
फिसल कर वक़्त के फर्श पर उम्र ढाल जाती है ,
कई बार बिना जिए ही ज़िंदगी गुज़र ज़ाती है |
आधी रात को अचानक मेरी आँखे खुल गई | लेकिन अभी भी नशा पूरी तरह उतर नहीं सका था | घड़ी देखा तो रात के दो बजे थे और मैं बिस्तर में उठ बैठा |
मेरी नींद गायब हो चुकी थी | मेरी नज़र सामने पड़ी खाली कुर्सी पर गई और पिछली घटना याद आ गई, |
उस दिन पिंकी इसी कुर्सी पर बैठ कर मेरे लिए सारी रात बिता दी थी, क्योकि उस दिन भी इसी तरह पीने के बाद मुझे होश नहीं था |
और फिर रात में जब उठा था तो मैं उसे कितना भला बुरा कहा था | फिर भी मेरी बातों का बुरा ना मानते हुए, मुझसे पूछी थी.–..अब तबियत कैसी है ?
आज मुझे एहसास हो रहा था कि ऐसी स्थिति में किसी के सहारे की कितनी ज़रुरत होती है | उस रात सांसारिक लोक – लाज, डर- भय को परे रख कर उसने सिर्फ मेरी चिंता की थी |
उसे मेरे प्रति कैसा सम्मोहन था वो मैं आज महसूस कर पा रहा था | आज खाली कुर्सी को देख कर मुझे उसकी बहुत याद आ रही थी, शायद इसी कारण मेरी नींद उड़ चुकी थी |
मैं बिस्तर से उठा, अपने जूते खोले और कपडे भी बदल लिए | घड़े से पानी निकाल कर पिया और फिर से सोने की कोशिश करने लगा |
अभी तो रात के दो बजे थे | मैं आँखे बंद कर लेटा रहा , लेकिन नींद तो मानो कोसो दूर थी | मैं सिर्फ करवट बदलता रहा |
अभी उसके पिता की कही वो बाते याद आ रही थी, जैसे कि वो अभी भी मेरे सामने बैठ कर अपनी बात बोल रहे हो | .
.मुझे दो दिनों में ही इस मकान को खाली करने होगे | खैर इस बात की उतनी चिंता नहीं थी, मुझे फिक्र थी कि जैन समाज के लोग पिंकी के साथ कैसा व्यवहार करेगे | और पिंकी कैसे इतने दुखों के बाबजूद उनलोगों का सामना कर पायेगी |
उसका सबसे बड़ा दुश्मन उसका चाचा ही बन बैठा है |
मैं भगवान् को याद कर कहा …हे प्रभु, मेरे बारे में आप जो भी फ़ैसला देंगे, मुझे मंज़ूर है | ..लेकिन उस बेचारी के दिल को और तकलीफ मत देना |
वो अनजाने ही अपने दिल में मुझे जगह दे दी है और मैं भी अपने को उससे दूर रखने में नाकामयाब रहा हूँ | तू तो सब कुछ जानता है |

यूँ ही ऊपर टंगी पंखे की रफ़्तार को देखते हुए रात गुज़र गई |
चिड़ियों की आवाज़ ने आभास दिला दिया कि सुबह हो चली है | नींद तो आयी नहीं , इसलिए बिस्तर छोड़ देना ही मुनासिब समझा |
मैंने बिस्तर छोड़ा और उठकर हाथ – मुहँ धो कर निकल गया “नन्हकू चाय” वाले के पास |
लेकिन यहाँ तो हमारी चौकड़ी अभी नहीं आयी थी ,शायद मैं ही जल्दी आ गया था | हाथों में चाय लेकर सिर में हो रहे पीड़ा को कम करने की कोशिश करने लगा |
घर वापस आते हुए सोच रहा था कि आज बैंक के लिए थोडा जल्दी निकल जाऊंगा ताकि रास्ते में राजेश से मिलकर अपने दुसरे मकान की व्यवस्था के बारे में चर्चा कर सकूँ और आने वाले एक और मुसीबत को टाला जा सके |
बैंक पहुँचा तो करीब पचास लोगों की भीड़ बैंक के बाहर देख कर मैं घबरा गया | हमें लगा कि मेरे लिए एक और मुसीबत हमारा इंतज़ार कर रही है |
लोग तो कहते है कि जब अपना समय बुरा चल रहा हो तो सब कुछ बुरा ही होने लगता है | शायद मेरा बुरा टाइम शुरू हो चूका থা |
मैं धड़कते दिल से बैंक के अंदर दाखिल हुआ और रामू काका से इशारों में पूछ लिया | तो उन्होंने बताया की इस सबों का आज ही बैंक मे खाता खुलना है, सरकारी खजाने से इनके खाते में पैसा आने वाला है | उनकी बातों को सुन कर मैं इत्मिनान की साँस ली |
तभी मेनेजर साहब ने मुझे निर्देश दिया कि आप गाँव रानादी चले जाइये और वहाँ से इनलोगों का फॉर्म भरा कर और इंट्रोडक्शन में वहाँ के सरपंच का हस्ताक्षर करा कर इनके फॉर्म को कम्पलीट करें ताकि आज ही इन लोगों का खाता खोला जा सके |
मैंने मेनेजर साहेब से निवेदन किया कि वहाँ जाने के लिए भाड़े की एक गाड़ी मंगवा दे.. लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया और कहा कि ..सिर्फ दो किलोमीटर की दुरी के लिए बैंक गाड़ी नहीं दे सकता |
मैं कुछ नहीं बोला और फॉर्म लेकर पैदल ही गाँव रानादी चल पड़ा | धुप कड़ी थी और गर्म हवा भी बह रही थी, खैर किसी तरह पंचायत भवन पहुँच कर अपना कार्य आरम्भ कर दिया |
और सभी पचास खाता खोलने हेतु आवेदन को पूरी तरह भरने और सरपंच के हस्ताक्षर लेने में शाम हो गई | इन सब कार्य की उलझन के कारण आज लंच भी लेने का मौका नहीं मिला |
मैं वापस जल्द ब्रांच पहुँच कर आगे की कार्यवाही पूर्ण करना चाहता था..|

