
हमलोग “महावीर टाकीज़” से मूवी देख कर निकलते हुए काफी खुश थे |
ना जाने कितने दिनों बाद आज मूवी देखने का मौका मिला था, वो भी दोस्तों के साथ | शिवगंज में रहने से एक फायदा यह भी है |
हालाँकि चार दिनों पूर्व ही जब पिंकी के साथ आबू रोड गया था तो वो मेरे साथ मूवी देखने की जिद कर रही थी |
लेकिन उसकी इस इच्छा को यह कह कर टाल दिया था कि घर पहुँचने में देरी होने से मुसीबत हो सकती है | लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंज़ूर था और मूवी नहीं देखने के बाबजूद, ऐसी मुसीबत आई कि अंततः जुदा होना पड़ा |
शिवगंज मेरे लिए एक नयी जगह थी, हालाँकि धर्मशाला होने के बाबजूद यहाँ सारी सुविधाएँ उपलब्ध थी |
दिन भर की भाग- दौड़ के कारण थकान महसूस होने लगी थी इसलिए रूम में पहुँचते ही हमलोग तुरंत ही नींद की आगोश में समां गए |
अचानक आधी रात में मेरी नींद खुल गई और मैं हडबडाहट में बिस्तर पर उठ कर इधर उधर देखने लगा, लेकिन यहाँ तो कोई भी नहीं था |
ना जाने ऐसा क्यों लगा कि अभी – अभी इसी बिस्तर पर पिंकी यहाँ बैठी थी और मुझसे ना जाने क्या बोल रही थी,… उसकी आवाज़ इतनी धीमा थी कि मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था |
लेकिन मैंने उसके चेहरे को देखा था . .. उसके आँखों में आँसू थे | वो कुछ कहना चाह रही थी, शायद यही कि तुम तो मुझे अकेला छोड़ आये, लेकिन किसके भरोसे ?
मेरी नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी | मन अशांत हो गया |
था तो यह एक सपना ही, लेकिन पहले कभी इस तरह पिंकी को सपनो में नहीं देखा था | इससे पहले तो ऐसी अनुभूति नहीं हुई थी |

मुझे इस तरह बिस्तर पर अँधेरे में बैठा खुद से बात करते हुए देख, राजेश चौक कर उठ गया और मुझसे बोला –..आप इतनी रात को किससे बातें कर रहे हो | और उठ कर उसने लाइट जला दी |
उसने देखा कि पंखा चलने के बाबजूद मेरे चेहरे पर पसीने की बूंद साफ़ दिखाई पड़ रही थी |
वो मुझे ऐसी हालत में देख कर घबरा गया और जल्दी से उठकर मुझे एक गिलास पानी पीने को दिया |
मैंने पानी पी लिया तो उसने पूछा …अब तबियत कैसी है ?
मैं उसे सपनो वाली सारी बात बता दी |
आप बेकार ही पिंकी के लिए इतनी चिंतित हो रहे है… राजेश ने कहा |
वो तो अपने घर में ही है और सुरक्षित ही होगी | वैसे कल जब वापस मैं जाऊंगा तो बिजली बिल देने के बहाने उसके घर जाऊंगा और मौका देख कर आप की बात उस तक पहुँचा दूँगा | आप अभी आराम से सो जाओ |
मैं बिस्तर से उठा और बाथरूम जाकर अपनी आँखों को अच्छी तरह साफ़ किया |
बिस्तर पर वापस आकर दोबारा सोने की कोशिस करने लगा | राजेश लाइट बुझा चूका था |
लेकिन दिलो – दिमाग में बस एक ही प्रश्न घूम रहा था ..–.कल ही तो उसके घर गया था, लेकिन उसने मुझसे मिलने से इनकार क्यूँ किया ? …समझ में नहीं आया |
कभी – कभी जो दिल के करीब होता है, उसपर कोई मुश्किल आन पड़ती है हो उसका आभास होने लगता है | मेरे साथ भी ऐसा तो कुछ नहीं हो रहा है ? शायद भावनात्मक जुडाव का परिणाम था| |
मैं किसी तरह सुबह होने का इंतज़ार करता रहा | और कुछ देर पश्चात किसी ने मेरे रूम का दरवाज़ा खटखटाया और चाय के साथ आज का “राजस्थान पत्रिका टेबल” पर रख चला गया |
दिन के नौ बज चुके थे और हमलोग अपना नाश्ता समाप्त कर चुके थे | धर्मशाला से बाहर निकलते हुए राजेश और रघु जाने की इज़ाज़त मांगी और अपनी जीप में बैठ गए | ..
मैं जब उसकी ओर देखा तो वो बोला … जब भी मेरी ज़रुरत हो, आप बस याद करना… , मैं हाज़िर हो जाऊंगा |
उन लोगों के जाते ही मैं भी बैंक की ओर पैदल ही निकल गया | हमारी शिवगंज शाखा थोड़ी दूर पर ही थी |

मैंने शिवगंज के बारे में सुन रखा था कि यह जगह रेवदर से ज्यादा सुविधा जनक और रहने लायक है, क्योंकि यह गाँव नहीं बल्कि पूरा शहर है |
पिछली शाखा के सभी शुभचिंतक और शाखा के स्टाफ जो मुझसे हमदर्दी रखते थे ..सबों ने मुझे दिल से बधाई दी थी | हालाँकि किन्ही अन्य कारणों से मुझे ख़ुशी का अनुभव नहीं हो रही थी |
क्योंकि मेरे खिलाफ “मार-पिट” का आरोप लगा कर उदयपुर हेड क्वार्टर में मेरी शिकायत दर्ज कराई गयी थी और परिणाम स्वरुप हमारा वहाँ से ट्रान्सफर हुआ था |
हमने इतने दिनों तक मेहनत कर जो साख बनाई थी, एक झटके में समाप्त हो गया था | और रही सही कसर पिंकी के कारण निकल गयी थी |
यही सब कुछ सोचता हुआ मैं बैंक के परिसर में प्रवेश कर गया | मैं थोड़ी जल्दी शाखा पहुँच गया था इसलिए अभी ग्राहकों की भीड़ नहीं थी, लेकिन सारे स्टाफ उपस्थित दिखाई दे रहे थे | मैं बैंकिंग हॉल को पार करता हुआ सीधे शाखा प्रबंधक महोदय के चैम्बर में दाखिल हो गया |
मेनेजर साहेब जिनकी उम्र करीब ५५ – ६० साल की लगती थी, धोती और कुर्ता में अपनी जगह बैठ कर फाइल में खोये थे | दिखने में सीधे सादे और शुद्ध देशी मेनेजर लग रहे थे |
मैं उनके सामने जा कर खड़ा हो गया, वो नज़रे उठा कर मेरी ओर देखा जैसे पूछ रहे हो ..किस काम से आये हो.. ?
मैं नमस्कार कर बोला … मैं, वी के वर्मा हूँ , बस इतना सुनना था कि कुर्सी से उठ खड़े हो गए और हमें ही प्रणाम करने लगे | और जल्दी से चपरासी को बुला कर पानी और चाय लाने को कहा |
मुझे इस तरह के व्यवहार से कुछ आश्चर्य हुआ | मैं तुरंत ही बोल पड़ा ..आप इतने बुजुर्ग है आप हमारे सामने हाथ जोड़े क्यों खड़े है ? उन्होंने बोला कुछ नहीं, परन्तु मुझे समझते देर ना लगी कि मेरे “मार- पिट” वाली बात सभी जगह फ़ैल चुकी है |
वे हमारी ओर मुखातिब होकर फिर बोले … आप अपनी इच्छा के अनुसार शाखा आइये और जब इच्छा हो आप फील्ड विजिट करें, इसके लिए शाखा की जीप है, और ड्राईवर बाबू लाल जी को आप के जिम्मे कर देता हूँ | आप को यहाँ पूरी तरह आजादी है, किसी से इजाजत लेने की आवश्यकता भी नहीं है |
मैं चुप – चाप उनकी बातों को सुनता रहा | मुझे तो अपनी सफाई देने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था |
खैर, चाय पीने के बाद मेनेजर साहेब ने सभी लोगों से परिचय कराने लगे | मैंने एक बात गौर किया कि सभी लोग मुझे मिलते हुए कुछ अलग तरह के अनुभव कर रहे थे ..जैसे मैं कोई बदमाश किस्म का इंसान हूँ |
शायद आस पास के शाखा में मेरी छवि इसी तरह की हो गई थी | और तब तक मीना साहेब भी आ गए, जिनके जगह पर हमें ज्वाइन करना था और उनको मेरी जगह रेवदर में जाना था |
संक्षिप्त परिचय के बाद मीना जी ने हमें पास ही बैठा कर यहाँ का हमसे सम्बंधित काम समझाने लगे और यह भी कहा कि मैं जो मकान खाली करूँगा उसी को आप ले लेना |
मेरा मकान की समस्या भी हल हो गया | लेकिन अपनी बदनाम छवि को कैसे ठीक करूँगा ?
मैं मन ही मन सोच रहा था कि अपनी “तपोड़ी” छाप छवि को ठीक करने के लिए यहाँ बहुत अच्छा performence करना होगा, काफी मेहनत करना होगा और सभी से अच्छे तरह पेश आना और अपने स्वाभाव के विपरीत यहाँ के राजस्थानी संस्कृति में रम जाना होगा |
मैंने मन ही मन ऐसी प्रतिज्ञा की और अपने सीट पर जा कर बैठ गया | | आगे कि बातें …क्रमश…

समंदर सारे शराब होते ..तो सोचो कितना बवाल होता,
हक़ीक़त सारे ख़्वाब होते ..तो सोचो कितना बवाल होता..
हम तो अच्छे थे ..पर लोगो की नज़र में सदा बुरे ही रहे,
कहीं हम सच में ख़राब होते.. तो सोचो कितना बवाल होता..!!
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