
हमारे बचपन के समय में न तो TV था और न इन्टरनेट का ज़माना था .. उस समय हमारे दादा – दादी हमें सुलाने के लिए लोक कथाएं सुनाया करते थे |
और हमें इन कहानियों को सुनते – सुनते कब नींद लग जाती थी ,पता ही नहीं चलता था |हर कहानी में कोई न कोई शिक्षा निहित होती थी |
..आज ज़माना बदल गया है,
..आज कल के बच्चे हाई टेक हो गए है ..
…आज कल मनोरंजन के मायने ही बदल गए है |..
फिर भी लोक कथाओं का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है …
लोक कथाएं इतनी पुरानी हैं कि कोई भी नहीं बता सकता कि उन्हें पहले-पहल किसने सुनाया होगा । लोक-कथाएं एक कान से दूसरे कान में, …..एक देश से दूसरे देश में जाती रहती हैं ।
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते ही इन कथाओं का रूप-रंग भी बदल जाता है । एक ही कहानी अलग-अलग जगहों में अलग-अलग ढंग से कही-सुनी जाती है। इस तरह लोक कथाएं हमेशा नई बनी रहती हैं ।
यह लोक कथाएं ही हैं जो हमें बोध करवाती हैं कि मूल रूप में समस्त विश्व में मनुष्य का स्वभाव एक जैसा ही है । इसी से सम्बंधित एक लोक कथा आप सबो के सामने प्रस्तुत है…

गोनू झा और चोर की मजदूरी
एक समय की बात है | एक राजा ने दरबार में किसी विषय पर भारी शास्त्रार्थ आयोजित किया | राजा ने जीतने वाले को एक सौ बीघा जमीन इनाम में देने का एलान किया था |
हर गाँव से शास्त्रार्थ के लिए विद्वान लोग राजा के दरवार में पहुँच रहे थे |.
गोनू झा के गाँववालों ने उनसे शास्त्रार्थ के लिए जाने का आग्रह किया लेकिन गोनू झा ने कहा…, ”यह राजा शास्त्रार्थ को तीतर-बटेर की लड़ाई समझता है | मैं ऐसे शास्त्रार्थ में नहीं जाउँगा |
पर, गाँव वाले कहाँ मानने वाले थे, क्योंकि यह उनके गाँव की प्रतिष्ठा का प्रश्न था |
गाँव के सभी लोगों ने किसी तरह गोनू झा को काफी मान – मनौवल के बाद शास्त्रार्थ के लिए तैयार कर लिया |
उन्होंने गोनू झा को समझाते हुए कहा ….., ”आप अगर इस शास्त्रार्थ में जीत गये, तो बस समझिए कि आपकी गरीबी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी….. सौ बीघे की जोत तो इस पूरे इलाके में किसी के पास नहीं है. |”
गोनू झा तो सचमुच बड़े विद्वान थे | उन्होंने उस शास्त्रार्थ में सबको पराजित कर दिया |
अब राजा को अपने वचन के अनुसार सौ बीघा जमीन गोनू झा को देनी थी |
इधर राजा के कुछ दरबारियों ने गोनू झा के खिलाफ राजा के कान भर दिये.| राजा ने दरबारियों के षडयंत्र में पड़कर वर्षों से बंजर पड़ी जमीन में से सौ बीघा जमीन गोनू झा को दे दी |
गोनू झा और उनके गाँववालों ने जब वह जमीन देखी, तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ. | उस बंजर जमीन को कोई मजदूर भी हाथ नहीं लगाता क्योंकि जमीन इतनी ऊसर थी कि कहीं घास भी नजर नहीं आ रहा था |
पर गोनू झा ने हार नहीं मानी और गाँववालों को समझाते हुए कहा, “आप चिंता मत करिए | एक-दो-दिन में ही मैं इसका कोई अच्छा उपाय कर लूँगा |
बस आप लोग गाँव में यही कहिएगा कि गोनू झा भारी शास्त्रार्थ जीत कर आये हैं |
सबों ने गोनू झा के कहे अनुसार ही किया. और बात जंगल के आग की तरह फ़ैल गयी | चोरों के टोली तक भी यह बात पहुँच गई |
इधर गोनू झा भी स्वयं दिन भर घूम-घूम कर अपनी विजय की कथा और राजा द्वारा किये गये मान – सम्मान की बात फैलाते रहे |

जब रात हुई, तो गोनू झा अपने घर पहुंचे | उनके बिछाये जाल के अनुसार ही सब कुछ हो रहा था .. उन्हें अपने बाड़े में कुछ हलचल लगी .| वे समझ गये कि चोर आ गये हैं |
तभी उनकी पत्नी ने पूछा ….,“चार दिन कहाँ से बेगारी कर लौटे हैं ?”
“पहले लोटा दीजिए, खाना लगाइए, फिर बताता हूँ … गोनू झा ने अपनी पत्नी से कहा |.”
“खाना कहाँ से बनाकर रखती, तेल-मसाला तो खत्म हो गया है |
कहिए तो चूड़ा- दही दे दूँ. ?
“कोई बात नहीं, आज भर चूड़ा – दही ही दे दो …. लेकिन कल से तो पूआ-पूरी, और पकवान ही खाएँगे. |”
“क्यों… कोई खजाना हाथ लग गया है ?”… गोनू झा की पत्नी ने झल्लाते हुए पूछा.|
धीरे बोलिए,, धीरे., .. एक खजाना नहीं सैकड़ों खजाना. |
राजा ने कई पुस्तों का खजाना खुश होकर मुझे दे दिया है. |”
“क्या कह रहे हैं ? …, जरा खुलकर समझाइए.”- गोनू झा की पत्नी ने कहा |
इतना सुनना था कि घर में छुपे चोरों के कान खुलकर सूप जैसे हो गये थे.| वे गोनू झा के घर की दीवार से कान सटाए, और साँस रोककर खजाने का राज सुनना चाह रहे थे |.

गोनू झा भी दीवार की तरफ पत्नी को ले जाकर फुसफुसाते हुए बोले, ….“आप तो जानती ही हैं | हर बार मैं शास्त्रार्थ जीतकर आता हूँ, तो राजा- महाराजा सोना-चाँदी, अशर्फी देकर भेजते हैं और उसके बाद चोर सेंध मारने के लिए ताक लगाये रहते हैं.|
हमने इस बार राजा से कहा कि हमें घर ले जाने के लिए कुछ भी मत दीजिए.| आप लोगों की दी हुई चीजें हमारी रात की नींद ले उडती हैं. |”
“तो फिर कुछ दिया भी उन्होंने या आप बस ज्ञान ले-देकर आ गए ?” …- गोनू झा की पत्नी की चिंता जायज ही थी.| चोरों की जिज्ञासा भी उनकी पत्नी के साथ बढ़ रही थी |.
“ तो सुनिए, .. राजा के पूर्वज हजारों सालों से अपने खजाने एक सुरक्षित राजकीय भूमि के अंदर छिपाते आये हैं. | अब तक वह खजाना सौ बीघे में दबाया जा चुका है. |
चूँकि जमीन बंजर है, इसलिए भूल से भी कोई भैंस भी चराने उधर नहीं जाता. | राजा ने वह सौ बीघे की पूरी जमीन मुझे दे दी.| हमें जब भी जरूरत पड़ेगी एक तोला सोना खजाना खोदकर ले आएँगे. |
अब समझिए हमारी आनेवाली सौ पुस्त बैठकर आराम से जिन्दगी बसर कर सकती है.”
“पर, वह है कहाँ” -.. गोनू झा की पत्नी ने पूछा |

“वह आपको नहीं बताऊंगा. …आप बहुत खर्चीली हैं और कोई बात आपके पेट में पचती भी नहीं.”…- गोनू झा ने चोरों को सुनाते हुए कहा |
“वह तो ठीक है | पर भगवान न करे, आपको कुछ हो गया, तो सौ पुस्त के लिए धन रहते हुए भी हम सब भूखे मर जाएँ.” – उनकी पत्नी ने नाराज़ होते हुए कहा |
पत्नी की इस बात पर कुढ़ते हुए गोनू झा ने फुसफुसाते हुए वह जगह बता दी, जहाँ राजा ने गोनू झा को जमीन दी थी |
“आप सुबह ही जाकर खजाने से एक तौला सोना तो ले ही आइए “- पत्नी ने गोनू झा से कहा.

“ठीक है, पर अब मुझे कुछ खाने के लिए दो | मैं थका हुआ हूँ. सुबह सूर्य उगने से पहले ही मैं जाकर एक तौला खजाना ले आऊंगा.”- गोनू झा की बात पूरी हुई कि सारे चोर उडन – छू हो गए |
वे एक-दो तौला, नहीं सारा दबा हुआ खजाना निकाल लेना चाहते थे | उन्होंने चोरों की टोली से जाकर एक-एक साथी चोर को बुला लाया और सब कुदाल- खंती लेकर उस बंजर खेत में कूद पड़े. |
पूरी ताकत लगाकर और बिजली की फुर्ती से वे खेत कोड़ने लगे |
चोरों ने सूर्य उगने से पहले ही सारा खेत खोद डाला, पर खजाना तो दूर, .एक कौड़ी भी नहीं मिली. | इससे पहले कि वे गोनू झा की होशियारी और अपनी बेवकूफी पर खीजते, गोनू झा खासंते हुए आते दिखाई पड़े |
उनको देखते ही सारे चोर नौ दो ग्यारह हो गए.|
गोनू झा उन्हें आवाज देते हुए बोले,… “अरे भाई रात-भर इतनी मेहनत की है, मजदूरी तो लेते जाओ. | कम-से-कम जलपान ही करते जाओ. | ”
गोनू झा अपने साथ आठ – दस मजदूर और बीज लेकर आये थे. उन्होंने उस खोद चुके खेत में बीज डाला |
उस साल और उसके बाद हर साल गोनू झा के खेत में इतनी फसल हुई कि सचमुच उनकी सारी दरिद्रता मिट गयी. गाँव वाले एक बार फिर गोनू झा की बुद्धिमत्ता के कायल हो गये …

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Interesting and humorous.
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Thank you so much, dear.
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Bahut acchi
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बहुत बहुत धन्यवाद |
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Excellent
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Thank you so much.😊😊
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Bahut badhiya lok katha.
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Thank you so much, dear
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