
ज़रूरी नहीं कि हर समय जुवान पे, भगवान का नाम याद आए,
वो लम्हा भी भक्ति का ही होता है जब, इंसान -इंसान के काम आए
अजीब रिश्ता है मेरा ऊपर वाले के साथ, जब भी मुसीबत आती है,
ना जाने किस रूप में आता है और हाथ पकड़ कर पार लगा देता है
मैं उसके सामने सर झुकाता हूँ वो सब के सामने मेरा सर उठाता है…|
दोस्तों,
कल के ब्लॉग पर बहुत मित्रों ने मिली -जुली प्रतिक्रिया भेजी… एक मित्र ने लिखा कि आप की कहानी मजेदार लग रही है, आप इसे आगे भी जारी रखे |
लेकिन दुसरे मित्र ने लिखा कि कहानी किस्तों में क्यों पढ़ा रहे हो …शायद पूरी कहानी एक साथ पढना चाहते है |
आप के निर्देशानुसार कहानी को जल्द ही पूरा करने की कोशिश करूँगा |..पिछली बातों का सिलसिला जारी रखते हुए, आगे की एक और कड़ी…..

आज पुरे एक सप्ताह हो गए, इस नए घर में आए हुए | सब कुछ ठीक चल रहा था, सिर्फ एक मुसीबत को छोड़ कर | ..
सुबह – सुबह उठ कर नल से पानी भरना पड़ता था, ओर देरी होने से सरकारी नल बंद | कोई और दूसरा पानी का स्रोत भी नहीं |
कल ही की तो बात थी कि मैं थोडा देरी से सो कर उठा था | तो नल का पानी चला गया |
मैं तो परेशान हो उठा, घर में पीने का एक भी बूंद पानी नहीं था |
मैं परेशान अपने घर के आँगन में इधर उधर टहल रहा था, ..मिटटी का घड़ा जाने कैसे crack हो गया था, जिससे सारा पानी रात में बह गया था |
अब तो शौचालय जाने के लिए भी घर में पानी नहीं थी | मैं किसी दुसरे घर से पानी भी नहीं मांग सकता था, क्योंकि कोई मुझे इस नई जगह में जानता भी नहीं था |
मैंने हाथ उठा कर भगवान को याद किया शायद कोई रास्ता निकल आए .. तभी बीच का दरवाज़ा खुला और पिंकी हाथ में चाय और खाखरा लिए हाज़िर थी |
मुझे परेशान देख कर, इधर उधर नज़रे घुमाई और समझ गई कि घड़ा फुट गया है …वो हंसती हुई चली गई और थोड़ी देर में एक घड़ा पानी अपने घर से लाकर बरामदे में जगह पर रख कर चली गई |

मैं जल्दी – जल्दी शौच से निपट कर चैन की सांस ली | और फिर बचे हुए पानी से नहाया और उसकी लायी हुई चाय – नाश्ता से निपट कर बैंक की तरफ रवाना हो गया |
आज बैंक में भी काफी भीड़ थी और काम इतना कि पता ही नहीं चला, कब रात के आठ बज चुके थे |
जैसे ही हमारी नज़र घडी की ओर गयी, मेरी जैसे सांस ही रूक गयी | घर में तो पीने तक की पानी नहीं थी | खाना भी आज होटल में ही खाना होगा |
इन्ही सब ख्यालों में उलझा, फासला तय करता थोड़ी देर में घर के सामने था | हालाँकि लौटते समय रास्ते में ही पानी की एक बोतल खरीद कर पास रख लिया था |
जैसे ही घर का दरवाजा खोला, मैं आश्चर्य चकित रह गया | अंदर सभी जगह लाइट जल रही थी | बिस्तर सलीके से सजा रखे गए थे |
एक नए घड़े में पीने के पानी रखे हुए थे और तो और ,गरम गरम चपाती, दाल, सब्जी और पापड़ मेरे kitchen में सलीके से रखे हुए थे |
मुझे तो एक बार विश्वास ही नहीं हुआ | वाह रे खुदा, मुझे आज दिन भर बैंक में परेशान रखा तो रात में उसके मीठे फल भी दे दिए |
खाना देख कर भूख और भी बढ़ गई | फिर तो सोचा कि पहले भोजन ही कर लिया जाए, कपडे बाद में change करूँगा |
पेट भरते ही बहुत सारी दुआ उस पिंकी के लिए दिल दे निकली जो हर वक़्त मुसीबत में मेरे साथ खड़ी दिखाई पड़ती थी |
लेकिन सेठ जी को दिया हुआ वचन भी याद था कि यह मेरा एक माह का probation period चल रहा था | अगर फेल हो गया तो मकान से हाथ धोना पड़ सकता था और मुझे यह भी मालूम था कि इस मकान के अलावा यहाँ दूसरा घर में in built शौचालय नहीं है |

पिछले एक सप्ताह में बड़ी तेज़ी से घटना क्रम बदल रहा था | हमें तो परिवार के बीच घर में रहने जैसा आनंद महसूस हो रहा था |
मैं तो परसों जब inspection में Mount Abu गया था तो लौटते वक़्त सबसे छोटी बच्ची गुड्डी के लिए बैटरी वाली कार ला कर दिया तो घर के सभी लोग खुश हो गए,, ख़ास कर पिंकी को उसके कान का राजस्थानी झुमके बहुत पसंद आए थे |
सबको कुछ ना कुछ गिफ्ट की आशा थी जिसे पाकर सभी छोरियां खुश थी | जब आप का इतना ख्याल रखा जा रहा हो तो आप की भी इच्छा होती है कि कुछ बदले में दिया जाए |
लेकिन कहते है ना कि दुःख के बाद सुख आता है उसी तरह सुख के बाद दुःख भी आता है | यह तो प्रकृति का नियम है ..यह बिलकुल सही है |
आज भी बैंक से घर आने में देरी हो गई | लेकिन थका हारा घर में प्रवेश किया तो अंदर अँधेरा था |, लाइट नहीं जल रही थी, | kitchen में देखा तो खाना नहीं रखा गया था और ना ही घड़े में पानी भरा गया था |
..अचानक यह सब सेवा बंद क्यों हो गई, समझ में नहीं आया ? अब तो कल सुबह ही इस विषय में तहकीकात किया जा सकता था |

खैर, उदास मन से अपने कपडे change किया और थोड़ी देर में निकल पड़ा पास के एक ढाबा में खाना खाने , जो घर से थोड़ी दूर पर था |
बहुत भूख लगी थी, और वहाँ पहुँचते ही बिछाई गई चारपाई पर बैठा ही था कि पानी लेकर एक छोरा हाज़िर हो गया |
मैंने उससे कहा कि जल्दी से रोटी खिला, बहुत भूख लगी है | तो उसके जबाब सुन कर मैं चौक गया |
उसने कहा कि रोटी नहीं “टिक्कड़” है ..|
मैंने पूछा ये “टिक्कड़” कि हॉवे है भाया . | .तो वो हँसते हुए वहाँ बन रहे “टिक्कड़” की ओर इशारा कर दिया |
अरे बाप रे…करीब एक पाव आटा की एक मोटी सी रोटी जो मिटटी की तवे में बनाई जा रही थी, और मेरे पास में बैठा एक ट्रक ड्राईवर, थाली में सजा कर ऐसे खा रहा था जैसे कोई विशेष व्यंजन हो |
खैर, खाना तो मुझे भी था, भूख जो लगी थी | मैं ने देखा एक बड़ा सा मोटी रोटी (टिक्कड़) और “टिंडा” की सब्जी थाली में डाल कर परोस दिया |
एक ही रोटी एक पाव आटा की बनी होगी | देख कर मेरे यहाँ की “लिट्टी” चोखा की याद आ गई | मैंने फिर भगवान से पूछा … .प्रभु अब और कितने दिन “टिक्कड़” के दर्शन करने होंगे…?
.अभी तक प्रभु ने कोई फैसला नहीं सुनाया था … ( क्रमशः )

इस कहानी का अगला भाग जानने के लिए नीचे दिए link पर click करें…
ढूंढने चला था.. अपना वो शहर पुराना
गुजरी थी बचपन जहाँ.. वो नगर पुराना
वो शहर मेरा, आज विराना क्यों लगता है
बोलती दीवारें आज खामोश खड़ी गुमसुम है
उसकी आँगन आज अनजाना क्यों लगता है…
वो शहर मेरा ,आज विराना क्यों लगता है ||
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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बहुत सुन्दर।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर।
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Beautiful!
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Thank you so much for your appreciation.
Have a nice day.
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You too have a lovely day Sir!
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Stay blessed.
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अच्छा लगता है, आपके अनुभव साझा करते रहे, धन्यवाद
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बहुत बहुत धन्यवाद, सर जी |
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