#बाबा नागार्जुन : एक कवि, एक विचार #

दोस्तों.

सात दिन पूर्व ही 22 मार्च को हम लोगों ने बिहार दिवस मनाया था |

सन 1912 में उस दिन बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग कर बिहार राज्य का गठन किया गया था | और तब भारत के नक्शे में बिहार का उदय हुआ | उसके बाद बिहार का  पुनः 1935 में विभाजन हुआ और उड़ीसा राज्य बना |

बिहार का दूसरा विभाजन 15 नवम्बर 2000 में हुआ और झारखंड राज्य का निर्माण हुआ | इस तरह बिहार के टुकड़े होकर तीन  अलग राज्य का गठन  हुआ |  यह सच है कि भारत का इतिहास बिहार से ही शुरू होता है |

मैं बिहारी हूँ और बिहार पर मुझे गर्व है और हो भी क्यों नहीं | बिहार में ऐसी बहुत सारी विभूतियों ने जनम लिया जिनके बारे में जान कर हर बिहारी अपने को गौरवान्वित महसूस करता है |

मैंने ब्लॉग के माध्यम से बिहार पर एक शृंखला शुरू की है, जिसमें बिहार के विभूतियों के बारे में लिख रहा हूँ |  उसी की कड़ी में आज हम बाबा नागार्जुन के बारे में चर्चा करना चाहते है |

अमल धवल गिरि के शिखरों पर

बादल को घिरते देखा है |

छोटे छोटे मोती जैसे

उसके शीतल तुहिन कणों को ,

मानसरोवर के उन स्वर्णिम

कमलों पर गिरते देखा है ,

बादल को घिरते देखा है |

एक कवि, एक विचार

बाबा नागार्जुन हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे । वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार थे | उन्होंने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली, संस्कृत और बंगला में मौलिक रचनाएँ भी कीं | उनकी  साहित्य जगत में एक विशेष पहचान है |

नागार्जुन को  साहित्य अकादमी  पुरस्कार  से भी सम्मानित किया गया है | वे अपनी रचना  मैथिली भाषा में “यात्री” उपनाम से लिखा करते थे |

नागार्जुन का जन्म १९११ ई० में मधुबनी  जिले के सतलखा में हुआ था। यह उन का ननिहाल था। वास्तव में उनका पैतृक गाँव दरभंगा जिले का तरौनी में था। इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र और माता का नाम उमा देवी था। नागार्जुन के बचपन का नाम ‘ठक्कन मिसर’ था। इस नाम के पीछे भी एक कहानी है |

गोकुल मिश्र और उमा देवी को लगातार चार संताने पैदा हुईं और एक एक कर असमय ही वे सब चल बसीं। संतान न जीने के कारण गोकुल मिश्र अति निराशापूर्ण जीवन जी रह रहे थे।  गोकुल मिश्र  अशिक्षित थे लेकिन वे ईश्वर के प्रति बहुत आस्थावान थे | इस दुख के घड़ी में वे अपने आराध्य देव शंकर भगवान की पूजा मन से करने लगे ।

उन्होने वैद्यनाथ धाम (देवघर) जाकर बाबा वैद्यनाथ की  यथाशक्ति उपासना की और वहाँ से लौटने के बाद घर में पूजा-पाठ में ज्यादा समय लगाने लगे।

इसका फल उन्हे जल्द मिला और भगवान की कृपा से फिर पाँचवीं संतान का जनम हुआ | लेकिन गोकुल मिश्रा को मन में यह आशंका बनी रहती थी कि पिछले चार संतानों की तरह इसे भी कुछ समय बाद यमराज ले जाएगा ।

गाँव में इस तरह का प्रचालन है कि बुरी नज़रों और यमराज की नज़रों से बचाने के लिए गाँव वाले अपने बच्चों का खराब नाम रखते है | उस बच्चे को  पुराने कपड़े पहनाए जाते है, ताकि उस पर किसी की बुड़ी नज़र ना पड़े | वह बच्चा  यमराज की नज़रों से बचा रहे | इसीलिए उस बालक को ‘ठक्कन’  नाम से पुकारा जाने लगा |

काफी दिनों के बाद फिर ठक्कन मिश्र  का फिर नामकरण हुआ  | चूंकि गोकुल मिश्र  ऐसा मानते थे कि यह बच्चा बाबा वैद्यनाथ की कृपा-से प्राप्त हुई है इसलिए इस बालक का नाम वैद्यनाथ मिश्र रखा गया।  जो आगे चल कर बाबा  नागार्जुन के नाम से मशहूर हुआ |

गोकुल मिश्र तो अनपढ़ थे ही, उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी । वे काम-धाम कुछ करते नहीं थे।  अपनी खेती की सारी जमीन बटाई पर दे रखी थी |

लेकिन कुछ समय बाद कभी अकाल तो कभी बाढ़ से फसल की  उपज कम हो जाने से उनकी कठिनाइयाँ और बढ़ गई | उसके बाद उन्होंने धीरे धीरे अपनी जमीन बेचना शुरू कर दिया ।  इस तरह  वे कई प्रकार की गलत आदतों के शिकार हो गए |

जीवन के अंतिम समय में गोकुल मिश्र अपने बेटे वैद्यनाथ मिश्र  के लिए मात्र तीन कट्ठा कृषि उपजाऊ भूमि (Agricultural Land ) और प्रायः उतनी ही वास-भूमि (Non agricultural Land ) छोड़ गये | लेकिन वो सारे जमीन गिरवी रखे हुये थे | जिसका  सूद – भरना पड़ता था | । बहुत बाद में, नागार्जुन दंपति ने उस बंधक पड़ी ज़मीन को छुड़ाया।

जीवन दर्शन

बालक वैद्यनाथ मिश्र का बचपन बहुत कष्टमय था | मात्र  छह वर्ष की आयु में ही उनकी माता का देहांत हो गया। इनके पिता (गोकुल मिश्र) अपने एक मात्र मातृहीन पुत्र को कंधे पर बैठाकर अपने सगे – संबंधियों के यहाँ, इस गाँव- से उस गाँव घूमा करते थे |

इस प्रकार बचपन में ही  इनके पिता की घुमक्कड़ आदत के कारण उन्हें भी इधर उधर घूमते रहने की आदत पड़ गयी |   बड़े होकर उनका भी घूमककड आदत जीवन का स्वाभाविक अंग बन गया। वे बचपन से ही “घुमक्कड़ी  स्वभाव के थे |

गाँव में रह कर प्रारंभिक शिक्षा के बाद  विधिवत संस्कृत की पढ़ाई बनारस जाकर शुरू की।  वहीं उन पर आर्य समाज का प्रभाव पड़ा और फिर बौद्ध दर्शन की ओर झुकाव हुआ। उन दिनों राजनीति में सुभाष चंद्र बोस उनके प्रिय थे। बौद्ध के रूप में उन्होंने राहुल सांकृत्यायन को अपना अग्रज माना था ।

बनारस से निकलकर कोलकाता और फिर दक्षिण भारत घूमते हुए लंका के विख्यात ‘विद्यालंकार परिवेण’ में जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। राहुल और नागार्जुन ‘गुरु भाई’ बन गए हैं। लंका की उस विख्यात बौद्धिक शिक्षण संस्था में रहते हुए मात्र बौद्ध दर्शन का अध्ययन ही नहीं किया  बल्कि विश्व राजनीति की ओर भी उनकी  रुचि जगी |

साथ ही भारत में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन की ओर भी उनकी  सजग नजर थी ।

१९३८ ई० के मध्य में वे लंका से वापस लौट आये। फिर आरंभ हुआ उनका घुमक्कड़ जीवन । साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ नागार्जुन राजनीतिक आंदोलनों में भी प्रत्यक्षतः भाग लेते रहे। स्वामी सहजानंद से प्रभावित होकर उन्होंने बिहार के किसान आंदोलन में भाग लिया और मार खाने के अतिरिक्त जेल की सजा भी भुगती।

१९७४ के अप्रैल में जेपी आंदोलन में भाग लेते हुए उन्होंने कहा था “सत्ता प्रतिष्ठान की दुर्नीतियों के विरोध में एक जनयुद्ध चल रहा है, जिसमें मेरी हिस्सेदारी सिर्फ वाणी की ही नहीं, कर्म की हो, इसीलिए मैं आज अनशन पर हूँ, कल जेल भी जा सकता हूँ। और सचमुच इस आंदोलन के सिलसिले में आपात् स्थिति से पूर्व ही इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर काफी समय जेल में रहना पड़ा।

दो पुत्रियों एवं चार पुत्रों से भरे-पूरे परिवार वाले नागार्जुन कभी गार्हस्थ्य धर्म ठीक से नहीं निभा पाये और इस भरे-पूरे परिवार के पास अचल संपत्ति के रूप में विरासत में मिली वही तीन कट्ठा उपजाऊ तथा प्रायः उतनी ही वास-भूमि रह गयी थी ।

पुरस्कार से सम्मानित

बाबा नागार्जुन अपने जीवन काल में बहुत सारी विषयों पर बेबाकी से रचना की | समय समय पर उन्हें अनेकों  पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है |

साहित्य अकादमी पुरस्कार -1969 (मैथिली में, ‘पत्र हीन नग्न गाछ’ के लिए)

भारत भारती सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा)

मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार द्वारा)

राजेन्द्र शिखर सम्मान –1994 (बिहार सरकार द्वारा)

साहित्य अकादमी की सर्वोच्च फेलोशिप से सम्मानित

राहुल सांकृत्यायन सम्मान पश्चिम बंगाल सरकार सेे

नागार्जुन के काव्य में अब तक की पूरी भारतीय काव्य-परंपरा ही जीवंत रूप में उपस्थित देखी जा सकती है। उनका कवि-व्यक्तित्व कालिदास और विद्यापति जैसे कई कालजयी कवियों के रचना-संसार से प्रभावित है तथा उनमें  बौद्ध एवं मार्क्सवाद जैसे दर्शन भी समाहित है |

उनका ‘यात्रीपन’ भारतीय मानस एवं विषय-वस्तु को समग्र और सच्चे रूप में समझने का साधन रहा है। मैथिली, हिन्दी और संस्कृत के अलावा पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि अनेकानेक भाषाओं का ज्ञान भी उनके लिए इसी उद्देश्य में सहायक रहा है।

 नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिकतम कवि हैं।  उन्होंने आज़ादी के पहले और बाद में भी कई बड़े जनांदोलनों में भाग लिया था। 1939 से 1942 के बीच बिहार में किसानो के एक प्रदर्शन का नेतृत्व करने की वजह से जेल में रहे। आज़ादी के बाद लम्बे समय तक वो कई  पत्रकारिता से भी जुड़े रहे। 

 जन संघर्ष में अडिग आस्था, जनता से गहरा लगाव और एक न्यायपूर्ण समाज का सपना, ये तीन गुण नागार्जुन के व्यक्तित्व में थी ही , जो उनके साहित्य में भी प्रतिबिम्बित हुआ करती थी |

उनकी अभिव्यक्ति का ढंग तिर्यक भी है, बेहद ठेठ और सीधा भी। अपनी तिर्यकता में वे जितने बेजोड़ हैं, अपनी वाग्मिता में वे उतने ही विलक्षण हैं।

काव्य रूपों को इस्तेमाल करने में उनमें किसी प्रकार की कोई अंतर्बाधा नहीं है। उनकी कविता में एक प्रमुख शैली स्वगत में मुक्त बातचीत की शैली है। नागार्जुन की ही कविता से पद उधार लें तो कह सकते हैं –  स्वागत शोक में बीज निहित हैं विश्व व्यथा के |

विद्रोही मिजाज के कवि  

भाषा पर बाबा का गज़ब का अधिकार था । देसी बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय पदावली तक उनकी भाषा के अनेकों स्तर हैं । उन्होंने तो हिन्दी के अलावा मैथिली, बांग्ला और संस्कृत में अलग से बहुत लिखा है।

जैसा पहले भाव-बोध के संदर्भ में कहा गया, वैसे ही भाषा की दृष्टि से भी यह कहा जा सकता है कि बाबा की कविताओं में कबीर से लेकर धूमिल तक की पूरी हिन्दी काव्य-परंपरा एक साथ जीवंत है।

समकालीन प्रमुख हिंदी साहित्यकार उदय प्रकाश के अनुसार — बाबा नागार्जुन बीसवीं सदी की हिंदी कविता के सिर्फ ‘भदेस’ और मात्र विद्रोही मिजाज के कवि ही नहीं, वे हिंदी जाति के सबसे अद्वितीय मौलिक बौद्धिक कवि थे। वे सिर्फ ‘एजिट पोएट’ नहीं, पारंपरिक भारतीय काव्य परंपरा के विरल ‘अभिजात’ और ‘एलीट पोएट’ भी थे।” 

सचमुच  नागार्जुन को पढ़ते पढ़ते हम अचरज और पुलक से कई बार भर जाते है | कितना बड़ा कवि है वो | उदय प्रकाश ने बाबा नागार्जुन के व्यक्तित्व-निर्माण एवं कृतित्व की व्यापक महत्ता को एक साथ संकेतित करते हुए लिखा है  —

  • जिसने प्राचीन भारतीय चिंतन परंपरा का ज्ञान पालि प्राकृत अपभ्रंश और संस्कृत  जैसी भाषाओं में महारत हासिल करके प्राप्त किया हो |
  • जिस कवि ने हिंदी, मैथिली, बंगला और संस्कृत में लगभग एक जैसा वाग्वैदग्ध्य अर्जित किया हो, अपनी मूल प्रज्ञा और संज्ञान में जो  तुलसी  और  कबीर  की महान संत परंपरा के निकटस्थ हो |  
  • जिस रचनाकार ने ‘बलचनमा’ और ‘वरुण के बेटे’ जैसे उपन्यासों के द्वारा हिंदी में आंचलिक उपन्यास लेखन की नींव रखी हो जिसके चलते हिंदी कथा साहित्य को रेणु  जैसी ऐतिहासिक प्रतिभा प्राप्त हुई हो|
  • जिस कवि ने अपने आक्रांत निजी जीवन ही नहीं बल्कि अपने समूचे दिक् और काल की, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों और व्यक्तित्व पर अपनी निर्भ्रांत कलम चलाई हो |
  • बीसवीं सदी के किसी आधुनिक राजनीतिक व्यक्तित्व (लेनिन) पर समूचा खण्डकाव्य रच डाला हो, जिसके हैंडलूम के सस्ते झोले में  मेघदूतम  और ‘ इकनॉमिक – पॉलिटिकल वीकली’ एक साथ रखे मिलते हों |
  • जिसकी  अंग्रेजी  भी किसी समकालीन हिंदी कवि या आलोचक से बेहतर ही रही हो, जिसने  रजनी पाम दत्त , नेहरू , निराला लूशन लेकर विनोबा, मोरारजी, जे पी, लोहिया, केन्यता, एलीज़ाबेथ आइजन, हावर आदि पर स्मरणीय और अत्यंत लोकप्रिय कविताएं लिखी हों |

— . सचमुच, बीसवीं सदी की हिंदी कविता का प्रतिनिधि बौद्धिक कवि वह है |

उन्होंने  सही कहा है कि  मैं जब भी उनकी कविता पढ़ता हूँ तो मैं पाता हूँ कि हिन्दी में शायद इस समय आधुनिक हिन्दी के उतने बड़ी कवि और कोई दूसरा नहीं है |

(Pic Source : Google.com)

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8 replies

  1. बाबा नागार्जुन के बारे में इतनी अच्छी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए साधुवाद।

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  2. Bahut Sundar Lekha Baba Nagarjun bare me.Bihar ka itihas bhi samil hai.Bihar ka vibhajan.Odisha 1936 April 1 se Bihar se alag hue.

    Liked by 1 person

  3. Bihar lives in heart and mind. I saw grandfather reading books in Hindi and Bengali. He used tell us about his life in Patna and the village. Thank you for this post on Bihar.

    Liked by 2 people

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