# हँसते ज़ख्म #…23 

चुप चुप सी मोहब्बत में

नकाब हजारों हैं ….

बात नहीं होती तो क्या हुआ ,

खामोशियों में ज़बाब हजारों हैं

दुनिया की नज़र में अजनबी हो तुम ,

मगर दरमियाँ अपने हिसाब हजारों है |

मेरी जीप गाँव के बाहर निकल कर सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी | मेरा मन बहुत व्याकुल था और तरह तरह के विचार मेरे मन में उठ रहे थे |

मन को शांत रखने की नाकाम  कोशिश करता रहा,  लेकिन राजेश जो मेरे बाजु में बैठा था , उससे हमारी यह हालत छुप न सकी |

वो मेरी ओर रुख करके बोला …आप काफी डिस्टर्ब हो गए हो आज | मैं आप को इस हाल में अकेला नहीं छोड़ सकता इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि आज आप के साथ ही शिवगंज तक चलूँ | और आप जब सामान्य हो जाएँ  तब वापस आ जाऊंगा |

मैं उसकी ओर देखते हुए कहा कि ..आज तुम एक सच्चे दोस्त का कर्त्तव्य निभा रहे हो | मुझे सचमुच इस समय एक सच्चे दोस्त की ज़रुरत महसूस हो रही है |

राजेश ने ड्राईवर से कहा …रघु जी, अब हमें रेवदर नहीं जाना है | , आप सीधा शिवगंज ही ले चलो |  आज साहब के साथ ही रहेंगे |

रघु जी  ड्राईवर ही  नहीं बल्कि जीप का मालिक भी था और हमलोग के दोस्त की तरह था |

ब्रांच का  कैश रेमिटेंस और अन्य  कार्यों के लिए इसी की जीप काम में लिया जाता है | इसलिए वह  सहयोग के लिए हमेशा तत्पर रहता था |

रघु ने अपने जीप को दुसरे  रास्ते पर मोड़ दिया और कुछ दूर चलने के बाद एक ढाबा में जीप को खड़ी कर दी और बोला… चार बज चुके है…आप लोग खाना खा लीजिये |

बिलकुल सही… मैंने कहा और जीप से उतर कर ढाबा के बाहर  ही घने पेड़ के नीचे रखी  हुई चारपाई पर हम सब लोग बैठ गए |

शाम हो चली थी लेकिन गर्मी काफी थी | हमलोग सभी पसीने से लथ – पथ हो चुके थे |

पसीना पोछता  हुआ राजेश ने अपनी इच्छा प्रकट की |  रघु जी ने भी अपनी सहमती जताई और कहा..– .”बियर” तो बनता है सर |

आज मौसम भी ऐसा है और साहेब का मूड भी |

रघु की बात सुनकर हम तीनो ही एक साथ हंस पड़े |

source:google.com

मैं राजेश की तरफ इशारा करते हुए से कहा …जरा चेक करो,  यहाँ मिलेगा क्या ?

बिलकुल मिलेगा साहेब,  राजस्थान है यह | शराब  की टेंडर में बोली यहाँ सबसे अधिक लगती है | और यह तो ठाकुरों का देश है,  दारू पीना शान की बात समझी जाती है |

फिर तो खाट पर ही  सब इंतज़ाम किया गया और “बियर” जैसे ही रखा गया,  मैं ढक्कन खोला और एक ही सांस में पूरी बोतल खाली कर दिया   |

मैंने सोचा था कि पिने के बाद मन का बोझ  थोड़ा हल्का होगा | लेकिन  ऐसा कुछ नहीं हुआ  बल्कि बेचैनी और बढ़ गई,  क्योकि उसकी याद आ रही थी |

इस तरह मुझे पीते हुए देख कर सब लोग अवाक् रह गए, लेकिन उनलोगों ने  बोला कुछ नहीं |

अब  मुझे  हल्का  नशा महसूस हो रहा था और मैं खाट  पर ही थोड़ी देर में खर्राटे भरने  लगा |   उन दोनों ने मुझे नींद से जगाना उचित नहीं समझा और हमारे लिए इंतज़ार करते रहे |

मेरी आँख खुली तो मैं  हडबडा कर उठा और राजेश से पूछा …कितना वक़्त हुआ है ?          

लगता है काफी रात हो गई ?  

