब कितना समय है | उन्होंने मेरी तरफ आश्चर्य से देखा और पूछा — बर्दमान ?

यह ट्रेन तो मिदनापुर जा रही है | बर्दमान का रूट तो दूसरी तरफ है |

मैंने चौक कर पूछा – तो यह बर्दमान लोकल नहीं है ?

नहीं, यह तो मिदनापुर लोकल है | अब आप को आगे किसी स्टेशन पर उतर कर वापस हावड़ा जाना पड़ेगा और फिर बर्दमान के लिए गाडी पकडनी पड़ेगी |

मैं एक बार फिर परेशान हो उठा | मोबाइल चोरी होने के कारण पहले से ही परेशान था |

मैं अपना माथा पकड़ लिया, मेरा दिमाग काम करना बंद कर दिया | भूख भी लग रही थी |

मुझे परेशान देख कर फ्री का सलाह देने वाले बहुत से लोग आ गए | सब लोग लोकल – पेसंजर वाले थे |

एक जो बहुत होशियार दिख रहा था, वो मेरे पास ही बैठ गया और मुझे  सांत्वना देते हुए कहा — आप घबराएं नहीं | मैं एक उपाय बताता हूँ |

आगे स्टेशन मेचेदा आने वाला  है | आप वहाँ उतर जाइये और वहाँ से बर्दमान के लिए लोकल बस चलती है, आप उसके  द्वारा बर्दमान पहुँच जायेंगे |

तभी एक दुसरे यात्री ने कहा – मेचेदा स्टेशन पर T.T. पकड़ लिया तो फाइन कर देगा, क्योंकि टिकट तो बर्दमान का है | फाइन के बारे में सुनते ही मेरे  दिल की धड़कन बढ़ गयी, क्योंकि एक बार बर्दमान में फाइन दे चूका था |

लेकिन कहते है न कि हर मर्ज़ की दवा  है | एक पेसंज़र बोला – आप चिंता न करें,  मैं रेल के पटरी के रास्ते स्टेशन से बाहर निकाल दूंगा, |

लेकिन भाई, वहाँ ट्रेन तो 3-4 मिनट ही रूकती है |

वो बोला — इसकी चिंता आप नहीं करे, हमारा तो रोज़ का सफ़र है | सब लोगों का मैं “बेचारा” बना हुआ था |

खैर, ट्रेन मेचेदा स्टेशन पर रुकी और उस भाई ने दुसरे रास्ते मुझे स्टेशन से बाहर सकुशल निकाल दिया | मैंने उसे धन्यवाद किया और पलट कर देखा तो सामने ही एक छोटा सा बस स्टैंड दिखाई दिया |

अब यह मत पूछिये कि आगे की यात्रा  कैसी रही ?  आप इस बात से अनुमान लगा सकते है कि  लोकल बस में भी भीड़ का मजा लिया, गाँव की कच्ची सड़क पर हिचकोले खाते हुए बस का मजा लिया, “अस्थि पंजर ढीला” वाले उस लोकल बस का मजा लिया |

और तो और,  घर पहुँचते हुए रात के १० बज चुके थे | सब लोगों ने हैरान होकर पूछा – आज इतनी देर आने में कैसे हो गयी ?

अब, यह कैसे बताऊँ कि गलती से दूसरी ट्रेन में चढ़  गया था | सब तो यही कहते कि बोगी के ऊपर एक पट्टी होता है, उस पर ट्रेन का नम्बर और गंतव्य स्थान लिखा रहता है और आप अनपढ़ तो  नहीं है ?

इन सब  सवालों से बचने के लिए … मैंने वो किस्सा ही गोल कर दिया, जो मेरे साथ घटी थी |…मैंने उनसे बस इतना ही कहा – बैंक में बड़े साहब आ गए थे, इसलिए देरी हो गयी |  और खिज़ कर मन ही मन कहा — साला, आज जतरा ही खराब था |

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Categories: मेरे संस्मरण

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