# हादसे का शिकार #

ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसे भी हादसे हो जाते है कि उसे भुलाये नहीं भूलता | उस दिन सचमुच मैं बहुत दुखी अपनी शाखा में बैठा हुआ था और दुखी क्यों नहीं होऊं |

एक नहीं अनेक कारण थे | कहने को तो “रेवदर” तहसील हेड क्वार्टर था, लेकिन सुविधा के नाम पर यहाँ कुछ भी नहीं था |

सुबह शौच के लिए लोटा लेकर खेतों में जाना पड़ता था | हालाँकि ब्रांच join करते ही वहाँ के एक मात्र  सरकारी गेस्ट हाउस में जगह मिल गयी थी | लेकिन गेस्ट हाउस ऐसी कि  शौचालय तो  था पर उसमे दरवाजा नहीं था |

बिजली की सुविधा तो थी लेकिन सिर्फ लैंप – पोस्ट की रौशनी आती थी ..रूम में अँधेरा था ,क्योकि जगह जगह बिजली के तार लटक रहे थे | शाम सात बजे तक होटल से  खाना खाकर सीधे गेस्ट हाउस में घुस जाना होता था | 

बस, मोमबती का सहारा था और ऊपर से जाड़े का मौसम | सात – आठ बजे भला किसे नींद आती थी | शहर की चकाचौंध वाली आदत और ऐसी गाँव की पोस्टिंग (  posting) में तो तकलीफ होनी ही थी |

 इन्ही ख्यालो में खोया, उदास मन से शाखा में बैठा था | उसी समय  उदयपुर हेड क्वार्टर से एक बड़ा ऑफिसर ब्रांच निरिक्षण हेतु पधारे | नाम अभी भी नहीं भुला हूँ..श्री ऐ .एस भाटी, यही नाम उन्होंने बताया था |

निरिक्षण के दौरान उन्होंने मुझसे पूछा… आप तो शहर के रहने वाले है | इस गाँव के शाखा में, वो भी पहली पोस्टिंग ..कोई दिक्कत तो नहीं ? ..उन्होंने जैसे मेरे दुखते रग  पर ऊँगली रख दी | मैं अंदर की पीड़ा को समेटे उन से तुरुन्त ही पूछ बैठा, … यहाँ से ट्रान्सफर का कोई जुगाड़ है क्या ?

तो उन्होंने थोडा रुक कर कहा ..आप का rural assignment है इसलिए कम से कम दो साल तो यहाँ रहना ही पड़ेगा | सुन कर ऐसा लगा जैसे जाड़े में दो घड़ा पानी सर पे किसी ने डाल दिया हो, मैं सिहर उठा | यहाँ तो एक एक दिन काटना मुश्किल हो रहा है |

सुबह खेत में लोटा लेकर जाना, जाड़े में भी ठन्डे पानी से स्नान करना | रात को बिना बिजली के सोना | और तो और यहाँ मूवी देखने के लिए सिनेमा हॉल के नाम पर एक रूम में  video cassette  चला कर दिखाया जाता था | बेंच पर या जमीन पर चादर बिछा कर तीन रूपये प्रति व्यक्ति वसूला जाता था |

मैंने भी एक बार फिल्म  देखा था | शोले फिल्म थी,  इतनी अच्छी फिल्म को बेंच पर बैठ कर देखना , उस फिल्म की ऐसी की तैसी कर दी थी | फिर दुबारा मैं कोई मूवी नहीं देख सका था |

 मैं फिर गिडगिडाते हुए भाटी जी से पूछा … सर् जी , किसी तरह जुगाड़ लगाओ ना साहेब…

तो वो फिर बोले…. बैंक नियम के अनुसार  कम से कम दो साल आप को रहना ही पड़ेगा और कोई उपाय नहीं है | हाँ, अगर कुछ असाधारण परिस्थिति उत्पन्न हो जाए तो कुछ भी हो सकता है |

बस, यही बात मेरे मन में बैठ गया | भगवान में विश्वास करता था और आशावादी भी था |

एक दिन लंच टाइम ( lunch time) में  स्टाफ लोगों के साथ कैर्रम (carrom) खेल रहा था | और मेनेजर साहेब कहीं टूर पर गए हुए थे |

मेनेजर साहेब से सब लोग परेशान थे, क्योंकि बेवजह सब पर चिल्लाते रहते थे | हमारा ब्रांच करेंसी चेस्ट हुआ करता था जहाँ चार बंदूकधारी गार्ड स्थाई रूप से ब्रांच में ही रहते थे |

सब लोग हमारी परेशानी को देख कर सहानुभूति रखते थे | क्योंकि मेनेजर साहेब ने हमें भी परेशान कर रखा था |

कैरम (carrom)   खेलते खेलते एक जोधपुरिया राजपूत स्टाफ,.. उसने मुझे रास्ता सुझाया कि किसी दिन मेनेजर को “ठोक” दो | फिर देखना या तो मेनेजर का ट्रान्सफर या आपका ट्रान्सफर |

अगर मेनेजर का ट्रान्सफर हुआ तो हमलोगों को रहत मिलेगी और अगर आप का ट्रान्सफर हुआ तो इससे और अच्छी जगह पोस्टिंग तय है |   आप तो बस एक चांस लो | /

इतने में बंदूकधारी गार्ड बोला.. साहब, यह ठीक कह रहे है | हम तो बोल देंगे कि हम ने कुछ देखा ही नहीं |

फिर कुछ नहीं action हो सकता है आप के ऊपर / |

मैं बोला…. अरे यार, नई नई नौकरी है मेरी , अगर बैंक मुझे जॉब से निकाल देगा तब ?.

मेरे मन में उथल पुथल चल रही थी ..अब ऐसी जगह में रहना मुश्किल लग रहा था | कोई ना कोई उपाय करना ही होगा |

 एक दिन कि बात है,.. करीब पाँच बजे का वक़्त रहा होगा और स्टाफ सभी कार्य समाप्त कर जा चुके थे |

शाखा में सिर्फ गार्ड, मेनेजर साहेब और मैं था | उसी समय मेनेजर साहेब मेरी तरफ मुखातिब होकर बोले…आप को  कल “रानाडी” गाँव जाना है और वहाँ से भैरो सिंह को पकड़ कर शाखा में लाना है | वो ऋण की क़िस्त नहीं चूका रहा है |

तो मैंने कहा कि “रानाडी” गाँव यहाँ से पाँच  किलोमीटर दूर है इसलिए भाड़े की जीप से जाने की अनुमति ( permission) दीजिए |

इस पर मेनेजर साहब भड़क गए |

उन्होंने कहा .. आप को तो पैदल ही जाना होगा | इतना सुनना था कि मुझे अचानक गुस्सा आ गया |

मैं तुरंत उनके  सीट के सामने जाकर उनका कॉलर पकड़ लिया और गुस्कसे में कहा …… तुम हमारे पीछे क्यों पड़े रह्ते हो ?

मेरा बिहारी खून मत खौलाओ , वर्ना इतना मारूंगा कि आप की सारी मनमानी भुला दूँगा |

इतनी बेइज्जती और वो भी ब्रांच के गार्ड के सामने, मेनेजर साहब बर्दास्त नहीं कर सके और नाराज़ होकर उन्होंने  उदयपुर जोनल ऑफिस ( Zonal Office) में  मेरी शिकायत कर “मार-पिटाई” का चार्ज लगा दिया |

इतना ही नहीं, उन्होंने क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय से निवेदन किया कि इस घटना से वह बहुत डर गया है |

ऐसे माहौल में असुरक्षित महसूस कर रहा है | इसलिए हम दोनों में से किसी एक को यहाँ से अविलंब ट्रान्सफर कर दिया जाए |

सिचुएशन के नजाकत को देखते हुए हमारी पोस्टिंग “शिवगंज” शाखा में कर दी गई, जो शहर जैसी ही सभी सुख सुविधाओं से लैस थी  /

मुझे अब समझ नहीं आ रहा था कि मुझे यह punishment मिला हैं या reward … सचमुच …प्रभु आप के खेल निराले है … .

इससे आगे की घटना जानने के लिए नीचे link को click करें…

# मैं आवारा हूँ #

ख्वाबों के पंख लगाकर आकाश में उड़ते रहना,

डर तो लगता है.. पर खतरनाक नही होता,

 खतरनाक होता है.. उन ख्वाबों का मर जाना..

कुछ हसरतों का अधूरा रह जाना,

बुरा तो लगता है, पर खतरनाक नही होता..

 खतरनाक होता है, जिंदा लाश बन कर ..

………………… .जिंदगी को जीना…

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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39 replies

  1. बहुत सुंदर प्रसंग।

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  2. बहुत दिलचस्प वाकया सांझा किया आपने
    सुप्रभात जी 🙏

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  3. Mr.Verma ! For getting transferred from the rural branch of the bank , you resorted to beating the then manager by telling him “Mera Bihari khun mat khaolao”. Vomiting bitter language in such circumstances was not so bad . But using Bihari as an adjective there , I think denotes region or (race) , was not good . Anyway , your life story is colorful , full of courage . Thanks !

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  4. मजेदार संस्मरण

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  5. Apke pass aisa kisse khub he sir
    👏🏻🔆

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  6. Wah sir, apka yehi bhi ek roop tha, yeh ni pata tha 😝

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  7. शोले फिल्म मैंने भी देखी लेकिन आपने जिस तरह देखी वैसे नहीं, मैंने सर्दी की रात मे एक दीवार की मुंडेर पर बैठकर देखी थी, आपकी दुख भरी याद बहुत रोचक थी

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  8. Anubhav ke sath kavita bhi accha laga.

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  9. धन्यवाद, आपने सचेत कर दिया. बहुत से मित्र और संबंधी बिहारी हैं. उनके साथ लिबर्टी नहीं ली जा सकती – यह पता चल गया. 😁😁😁

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