आज का दिन काफी ख़राब बीत रहा था ..एक तो खाना नसीब नहीं हुआ और ऊपर से गर्मी में इतना दूर पैदल ही जाना पड़ा |
भागता हुआ मैं ब्रांच वापस आ गया और काउंटर पर खाता खोलने हेतु फॉर्म रख छोड़ा और अपने टेबल पर पहुँच कर आज की डाक चेक करने लगा | ..
तभी काउंटर क्लर्क, शर्मा जी चिल्लाये, …. कुछ फॉर्म में सरपंच के हस्ताक्षर छुट गए है |
तब तक मेनेजर साहेब भी काउंटर पर पहुँच कर सभी फॉर्म की जाँच करने लगे | उन्होंने पाया कि कुछ फॉर्म अभी भी अधूरे थे | उनको एक बैंक ऑफिसर से ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं थी |
,,उन्हें अचानक मेरे ऊपर गुस्सा आ गया और मेरे सीट के सामने ही आकर गुस्से से बोलने लगे …,क्या बात है, आप को बैंक के काम में मन नहीं लग रहा है ?
उस पिंकी छोरी ने तुम्हारा दिमाग ख़राब कर रखा है | ऐसी चरित्रहीन छोरी के लिए क्यों मरे जा रहे हो ?…
पिंकी के बारे में “चरित्रहीन” शब्द सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा | …. जिसे मैं देवी की तरह पाक और पवित्र समझता हूँ, ,उसके चरित्र के बारे में उनके मुँह से ऐसे शब्द सुन कर मैं अपना आपा खो बैठा और हमारे हाथ उठ गए |
और मैं ने उन्हें कालर पकड़ कर टेबल पर झुकाते हुए गुस्से से बोला –…आप को सिर्फ मेरे बारे ही भला – बुरा कहने का अधिकार है …….. माइंड योर ओन बिज़नेस |….
शाखा में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया | वहाँ खड़े सभी लोग पहली बार मेरे गुस्से को देख रहे थे | मेरे अन्दर “बिहारीपन” जाग चूका था |
तभी शर्मा जी दौड़ कर आये और मुझे उनसे अलग कर दिया और मुझे वापस एक कुर्सी पर बैठा दिया | ….
मेनेजर साहेब कुछ देर के लिए अवाक रह गए , जैसे उन्होंने इस तरह की घटना की कल्पना नहीं की थी |
सभी स्टाफ के सामने इस तरह की बेइज्जती ?….मैनेजर साहब का चेहरा गुस्से से भर गया था ,और मन ही मन मुझे सबक सिखाने की योजना बनाने लग गये |
मुझे सब लोगों ने मिलकर वापस मेरे घर पर भेज दिया | मैं रास्ते भर सोचता हुआ घर पहुँचा कि अब तो मेरे ऊपर प्रशासनिक कार्यवाही होना निश्चित है |
मुझे तो चिंता इस बात की हो रही थी कि अभी हमारा बैंक नौकरी कन्फर्म नहीं हुआ था, , बल्कि मेरा “प्रोबेशन पीरियड” चल रहा था. |.
पता नहीं , मेनेजर साहेब की शिकायत पर बैंक मेरे बारे में क्या फैसला लेती है …..(क्रमशः)

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Kahani aur kavita bahut badhiya.
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Thank you so much, dear.
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