अभी तो सिर्फ सात ही बजे है … राजेश  हँसते हुए बोला |

अरे यार, इस समय तो हमलोग को  शिवगंज में होना चाहिए था | तुम लोगों ने मुझे नींद से जगाया क्यूँ नहीं ?

कोई बात नहीं …, अपना तो पूरा घर जीप में ही है ..चाहे जब पहुंचे वहाँ | आप को परेशान होने की ज़रुरत नहीं …राजेश ने इत्मिनान से कहा |

दरअसल, पिछले कुछ दिनों से रात में ठीक से नहीं सो पाया था इसीलिए इस घने पेड़ के नीचे दोस्तों के साथ थोडा सुकून  महसूस कर रहा था, और आँख लग गई  |

हमलोग वापस जीप में थे औए अँधेरे रास्तों पर जीप की रोशनी  में बढ़ते चले जा रहे रहे थे |

रात के करीब नौ बजे मैं शिवगंज में प्रवेश कर गया | मैंने चाय पीने  की इच्छा प्रकट की तो रघु एक होटल के पास जीप पार्क कर दी |

मैं जीप से उतर कर आस पास की ओर  नज़रें उठा कर देखा तो रेवदर की तुलना में यह जगह काफी अच्छी लगी | चारो तरफ बड़ी बड़ी दुकाने और एक पूरा शहर नज़र आ रहा था |

यहाँ के वातावरण को देख कर यह  एक जिंदा शहर नज़र आया जिसकी रौशनी में मेरी आँखे चकाचौंध हो गई |

कुछ देर के लिए अपने सारे गम भूल चूका था  जिससे मैं कुछ समय पहले तक ग्रसित था |

मुझे महसूस हुआ कि यहाँ मेरी ज़िन्दगी फिर से पटरी पर लौट आ सकती है |  इन्ही सब बातो को सोचते हुए चाय समाप्त की और दूकान वाले से ही अग्रसेन धर्मशाला का पता पूछ लिया जो कि पास में ही था |

चूँकि, पहले से ही यहाँ रूम आरक्षित था तो जल्द ही फॉर्मेलिटी करके रूम में चले आये  |

इस धर्मशाला के मालिक पी  के अग्रवाल साहेब  का यहाँ के हमारे  बैंक में ही खाता था,  इसलिए उन्होंने हमारी सहूलियत में कोई कमी नहीं रखी  और खाने का भी प्रबंध धर्मशाला में ही कर दिया |

सबसे बड़ी बात कि कुछ दूर पर ही एक सिनेमा हॉल  भी था,  जहाँ अपने गमगीन मन को मूवी दिखा कर  आज  ठीक किया जा सकता था |

राजेश ने तो अपना अभी का कार्यक्रम  भी घोषित कर दिया था | जिसके अनुसार…, हमलोग डिनर लेने के बाद टहलते हुए ही महावीर टाकिज पहुँच गए | 

सामने देखा तो एक फ़िल्मी पोस्टर लगा था  और मूवी का नाम था  “हँसते ज़ख्म “|.

मूवी का नाम पढ़ते ही मैं राजेश से बोल उठा,  यार..अजीब इतेफाक है….मैं अपने गम और दिल की चोट को भुलाने की कोशिश कर रहा हूँ पर वह तो मेरा पीछा ही नहीं छोडती |

अब यह देखो …मूवी का नाम है  “हँसते ज़ख्म” यानी यहाँ भी तीन  घंटा  वही रोना धोना देखना होगा |  राजेश खामोश मेरी ओर देखता रहा |

तो मैंने कहा ..चलो कोई  बात नहीं ….यह ज़ख्म भी आज मैं सह लूँगा |

तब तक रघु जी तीन  टिकट ले कर आ गया और बोला जल्द चलिए …, मूवी शुरू होने वाली है |

और हमलोग हॉल के अंदर अपनी अपनी जगह पकड़ कर बैठ गए थे |.

परदे पर हलचल शुरू हो गई …मैं कभी परदे पर बोलती तस्वीर को और कभी अपने आप को देखता रहा |……

देह से परे था वो सुख जो वो मेरी रूह को दे गया

वो मेरा ना होकर भी वह मुझ में ही रह गया ….

source:google.com

आगे की घटना जानने हेतु नीचे दिए link को click करें ..

# दिल की बातें # …24

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

If you enjoyed this post, don’t forget to like, follow, share, and comment.

Please follow the blog on social media….links are on the contact us 

http://www.retiredkalam.com



Categories: story

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: