# एक अधूरी प्रेम कहानी #…3

source:Google.com

एक मजदूर की प्रेम कथा

यह सच है कि पेट की आग के सामने दुसरे सभी आग ठंडा पड़ जाता है |  लेकिन मेरे लिए तो पेट की आग के आलावा भी दिल की आग लगी हुई थी जिसके कारण  मुंबई की ओर खीचा चला आ रहा था |

मैं  तो हर पल सुमन को याद करता और भगवान् से हाथ जोड़ कर इस बात की माफ़ी मांगता कि सुमन को उसके हाल पर छोड़ कर गाँव चला आया था |  

लेकिन आज तीन माह के बाद मौका मिला था और मुंबई के लिए निकल पड़ा था  दोस्तों के साथ |

हालाँकि ईट भट्टा का काम तो बंद ही था, लेकिन विकास का फैक्ट्री चालू हो गया था |  उसका मालिक ज्यादा मजदूरी देने का लालच देकर उसे बुलाया था |  इसलिए हमको भी आशा थी  कि उस  फैक्ट्री में कुछ काम मिल ही जायेगा |  

इसी आशा में मैं इन लोगों के साथ घर से निकल पड़े थे |  आगे भगवान् की इच्छा |  चलती ट्रेन में सीट पर लेटे ,इन्ही सब बातों को मैं सोच रहा था कि जाने कब नींद आ गई |

सुबह होने को था और हरिया लगभग झकझोरते हुए मुझसे  कहा …और कितना सोइयेगा, मुंबई पहुँचने वाले है |  मैं उठ कर गाड़ी के सीट पर बैठे बैठे ही भगवान् को प्रणाम किया और हाथ पैर सीधा किया |

अलसाई दिमाग में सुमन की याद आते ही अचनक शारीर में स्फूर्ति पैदा हो गई और सोचने लगा …, आज मुझ से मिल कर वो बहुत खुश हो जाएगी |  थोडा गिले शिकवे भी होंगे, लेकिन मैं उसे मना  लूँगा |  पता नहीं, किस हाल में होगी बेचारी |

 मेरा फ़ोन क्या ख़राब हुआ, उससे बात भी ना हो सकी |  उसके पास भी तो मोबाइल  नहीं थी |  इन्ही बातों में खोया, अपने  सामान और दोस्तों के साथ ट्रेन से प्लेटफार्म पर आ गया |  

अभी तीन महिना पहले ही तो इसी स्टेशन से हम गाँव के लिए रवाना हुए थे तब यहाँ बिलकुल भीड़ नहीं थी, लेकिन  आज लॉकडाउन ख़तम होने से कितना भीड़ बढ़ गया है |  

चारो तरफ नज़रे दौड़ा कर देख रहा था ,तभी हरिया मेरे पास आया और बोला …रघु भैया, हमलोग अभी विकास के साथ ही उसकी खोली पर चलते है  फिर बाद में अपना अपना इंतज़ाम कर लिया जायेगा |  मैंने भी उसकी बात से सहमती जताई |  

source:Google.com

वहाँ से सीधे धारावी, विकास की  खोली पर पहुँच  गए और नहा धोकर खाना खाया |  उसके बाद हमलोग  सीधे सुमन से मिलने उसके खोली के तरफ चल दिए |  रास्ते भर उसको याद करके ही दिल में बड़ा उथल पुथल हो रहा था  |

लेकिन यह क्या ? खोली तो बंद है | अगल – बगल पूछने पर पता चला कि वो यहाँ से खोली छोड़ कर चलीं गई |  लेकिन कहाँ गई,  किसी भाई लोग को पता नहीं है |  

अब इतना बड़ा मुंबई शहर में कहाँ  पता चलेगा |  मेरा तो दिल बैठने लगा |  आज कल मेरा सोचा हुआ सभी कुछ उल्टा ही हो रहा था |  यही एक सहारा था मेरा, वो  भी समाप्त हो गया | समझ में नहीं आता,  अब कहाँ जाऊं ?

तभी हरिया और विकास संतावना देते हुए बोल पड़े  ..आप क्यों घबरा रहे है |  भगवान् ने चाहा तो जल्द ही मुलाकात हो जाएगी, धीरज रखिये |  अभी तो सबसे ज़रूरी है कि कही काम मिल जाये ताकि ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आ सके |

दुसरे दिन सुबह विकास तैयार हो कर आया और कहा ..हम मालिक से मिलने अपना फैक्ट्री जा रहे है, आप भी मेरे साथ चलिए , शायद आप के लिए भी काम की व्यवस्था  हो जाये |   

मेरे पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था … काम नहीं पकड़ेगें तो  खायेंगे कहाँ से ..ऐसा सोच कर  विकास के साथ चल पड़ा |  

सेठ जी विकास को देख कर खुश हो गए |  वो दो साल से यहाँ काम कर रहा था  इसलिए काम का काफी अनुभव था,  इसी कारण सेठ उसको बहुत मानते थे |   

विकास ने सेठ से मुझे काम देने के लिए आग्रह किया |  सेठ जी  मेरी तरफ देख के बोले  …अभी तो फैक्ट्री चालू ही किया है और फिलहाल तुम्हारे योग्य अभी कोई काम नहीं है,  लेकिन एक सप्ताह बाद जब  फैक्ट्री पूरी तरह काम करने लगेगा, तब आप को काम पर रख सकता हूँ |

मैं निराश मन से वापस खोली की तरफ चल दिया |  आज का दिन ही ख़राब है, कोई भी काम नहीं बन पा रहा है, मन में घबराहट हो रही थी, और सोच रहा था कि जल्द ही कोई काम नहीं मिला तो खाने के लाले पड़ जायेंगे /     

यही सोचते हुए कब सुमन की पुराणी खोली के पास पहुच गया, पता ही नहीं चला |  और बंद खोली को देख कर सोच रहा था कि  कैसे पता करे उसके बारे में |  तभी अचानक पीछे से फल वाला नज़ीर भाई ने आवाज़ लगाई  …अरे रघु भाई…आप कब आये ? वो अपनी फलों से भरी ठेला लिए इधर ही आ रहा था |

बस, आज ही आया हूँ भाई , आप कैसे हो ?..मैंने पूछ लिया |  

अब तो स्थिति कुछ बेहतर हुई है और अपना धंधा – पानी चालू हो गया है …नज़ीर भाई बोला |

source:Google.com

और हाँ, सुमन के बारे में पता है ?..उसने जैसे ही सुमन का नाम लिया तो मैंने उत्सुकता से उसकी ओर देखा |

वो आगे बताने लगा ….उसके साथ तो बहुत  बुरा हुआ |  तुम्हारे जाने के बाद उसके पिता चल बसे |  लेकिन सुमन साधारण औरत नहीं थी |  वो तो बहुत ही  हिम्मत वाली निकली |  अकेले  ही पिता  के क्रिया कर्म का इंतज़ाम किया, उसके  परिवार का कोई लोग नहीं आया  इस महामारी की डर से |  

और हां, सुना है कि किसी फैक्ट्री में काम मिल गया है उसे |   वो तो पढ़ी लिखी थी, इसीलिए उसे आसानी से काम मिल गया | लेकिन कहाँ गई, पता नहीं |  वो अकेली थी इसलिए शायद फैक्ट्री के पास ही रहने चली गई होगी |  

इन सब बातो को सुनकर मन दुखी होना लाज़मी था |  मैं सिर पकड़ कर खोली के पास ही  बैठा था कि मुझे अचानक ध्यान आया कि ठेकेदार के पास  मेरे बकाया के पैसे है |  शायद वो कुछ पैसे दे दे  |  मैंने  मन बना लिया कि कल सुबह ही ठेकेदार के पास पैसे मांगने जायेगा |  

 मैं सुबह सुबह उठ कर ठेकेदार की तलाश में निकल पड़ा |  बहुत पता करने पर अंततः उसका पता चल गया और मैं अकबर पुर पहुँच गया और ठेकेदार से भी भेट हो गई |  

ठेकेदार के पास भी काम ना होने की वजह से वह काफी परेशान दिख रहा था |  मैंने जब अपना हिसाब माँगा तो बोल उठा कि अभी मेरे पास पैसे नहीं है, पैसा होगा तब तुम्हारा हिसाब कर देंगे |   

मैं लगभग गिडगिडाते हुए हाथ जोड़ कर बोला ….हमें अभी पैसों की सख्त ज़रुरत है,  कुछ भी पैसे अभी दे दो |  लेकिन उसने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी कार में बैठ कर जाने लगा |  मैं उसे रोकने के लिए उसकी कार के सामने आ गया |   

लेकिन यह क्या  ?  रोकने के बजाये उसने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी |  मैंने टक्कर से बचने के लिए छलांग लगा दी और गिर पड़ा |  मेरा सिर फट गया और उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं…   

जब होश आया तो आस पास देखने की कोशिश की / लेकिन आँखों के सामने अँधेरा छाया हुआ था |सिर भारी लग रहा था इसीलिए   मैं वापस आँख बंद कर सो गया |  

पर इतना मुझे महसूस हुआ कि किसी हॉस्पिटल के बेड पर हूँ |  कुछ देर तक शांति रही, तभी एक आवाज़ मेरे कानो में पड़ी |  मैंने आँख खोल कर देखने की फिर कोशिश की तो एक धुंधली सी आकृति दिखाई दी |  लेकिन मैं पहचान नहीं पाया |  हां उसकी आवाज़ पहचानी सी लग रही थी |  मैं बेड पर उठ कर बैठने की कोशिश करने लगा तो उसने हाथ के सहारे से मुझे बैठाया |  

आँख खोल कर ध्यान से उसे देखने की कोशिश की |  उस समय मुझको आश्चर्य हुआ जब धुंधला चेहरा साफ़ देख पाया | वो नारंगी रंग की साड़ी में बेहद खुबसूरत लग रही थी |  मुझे  देख कर मुस्कुराई और पूछा ..अब कैसा लग रहा है ?

मेरी  आँखे फटी की फटी रह गई और वो पिछली घटना याद करने लगा,  और सोचने लगा कि यहाँ मुझे कौन लेकर आया | मुझे तो कुछ याद ही नहीं है | और सुमन को मैं कहाँ  मिल गया ? उन्ही ख्यालो में खोया ही था कि सुमन एक गिलास आम का जूस लाकर पिने को दी |

मैंने  धीरे से पूछा …मैं यहाँ कैसे आया और तुम ….. ?

सुमन उसकी बात बीच में काटते हुए बोली…उस समय मैं काम समाप्त कर फैक्ट्री से निकल कर ऑटो रिक्शा से घर जा रही थी | तभी पास ही सड़क पर एक भीड़ देखी |  पूछने पर पता चला कि कोई बिहारी मजदूर घायल बेहोश पड़ा है |

 मुझे सुन कर रहा नहीं गया ,क्योंकि मैं भी एक मजदूर थी और इसकी पीड़ा महसूस करती थी |  मैं ऑटो से उतर कर पास गई और तुम्हे देख कर हैरान रह गई |   

मैं जल्दी से तुम्हे उठा कर ऑटो से ही यहाँ ले आयी |  डॉक्टर ने बताया था कि सिर का  घाव गहरा  है और तुम्हे  दो दिन तक होश नहीं भी आ सकता था | लेकिन भगवान् का लाख लाख शुक्र है कि आज दुसरे दिन ही होश आ गया |

मैं किसी तरह जूस को पी रहा था और सुमन के चेहरे पर उभरने वाली ख़ुशी  को पढने की कोशिश कर रहा था… (क्रमशः ) …………….

आसमां में मत ढूंढ अपने सपनों को ,

सपनों के लिए तो ज़मीं ज़रूरी है ..

सब कुछ मिल जाये तो जीने का क्या मज़ा

जीने के लिए कुछ कमी भी तो ज़रूरी है….

source:Google.com

इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें ..

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

If you enjoyed this post, don’t forget to like, follow, share and comments.

Please follow the blog on social media….links are on the contact us  page

www.retiredkalam.com



Categories: Uncategorized

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: