
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप और परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ होंगे | आप अपना और अपने परिवार का ध्यान अच्छी तरह रखे | मैं चाहता हूँ कि मेरा हर एक मित्र और उसका परिवार खुश रहें , स्वस्थ रहे |
आज सुबह सात बजे किसी ने जोर जोर दरवाजा खटखटाया, मैं नींद से अचानक चौक कर उठा तो बहुत जोर का गुस्सा आया |
भला इतना सुबह कोई जोर से दरवाज़ा पिटता है ? ..मैं गुस्से में दरवाज़ा के पास गया तो देखा वो तो वही लड़की थी , जिसे आज से यहाँ खाना बनाने के लिए रखा गया था |
मैंने अपने गुस्सा को शांत किया और इशारे से उस लड़की को अंदर बुलाया | वो सीधे किचेन में चली गई |
थोड़ी देर बाद मैं फ्रेश होकर बैठा ही था कि वो आकर बोली ..चाय बना दूँ साहेब | मैंने हाँ में इशारा कर बिस्तर ठीक करने लगा |
थोड़ी देर में वह लड़की दो गिलास में चाय लेकर आयी | मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा तो वो हँसते हुए बोली कि मुझे भी चाय पी कर देखनी थी कि चाय ठीक बनी है या नहीं |
लेकिन चाय तो वाकई लाजवाब बनी थी | मजा आ गया | मैं डब्बे से बिस्कुट निकाला और दो बिस्कुट उसको भी दे दिए | वो हमारे सामने ही ज़मीन पर बैठ कर बिस्कुट के साथ चाय पीने लगी |

मैंने बातों बातों में उसका नाम पूछा तो वो अपना नाम बताई .. “मनका कोली” | मैंने थोडा जिज्ञासा से पूछा “कोली” क्या होता है ?
वो हँसते हुए बोली … यहाँ की “जात” (Caste ) होती है |
“मनका” की उम्र करीब १२ -१३ वर्ष की होगी, लेकिन देखा उसके माथे पर सिंदूर लगी थी | मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी उम्र में इस बच्ची की शादी इसके घर वालों ने कर दिए थे, तभी मुझे बाल विवाह का ध्यान आ गया | गाँव में आज भी बाल विवाह प्रथा चल रही है |
मैं उत्सुकता से पूछ डाला … तुम्हारी शादी कब हुई थी ?
मुझे ज़बाब सुन कर थोडा आश्चर्य हुआ | तीन साल पहले ही शादी हो चुकी थी उसकी |
लेकिन “गौवना” अभी नहीं हुआ था | मनका को तो शायद शादी का मतलब भी ठीक से पता नहीं होगा | बातों बातों में समय का पता ही नहीं चला और बैंक जाने का समय हो गया |
मैं जल्दी में नहा धोकर, ब्रेड खा कर ही बैंक के लिए रवाना हो गया | और जाते जाते उसको निर्देश दिया कि दोपहर में आकर गरम – गरम खाना बना कर रख देना | मैं lunch घर पर ही करूँगा, उसने भी सहमती जताई |
बैंक में lunch का time हुआ नहीं कि जोर की भूख सताने लगी, तो घर की याद अ गई | मैं बैंक से जल्दी जल्दी भागता हुआ घर पहुँचा और सीधा kitchen में जाकर पता किया कि खाना बना है या नहीं ?
रोटी, सब्जी और साथ में दाल भी मौजूद है |
भूख तो लगी थी | मुझे खाना खा कर मज़ा आ गया |
आज पुरे तीन दिनों बाद होटल के खाने से छुटकारा मिला था | खाना खा कर तुरंत ही बैंक जाना था ,काफी काम छोड़ कर आया था |
मैं घर से निकलने ही वाला था कि आँगन से ऊपर छत की ओर देखा तो पिंकी दिख गई, शायद वो छत पर पापड़ सुखा रही थी | वो मुझे देख कर मुस्काई और इशारे से पूछा ..खाना खा लिया ?

मैं जबाब में बस उसे देखता रहा गया .जैसे कुछ पूछना चाहता था |
वो भी मेरे ख़ामोशी को शायद समझ गई | वो हाथ के इशारे से बताई कि अभी आप को बैंक जाने का time हो रहा है .मैं बाद में फिर बात करुँगी |
चूँकि बैंक जाने के लिए देरी हो रही थी, इसीलिए तुरुन्त ही रवाना हो गया |
लेकिन रास्ते में फिर वही प्रश्न मेरे मन में घुमने लगी कि ऐसी क्या बात हो गई कि पिंकी द्वारा दी जाने वाली सभी सुविधा अचानक समाप्त हो गई |
शायद किसी ने कोई चुंगली तो नहीं कर दी ? क्योंकि गाँव के लोग बहुत संकुचित किस्म के होते है |
इन्ही सब बातों में उलझा वापस ब्रांच पहुँच गया | खैर, सीट पर ढेर सारे काम को देख कर, दूसरी तरफ ध्यान भटकाना उचित नहीं समझा, |
आज से 35 साल पहले बैंक का computerisation नहीं हुआ था | उन दिनों बैंक के सभी कार्य manual ही हुआ करते थे | वो मोटी – मोटी ledger और Day Book वगैरह हुआ करते थे |
बैंक का सभी काम पूरा करने के बाद ही शाम को घर जाना होता था | इसलिए प्रायः बैंक से निकलने में देरी हो जाया करती थी |
रोज़ की तरह आज भी बैंक से निकलते हुए देरी हो गई, रात के आठ बज चुके थे और काम ज्यादा होने कारण थकान का भी अनुभव हो रहा था |
मैं किसी तरह घर जैसे ही पहुँचा था कि देखा, घर का दरवाज़ा खुला था और लाइट जल रही थी |
मैं जल्दी से अंदर जाकर मुआइना किया तो पाया कि मनका छोरी kitchen में खाना बना रही थी | मैं उसे देखते हुए यूँ ही पूछ बैठा कि इतनी रात गए तू यहाँ क्या कर रही है ?
..उसने जो उत्तर दिया उसे सुनकर हँसी आ गई और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा | वो हँसते हुए बोली … आप के लिए गरम – गरम चपाती, दाल और सब्जी बना रही हूँ ..आप इतनी देर से थक कर बैंक से आते है, ठंडा खाना आप को अच्छा नहीं लगता होगा |

वाह रे छोरी, तू तो कमाल की सोचती है | तू कभी अपने ससुराल गई है ? , मैंने मजाक से पूछ लिए |
हँसते हुए बोली … जब मेरा मरद मेरे घर आता है तो बात करती हूँ लेकिन ससुराल कभी नहीं गई | अभी तो गवना नहीं हुआ है | मेरा मरद सूरत में काम करता है |
उससे बात करते हुए मैंने उसके चेहरे पर विराजमान खिलखिलाती हँसी और मन से हमेशा खुश दिखने वाली छवि को देख कर इस छोरी ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमें खुश रहने के लिए धन दौलत, शान शौक जैसी चीजों की ज़रुरत नहीं पड़ती,|
बस, ज़रुरत पड़ती है सकारात्मक सोच की और दूसरों के दुःख दर्द को महसूस कर उसको मदद करने में एक असीम ख़ुशी मिलती है |
वो थाली लगा कर मेरे सामने ले आई | मैं खाना खाता रहा और वो तब तक बैठी रही |
मैं उससे बोला इतनी रात हो गई है तुम घर चली जाओ |
तो वो बोली कि बर्तन साफ़ कर के चली जाउंगी | तब तक उसकी माँ उसे लेने आ गई | हालाँकि झोपडी घर के पीछे ही थी | मैंने देखा उसकी माँ की साड़ी जगह जगह से फटी हुई थी |
मैंने तुरंत अपने पॉकेट में हाथ डाला तो पचास रूपये मिले मैं उसकी माँ के हाथ में देते हुए कहा कि कल अपने लिए एक साड़ी खरीद लेना |
उसके चेहरे पर आश्चर्य और ख़ुशी के भाव थे और मेरे मन में ख़ुशी का एहसास …. (क्रमशः )

इससे आगे की घटना जानने के लिए निचे दिए link पर click करें…
ज़िन्दगी की राह में अकेले हो गए
और पाने की चाह में सब कुछ खो गए
कश्ती ज़िन्दगी की और समुद्र का भरोसा
धोखा दिया जो उसने पतवार बह गए
दौड़ना जो सीखा तो सभी पीछे छूट गए
ज़िन्दगी की दौड़ में हम अकेले पड़ गए…||
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: story
Mr.Verma ! When a man from urban area enters into a village/rural area , his feelings automatically change . He is compelled to think of poverty and related aspects of life . Even though such life also exists in urban areas with greater intensity . But he doesn’t realize such feelings so intensively there . Your story is moving towards its natural culmination . Thanks !
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Beautiful analysis of the fact about the rural areas. It has its own beauty.
I have enjoyed that moment and want to share that memory.
Thanks for your appreciation and for sharing your feelings.
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बहुत अच्छा।
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Thank you so much, dear.
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Thanks !
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I request you to please guide me whenever you feel it is required for me.
Stay connected, Sir.
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You , yourself , are quite intelligent . Your language is up to mark . You better write in Hindi . Read good books . Idea comes from within , but but it is processed without by inserting in it all the tenets of it being literature . And I personally feel you are master in it . Thanks !
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You are very correct sir, I should focus on the blog in Hindi.
But I want to learn new skills and try to experiment with writing.
Thanks for your suggestions.
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Read good novels in Hindi . For example , presently I am going through a novel by Acharya Chatursen , ‘Vaishali Ki Nagarbadhu’ . A very nice novel about Amrapali and general prevailing state of affairs in Magadha and Vaisali in the sixth century BC . You must read French writer like Honore de Balzac’s novel , translated version’s name is ‘Kishan’ . Very nice socio-cultural novel about the then France of the 19th century . You will find many of the events still happening in the present day Bengal . Because I have seen such situations prevailing in Bihar in the late eighties about which I have also mentioned in my novel THE YOGINI : A BRIDE IN NEED . Though name appears to little different but it is a socio-cultural history of Bihar of late eighties . Apart from that you tried to read three classical writers like Munshi Premchand of India , Lu Xun of China , and Maxim Gorkey of Russia . Their periods are almost same and they concentrated on the social status of a man in the matrix of their own society. Their works are available in Hindi and English also . Thanks !
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This is great advice. You are really a researcher and academian.
There is a lot to learn from you.
Thank you so much, sir for your time.
I have a blog on Amrapali, the link is here, please see to it.
https://wp.me/pbyD2R-2pV
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Thanks !
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You are welcome, Sir.
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