# दरवाज़ा बंद है #…9

आज मन बहुत खुश था, ना बैंक के जाने की जल्दी और ना घर की सफाई करने का  झंझट | आज रविवार था और मनका छोरी को आज खाना बनाने के अलावा घर की सफाई और कपड़ो की धुलाई दोनों करनी थी | यह पहले ही तय किया गया था | आज तो बस आराम ही आराम था |

और आज शाम में यहाँ थोड़ी दूर पर एक स्थित नदी है वहाँ पर शर्मा जी के साथ घुमने जाने का भी प्लान था |

पूरी मौज मस्ती करने का इरादा था, ऐसा मैं बिस्तर पर लेटे हुए सोच ही रहा था कि  किसी ने घर का दरवाज़ा खटखटाया |

घडी देखा तो सुबह के ७ बज चुके थे | मैं समझ गया कि  खाना बनाने के लिए मनका छोरी  ही आयी होगी | अलसाये हुए उठा और दरवाज़ा खोला तो वो हँसते हुए अंदर घुसते ही बोली – अभी नींद पूरी नहीं हुई क्या ?..

मैं बस उसकी बातों पर मुस्कुरा दिया और बिस्तर  ठीक करने लगा |

वो जल्दी से मेरे पास आयी और मेरे हाथ से बिस्तर  लेकर खुद ही ठीक – ठाक करने लगी और बोली कि  आज तुम्हारा तो छुट्टी है, तुम आराम करो |

इतना काम रोज़ करते हो, एक दिन तो आराम करो | आज तुम्हारा सभी काम मैं कर दूंगी | धोने वाले कपडे भी निकाल दो और हाँ, कपडे धोने के साबुन नहीं है, पैसे दो मैं लाती हूँ. |.

source:Google.com

मैं थोडा नाराजगी दिखाते हुए कहा …तू बहुत बक – बक करती है | ..जा, पहले चाय बना कर ला |

वो सब काम छोड़ कर हँसते हुए चाय बनाने चली गई और थोड़ी देर में पहले की तरह दो गिलास में चाय लेकर आयी और एक गिलास मुझे देते हुए बोली… अब और दूध नहीं है, उसके भी पैसे दे देना  |

मैं चुपचाप उसकी बातों को सुनता रहा और चाय समाप्त कर शौच चला गया |

सुबह के दस बजे का समय था | मैं नहा – धो कर कपडे ठीक करते हुए शर्मा जी के यहाँ जाने वाला ही था कि मनका छोरी  थाली में रोटी सब्जी लाकर  टेबल पर रखते हुए बोली,… पहले नास्ता कर लो, फिर कही जाना |

और हां सब्जी भी लाना होगा और…उसके आगे वह कुछ बोलती उससे पहले ही .. सौ रूपये उसके हाथ में पकडाते  हुए बोला कि जो भी सामान की ज़रुरत है ..बाज़ार से लेते आना |

और सुन, .आज शाम का खाना नहीं बनाना है ..शर्मा जी के यहाँ ज़िम्मन है | उसने पलट कर पूछा — पार्टी है क्या ?

…मैं उसके प्रश्नों के ज़बाब देने के बजाये उसी से प्रश्न कर दिया ..अरे मनका.. तू इतना अच्छा हिंदी कैसे बोल लेती हो  ..तुमने कितनी पढाई की है ?

अचानक से मेरा सवाल सुन कर थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली ..मैं आबू रोड में पांच माह एक सेठ के यहाँ काम की थी, वही पर हिंदी बोलना और कुछ – कुछ पढना भी सीखी थी  |

लेकिन स्कूल कभी नहीं गई  | जब मैं छोटी थी तो मेरा बापू मर गया था और  माँ और मैं दुसरो के खेतों में काम करके सिर्फ छोटा भाई को पढ़ा रही हूँ |

उसकी कहानी सुन कर दुःख हुआ |  फिर भी , वह इतनी बदहाली और गरीबी में भी मस्त और  खुश रहती थी |

आज छुट्टी का दिन होने के  कारण आराम करने का मौका मिला था | और अब नींद खुली तो शाम के चार बज चुके थे |

आलस भगाने के लिए चाय पीने  की तलब हुई | मैंने किचेन में जाकर देखा तो दूध ही नहीं थी  |

मैं नन्हकू चाय वाले के पास जाने की योजना बना ही रहा था कि  मनका छोरी बाहर  कहीं जाते हुए दिख गई, वो मुझे देख कर बोली कि  सामान लेकर अभी आ रही हूँ, तुम कही जाना मत |

उन दिनों मन बहलाने के लिए रेडियो का सहारा हुआ करता था, सो अपने इकलौता ट्रांजिस्टर से गाने का आनंद लेने लगा | और चाय का  इंतज़ार कर रहा था तभी मैंने देखा  मनका का छोटा भाई बाहर  सड़क पर पतंग उड़ाने  की कोशिश कर रहा था |

उसे इस तरह पतंग उडाता देख मुझे मेरी बचपन की बहुत सारी  पतंग से जुडी यादे आने लगी |

मैं हाथ के इशारे से “पकिया” को बुलाया, पकिया ही उसका नाम था | मैं उसे १० रूपये पॉकेट से निकाल कर दिया और पतंग  धागा और चरखी उससे ले लिए और कहा कि तू दूसरा नया खरीद ले |

वो खुश होता हुआ चला गया और मैं पतंग को लेकर छत पर उसे उड़ाने  चला गया |

बहुत दिनों के बाद आज पतंग बाज़ी की कोशिश कर रहा था और पाया कि  अभी तक यह कला भुला नहीं हूँ | मनका भी तब तक आ गई और चाय बनाकर ऊँची आवाज़ देकर बुलाने लगी |

मैं ऊपर ही चाय मंगा  लिया और पतंग बाज़ी का मज़ा लेने लगा | घर के सभी बच्चे छत पर मेरे ही साथ पतंग बाज़ी का मज़ा ले रहे थे |

हमलोगों का चिल्ला – चिल्ली और हंगामा सुनकर पिंकी भी दौड़ कर छत पर आ गई | उसके आते ही मेरा ध्यान उसकी ओर  चला गया |

वो भी खुश होकर मुझे पतंग उडाता देखती रही | मेरा ध्यान भटकने के कारण पेंच लड़ाते हुए मेरा पतंग कट चूका था |

मुझे अपने आप पर बहुत जोर का गुस्सा आया और मैं जोर से चिल्ला पड़ा | मुझे बच्चों जैसी हरकत करता देख सभी एक साथ जोर से हंस पड़े | तब मुझे अपनी गलती का एहसास  हुआ |

मैं पिंकी की ओर देखते हुए पूछा …तुम कैसी हो ?

उसने शिकायत भरे लहजे में कहा ..मैं पिछले सात दिनों से बीमार थी लेकिन आपने कभी पूछा भी नहीं |

मैं ज़बाब में कुछ नहीं बोला | बस उसे देखता रहा ..वाकई चेहरे से थोडा कमज़ोर दिख रही थी | बहुत देर तक हम लोग बात करते रहे |

बातों – बातों में पूछ लिया कि  आज कल बीच का दरवाज़ा खुल ही नहीं रहा है और हमारी सभी सुविधा अचानक क्यूँ समाप्त हो गई ?

.हमारे इतने सारे प्रश्नों को एक साथ सुन कर उसके आँखों में आंसू आ गए और बस इतना ही बोल पायी कि  चाचा जी आये थे ,और उन्होंने दरवाज़ा में ताला दे कर चाभी लेते गए |

इसके आगे की पूरी बात बताने ही वाली थी कि  उसकी बहन रीना आ गई और अब अँधेरा भी होने वाली थी इसलिए इशारों में इज़ाज़त लेकर उसी के साथ पिंकी वापस चली गई |

और मैं कटी – पतंग के बचे धागों को समेट रहा था ……..( क्रमशः)

इससे आगे की घटना जानने हेतु नीचे दिए link को click करें…

source: Google.com

वक़्त से लड़ कर जो अपना नसीब बदल दे

इंसान वही जो अपनी  तकदीर बदल दे…

क्या होगा कल कभी मत सोचो

क्या पता कल वक़्त खुद 

अपनी लकीर बदल दे…

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

If you enjoyed this post don’t forget to like, follow, share, and comment.

Please follow me on social media.. Instagram LinkedIn Facebook

Please visit my website by clicking the link below…

http://www.retiredkalam.com



Categories: story

4 replies

  1. Mr.Verma ! Nice culmination ! Thanks !

    Liked by 1 person

  2. Kahani bahut pasand aaya.

    Liked by 1 person

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: