#एक जुनून  ऐसा भी #-8

डॉ ने चारलोट के पिता की गहन जांच कर बताया कि उन्हें heart attack आया है और वे अभी कौमा में चले गए है |

डॉ ने समझाते हुए चारलोट से कहा — इनकी स्थिति बहुत नाज़ुक बनी हुई है | इन्हें अच्छी तरह देख – भाल की  ज़रूरत है  और शायद चमत्कार ही इन्हें बचा सकता है |

इधर आनंदिया इन सब बातों से बेखबर वह किसी तरह जेल से निकलने  की तरकीब सोच रहा था | तभी उसे एक तरकीब सूझी |  उसने  जेल में काम करने वाले जेल ऑफिसर की Portrait और sketch बना कर उन लोगों को  गिफ्ट करने लगा |

कुछ ही दिनों में वहाँ जेल में वह काफी लोकप्रिय हो गया | अब वहाँ के अधिकारी उसे जेल से निकालने में मदद का भरोसा भी दिया | आनंदिया को फिर से आशा की किरण नज़र आने लगी | उसने वहाँ के अधिकारी से इजाजत लेकर एक खत लिखा और उस खत को  चारलोट  तक पहुंचाने का निवेदन किया |

उसकी तरकीब काम कर गई | उसकी चिट्ठी चारलोट तक पहुँच गई | उस समय चारलोट  हॉस्पिटल में रह कर अपने पिता की सेवा कर रही थी | वह किसी तरह अपने पिता की ज़िंदगी बचाना चाहती थी |

आनंदिया  का संदेश पाकर चारलोट को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बात की  खुशी मनाए या अपने पिता की दयानिए स्थिति का मातम मनाए |

अंततः, चारलोट ने अपने भीतर चल रहे द्वंद को विराम देते हुये आनंदिया के खत का जबाव दिया | उसने दुखी मन से लिखा कि वह तुरंत  मिलने के लिए उसके पास नहीं आ सकती | उसने अपने पिता की बीमारी का जिक्र करते हुये लिखा — पिता ने मुझे ज़िंदगी दी है और अभी उनकी ज़िंदगी को बचाना  मेरा धर्म है | शायद भगवान को यही मंजूर है |

चारलोट की परेशानी को जान कर आनंदिया को बहुत दुख हो रहा था, लेकिन वह तो स्वयं ही परेशानी से घिरा था , ऐसे में वह उसे मदद भी नहीं कर सकता था |

इस तरह 15 दिन बीत गए और दोनों आपस में मिलने के लिए रोज़ भगवान से दुआ करते रहे |

और फिर एक अच्छी बात हुई, उसके पिता को होश आ गया और उनकी स्थिति सुधरने  लगी | डॉ ने चारलोट की तारीफ करते हुये उसके पिता को बताया कि बेटी की रात दिन की सेवा और उसकी प्रार्थना के कारण ही उन्हें नई ज़िंदगी मिली है |

उसके पिता को यह भी पता चला कि आनंदिया स्वीडन तक पहुँच चुका है अभी वहाँ के  जेल में बंद है | और चारलोट ने खबर पाकर भी अपने बीमार पिता को छोड़ कर आनंदिया की मदद को भी नहीं गई |

आज उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था | अब उनकी तबीयत में तेजी से सुधार हो रहा था | ठीक तीन दिनों के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी भी मिल गई और बाप बेटी घर आ गए | चारलोट के  पिता अपनी बेटी से बहुत खुश थे | लेकिन चारलोट  उदास रहती थी | वह तो पिता से शर्त हार गई थी, जिसके तहत उसे उसी से शादी करनी होगी  जहां पिता चाहते है |

अपने स्वस्थ होने की खुशी में पिता ने एक भव्य पार्टी का आयोजन किया | बहुत सारे मेहमान आए हुये थे | सभी लोग बहुत खुश थे सिर्फ चारलोट को छोड़ कर | उसे तो हर पल आनंदिया  की  याद सता रही थी |

पार्टी अपने पूरी शबाब पर थी और सभी मेहमान पार्टी का लुफ्त ले रहे थे और खुश नज़र आ रहे थे | तभी अचानक स्टेज पर म्यूजिक बंद हो गया और सभी थिरकते जोड़ों की नज़रें स्टेज पर चली गई | तभी उसके पिता ने अपने साथ खड़े एक आदमी से लोगों का परिचय कराया  |

दोस्तों, यह आनंदिया है हमारी बेटी का मंगेतर | ये हमारी बेटी से इतना प्यार करते है कि इन्होंने वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाते हुये इंडिया से स्वीडन तक का सफर एक  साइकिल से किया है | मैं इनकी बहादुरी और प्यार की कद्र करता हूँ | और मैंने  अपनी बेटी कि  सगाई इनसे करने का फैसला किया है | यह पार्टी भी इसी खुशी के अवसर पर रखा गया है | चारलोट आंखें फाड़ कर अपने पिता के साथ खड़े आनंदिया को देख रही थी और आश्चर्य से अपने पिता की वो बातें सुन रही थी | उसे तो अपने कान पर एक बारगी भरोसा भी नहीं हो रहा था |

दरअसल उसके पिता की ऊंची पहुँच और उनके प्रयासों के कारण ही आनंदिया  जेल से बाहर आ सका था | और इस तरह दोनों के मिलने का इंतज़ार खत्म हुआ और फिर दोनों जल्द ही शादी के बंधन में बांध गए |

(Note: यह एक काल्पनिक कहानी है, इसका हकीकत से कोई संबंध नहीं है और इसमे फोटो Google . com से लिए गए हैं |)

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4 replies

  1. Nice ending of the story.

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