#मंडन मिश्र…मिथिला के महान विद्वान् #

दोस्तों

दोस्तों, 22 मार्च को बिहार दिवस मनाया गया | बिहार दिवस के उपलक्ष्य में हमने तय किया है कि बिहार से जुड़े कुछ महान विभूतियों के बारे में चर्चा करेंगे जिनको याद करके हम बिहारवासी आज भी अपने को गौरवान्वित महसूस करते है |…

इसलिए हमने इस अवसर पर बिहार दर्शन के अंतर्गत अब तक

“लोक नर्तक भिखारी ठाकुर, …. https://wp.me/pbyD2R-2qe

वैशाली की नगरवधू आम्रपाली , https://wp.me/pbyD2R-2pV

बिहार का गौरव नालंदा विश्वविद्यालय … https://wp.me/pbyD2R-2ps

हाज़िर जबाबी गोनू झाhttps://wp.me/pbyD2R-2oM

महान कवि विद्यापति के बारे में इस ब्लॉग के माध्यम से चर्चा की है ……https://wp.me/pbyD2R-2nc

जो लोग उसे पढना चाहते है उनके लिए बगल में लिंक दे रहा हूँ …

आज बिहार दर्शन के तहत महान विद्वान् मंडन मिश्र की चर्चा कर रहे है …

यह सच है कि बिहार की धरती पर हजारों ऐसी महान विभूतियाँ हुई है जिन्होंने अपने ज्ञान और विद्वत्ता से भारत ही नहीं बल्क़ि  दुनिया को भी अचंभित किया है ।

बिहार ज्ञान की धरती है । यहां की मिट्टी ने न सिर्फ वीर कुंवर सिंह जैसे बहादुर योद्धा पैदा किया  है  बल्कि कई ऐसे ज्ञानी लोग भी पैदा हुए है, जिन्होंने जगत  के रहस्यों को सुलझाने में मदद की है ।

इन्हीं ज्ञानियों में एक नाम है ज्ञानी पंडित मंडन मिश्र और उनकी पत्नी उभय भारती देवी की ।

एक समय  की बात है कि भारतीय धर्म-दर्शन को उसके सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंचाने वाले महान  विद्वान् आदि शंकराचार्य एक बार शास्त्रार्थ  में मंडन मिश्र को हरा दिया था |

All Pic source: Google.com

लेकिन उनकी पत्नी भारती से शास्त्रार्थ में खुद हार गए थे।

आदि शंकराचार्य को हराने  वाली विदुषी भारती बिहार की थीं।

आइए पूरी  घटनाक्रम   पर गौर  करते है |

मंडन मिश्र अपनी पत्नी के साथ माहिस्मती नगरी में रहते थे | मंडन मिश्र कितने विद्वान् थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके घर का पालतू तोता भी संस्कृत का श्लोक बोलता था |

मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती भी अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध थी |

उस समय  धर्म-दर्शन के क्षेत्र में आदि शंकराचार्य की ख्याति भी  दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी । कहा जाता है कि उस वक्त ऐसा कोई भी ज्ञानी नहीं था, जो आदि शंकराचार्य से धर्म और दर्शन पर शास्त्रार्थ कर सके।

शंकराचार्य देश भर  में घूम घूम कर साधु-संतों और विद्वानों से शास्त्रार्थ करते और सबों  को हराते और अपना शिष्य बनाते चले गए |

इसी यात्रा के दौरान वे   मिथिलांचल के मंडन मिश्र के गांव तक भी पहुंचे थे।

मंडन मिश्र गृहस्थ आश्रम में रहने वाले विद्वान थे। उनकी पत्नी  जो खुद भी धर्म शास्त्र की ज्ञाता थी |

 इस दंपती के घर पहुंचकर शंकराचार्य ने मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने शर्त रखा  कि अगर मंडन मिश्र हार जाते है तो ऐसी स्थिति में वह जीतने वाले का शिष्य बन जाएगा और अपनी गृहस्थ  जीवन त्याग कर ब्रह्मचर्य का पालन करेगा |

अब सवाल खड़ा हुआ कि दो विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ में हार-जीत का फैसला कौन करेगा। आदि शंकराचार्य को पता था कि मंडन मिश्र की पत्नी भारती विद्वान हैं। उन्होंने उन्हें ही निर्णायक की भूमिका निभाने को कहा।

शंकराचार्य के कहे अनुसार भारती दोनों के बीच होने वाले शास्त्रार्थ का निर्णायक बन गईं।

मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच 21 दिनों तक शास्त्रार्थ होता रहा।

निर्णय की घडी आ गयी थी | दोनों एक से बढ़कर एक तर्क दे रहे थे |

इसी  बीच देवी भारती को कुछ समय के लिए बाहर जाना पड़ा | जाते जाते उन्होंने विद्वानों को पहनने के लिए एक एक फुल माला दी  और कहा कि ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपकी हार और जीत का फैसला करेगी |

देवी भारती थोड़ी देर बाद अपना काम पूरा करके लौट आयी |

उन्होंने आते हीं मंडन मिश्र और शंकराचार्य को बारी बारी से देखा और अपना फैसला  सुना दिया…|

आदि शंकराचार्य विजयी घोषित किये गए | लोग हैरत हो गए कि बिना किसी आधार के भारती ने अपने पति को ही पराजित करार दे दिया |

वहाँ बैठे एक विद्वान् ने नम्रता पूर्वक जिज्ञासावश कहा …हे देवी, आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गयी थी ..फिर लौटते ही आपने  ऐसा फैसला कैसे दे दिया ?

भारती ने शांत भाव से उत्तर दिया … जब भी कोई विद्वान् शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है और उसे पराजय की झलक दिखने लगती है तो वह क्रोधित होने लगता है |

मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध के ताप से सुख चुकी है | जबकि शंकराचार्य की माला के फुल अब भी पहले की भांति ताजे हैं |.. शंकराचार्य ने क्रोध पर भी विजय पाई है |

निर्णायक की हैसियत से भारती ने कहा कि उनके पति हार गए हैं। वे शंकराचार्य के शिष्य बन जाएं और संन्यास की दीक्षा लें।

लेकिन अगले ही क्षण उनकी पत्नी ने शंकराचार्य से कहा … मेरे पति अभी संन्यास नहीं ले सकते | अभी आप की पूर्ण विजय नहीं हुई है |

उनकी बातें सुनकर शंकराचार्य और वहाँ उपस्थित लोग हैरान होकर उनकी ओर देखने लगे |

भारती ने आगे कहा…  मंडन मिश्र विवाहित है | शास्त्रों में माना  गया है कि पत्नी पति की अर्धांग्नी होती है | हम दोनों मिलकर अर्ध नारीश्वर की तरह एक इकाई बनाते है | आपने अभी आधे भाग को हराया है | इसीलिए आप को मुझे भी शास्त्रार्थ में पराजित करना होगा |.

हालाँकि वहाँ सभी मौजूद लोग इस बात का विरोध करने लगे और मंडन मिश्र ने भी हार स्वीकार कर उनके शिष्य बनने को तैयार हो गए थे |

लेकिन भारती अपने कथन पर अडिग रही और कहा …आप मुझे पराजित करके ही मेरे पति को अपना शिष्य बना सकते है | या तो आप हमसे शास्त्रार्थ करें या फिर आप अपनी हार स्वीकार करें |

कहते है कि शंकराचार्य को मंडन मिश्र के पत्नी की बात माननी ही पड़ी | शंकराचार्य तो ज्ञानी थे ही और उनको अपने ऊपर पूरा भरोसा था | इसलिए शंकराचार्य ने भारती का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |

दोनों के बीच जीवन जगत से सम्बंधित प्रश्नोत्तर होते हुए कुछ  दिन बीत गए । एक महिला होने के बावजूद उन्होंने शंकराचार्य के हर सवाल का जवाब दिया। |

वे ज्ञान के मामले में शंकराचार्य से बिल्कुल कम न थीं | लेकिन 21वें दिन भारती को यह लगने लगा कि अब वे शंकराचार्य से हार जाएंगी ।

इसलिए 21वें दिन भारती ने एक ऐसा सवाल कर दिया, जिसका व्यावहारिक ज्ञान के बिना दिया गया शंकराचार्य का जवाब अधूरा समझा जाता।

भारती ने शंकराचार्य पूछा – काम शास्त्र क्या है ?  इसकी प्रक्रिया क्या है | इनमे कितनी मुद्राएँ होती है और इससे संतान की उत्पत्ति कैसे होती है ?

इस पर शंकराचार्य ने भारती से पूछा …हे देवी, एक ब्रम्हचारी से ऐसा प्रश्न क्यों ?

भारती ने उनसे सिर्फ इतना कहा….क्या, काम शास्त्र,  शास्त्र विद्या नहीं ?

फिर आप तो सर्वज्ञ है, जितेंद्रियें है | तब आप ही बताएं इसका उत्तर क्यूँ नहीं देना चाहते है |

आदि शंकराचार्य तुरंत सवाल की गहराई समझ गए ।  वे उस वक्त इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि वे ब्रह्मचारी थे और दांपत्य जीवन का उन्हें कोई अनुभव नहीं था। पढ़ी-सुनी बातों के आधार पर जवाब देते तो उसे माना नहीं जा सकता था।

तब शंकराचार्य ने भारती से कहा .. हे देवी, मैं आपके प्रश्नों का उत्तर ज़रूर दूंगा लेकिन मुझे एक माह का मोहलत चाहिए |

 इस पर भारती ने कहा… जैसी आप की इच्छा |

ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य उस सभा को छोड़ कर जंगल की ओर चले गए | जंगल में विचरने के दौरान उन्हें एक अमरु नाम के राजा का शव दिखाई दिया |

उस राजा अमरु की मौत शिकार के दौरान गयी थी |

उसी क्षण आचार्य शंकराचार्य ने कुछ सोचा और अपने प्रबल योग शक्ति से अपने शारीर का त्याग कर राजा  अमरु के मृत शरीर में प्रवेश कर गए |

आदि शंकराचार्य ने उस मृत राजा की देह को धारण कर लिया | उन्होंने राजा की काया के साथ उस महल में गए और उसकी पत्नी के साथ उन्होंने भारती के सवाल का जवाब ढूंढा ।

उसके बाद वे अपने मूल शरीर में वापस आये और फिर भारती के पास आकर उन से शास्त्रार्थ किया |

इस बार उन्होंने भारती के सारे सवालों का ज़बाब दिया और उन्हें पराजित किया |

इस तरह आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती को पराजित करके  उन्हें अपना शिष्य बनाया और पुरे  मिथिलांचल में अपने धर्म का ध्वज फहराया …

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12 replies

  1. बहुत अच्छा।

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  2. Excellent Blog. Giving lots of information ℹ️👍👏👏👏💐

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  3. Bahut Sundar.Nice story about Mandan Mishra .

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