#एक जुनून  ऐसा भी# -4

चारलोट की आँखों में आँसू देख कर आनंदिया ने कहा – चारलोट, अब तुम मेरी पत्नी हो, इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम यहाँ कुछ दिन और रुक जाओ |

लेकिन कैसे ? मेरा वीज़ा तो बस समाप्त ही होने वाला  है —  चारलोट ने आनंदिया की ओर देखते हुए पूछा  |

हमारे शादी का हवाला दे कर कुछ दिनों के लिए वीज़ा को बढ़ाए जाने का निवेदन किया जा सकता है | हमें एक बार कोशिश तो करनी चाहिए |

सचमुच, आनंदिया का सुझाव  काम कर गया और चारलोट को एक महीने का वीज़ा एक्सटैन्शन (extension} मिल गया |

यह खबर पाते ही आनंदिया के खुशी का ठिकाना नहीं रहा |

उसे महसूस हो रहा था, जैसे इस नीरस जीवन में जैसे पंख लग गए है | उसने  तो अपने भविष्य की बहुत सारी योजनाएँ भी बना डाली | आज उसे महसूस हो रहा था कि चारलोट  के साथ रह कर, अब तक झेल रहे समाज के ऊंच- नीच, और गरीबी-अमीरी और नफरत से आज़ाद हो जाएगा | सचमुच ज़िंदगी खूबसूरत हो जाएगी |

लेकिन कहते है न कि खुशी के पल ज्यादा देर तक नहीं टिक पाते है | सुख- दुख तो एक चक्र के समान घूमा करते है |

सही है, अभी दो दिन ही दिल्ली आए हुआ था और घर से खबर आई कि माँ की  तबीयत अचानक काफी बिगड़ गई है | यह खबर पाते ही चारलोट ने कहा – आनंदिया, तुम माँ को देखने अभी गाँव के लिए प्रस्थान करो , मैं अपना वीज़ा और पासपोर्ट के extension  की  formality पूरा होते ही मैं भी आ जाऊँगी |

आनंदिया गाँव तो पहुँच गया | लेकिन  उस पर  चंद दिनों की खुशी के बाद जैसे अब मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था |

एक तरफ माँ को खो देने का मातम था तो दूसरी ओर अचानक चारलोट को भी पिता के बीमार होने की  खबर पाते ही वो भी बिना आनंदिया से मिले अचानक उसे अपने घर जाना पड़ा |

आनंदिया को कुछ  समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब अचानक क्यों हो रहा है ?

वह बहुत उदास और अकेला महसूस कर रहा था |

आनंदिया गाँव में अब ज्यादा दिन तक नहीं रह सकता था | एक तो गाँव में एक माँ थी वो भी चल बसी और दूसरे उसके  पास जीतने पैसे थे, सभी समाप्त हो चुके थे | अब तो फिर से काम धंधा शुरू करना होगा |

इधर चारलोट को अपने पिता की बीमारी की खबर से चिंतित, आनंदिया से बिना मिले ही  अपने घर वापस आना पड़ा |

लेकिन यह क्या ? पिता जी तो बिलकुल स्वस्थ थे और जंगल में शिकार खेलने जाने वाले थे | चारलोट को समझ में नहीं आ रहा था कि पिता जी ने अपने बीमारी की झूठी खबर भेज कर क्यों उसे बुलवा लिया है |

चारलोट तो पहले से ही आनंदिया की माँ की मृत्यु की खबर पा कर बहुत दुख महसूस कर रही थी |

वो अपने कमरे में जा कर चुप चाप  जा कर बैठ गई | उसके आँखों में आँसू थे |

तभी पिता जी उसके कमरे में आए और  कहा – इंडिया का भ्रमण (tour) कैसा रहा ?

जबाव देने के बजाए चारलोट ने पिता जी से ही प्रश्न किया -– आपने अपने बीमार होने की  झूठी खबर क्यों भेजा था | आपको पता नहीं कि मुझे कितनी  चिंता हो  रही थी |

पिता ने हँसते हुए कहा – मैं तो बिलकुल ठीक हूँ | मुझे पता चला कि तुम एक महीना और इंडिया में रुकना चाहती हो तो मुझे तुम्हारी फिक्र होने लगी  और तुम्हारी याद भी |

और हाँ, एक बात बताना तो भूल ही गया |

वो क्या पिता जी – चारलोट  ने आश्चर्य से पिता की ओर देखा |

मैंने ने तुम्हारी शादी अपने दोस्त के बेटे से पक्की कर दी है | वे लोग  भी हमारी तरह एक स्टेट का मालिक है |

आपने यह क्या किया पिताजी ? आपको  पहले मुझसे पुछना तो चाहिए था |

तुमसे पूछता क्यों  ? मुझे विश्वास है कि  मेरी पसंद ही तुम्हारी भी पसंद होगी — पिता ने सिगार पीते हुए जबाव दिया |

नहीं पिता जी, आपने यह ठीक नहीं किया | मैंने इंडिया में अभी -अभी अपना जीवन – साथी चुन लिया है | मैं तो वापस आकर  यह खबर आप को देने ही वाली थी | मैं आपके दोस्त के बेटे से शादी नहीं कर सकती |

यह तुम क्या कर रही हो ? – पिता जी ने नाराज होते हुए कहा |

मैं जहां चाहता हूँ, तुम्हें वहीं शादी करनी होगी | हमारा इतना बड़ा साम्राज्य है, जंगलात है, यह सब कौन संभालेगा ?

वो मैं कुछ नहीं जानती ! आनंदिया  बहुत ही नेक इंसान है और मुझे हर तरह से खुश रखेगा , मेरा यह विश्वास है |

देखो चारलोट ! मैं तुम्हें इंडिया में बसने नहीं दूंगा और आनंदिया को यहाँ का मालिक नहीं बनाया जा सकता है | इसलिए तुम जिद छोड़ कर अपनी शादी के लिए मान जाओ |

चारलोट को महसूस हो रहा था कि वह मुसीबत में घिर चुकी है | पिता जी मेरी शादी जबरदस्ती  अपने दोस्त के बेटे से करवा देंगे |

वो घबराहट में इन सभी बातों की  जानकारी एक खत में लिख कर आनंदिया को भेज दी | और उसने यह भी लिखा कि  अगर तुम इजाजत दो तो तुम्हारे लिए मैं प्लेन का टिकट भेज दूँ | चारलोट को उम्मीद थी कि आनंदिया कोई न कोई रास्ता ज़रूर ढूंढ लेगा |

इधर आनंदिया दिल्ली वापस आ कर अपने वही पुराने काम धंधे में लग गया था | चारलोट का खत पाकर वह परेशान हो उठा , लेकिन चारलोट  को खत का जवाब देते हुये लिखा कि तुम घबराना मत , मैं जल्द ही तुम्हें लेने आ रहा हूँ |

और हाँ, मैं आऊँगा तो अपने पैसों से | तुम तो जानती हो कि मैं एक खुद्दार इंसान हूँ | मैं तुमसे पैसे नहीं ले सकता | तुम्हारे पिता जी यही  सोचेंगे कि मैं तुम्हारे धन दौलत के हासिल करने के लिए  ही तुमसे शादी की  है |

मैं एक कलाकार हूँ और मुझे अपने हुनर पर पूरा भरोसा है | एक दिन मैं भी खूब पैसे कमाऊँगा |

आनंदिया रोज़ अब ज्यादा काम करने लगा, ताकि प्लेन के टिकट का जुगाड़ हो सके |

लेकिन भगवान की  मर्जी के बगैर कुछ नहीं होता  है | वह रात दिन लोगों की Portrait  बनाता लेकिन ऐसा कोई दिलदार नहीं मिला  जो उसे उतना पैसे दे सके , जिससे अपनी प्रेयसी के पास जा सके |

इस तरह समय बीत रहे थे और दोनों एक दूसरे से मिलने को तरस रहे थे | 

उधर चारलोट के पिता उसकी शादी  अपने दोस्त के बेटे से करने के लिए दबाब बना रहे थे |

इसके आगे की कहानी हेतु  नीचे link पर click करे..

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13 replies

  1. अच्छी कहानी।

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  2. Great post on Sarat chandra! We can find a simple life of people in his writing! Well shared👌

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  3. Story of an Odisha boy fall love with Sweden girl.Dr.PK Mahandia.Born in Athamalik and father was post master.Any way story is good.

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