# मैं ज़िद्दी हूँ # 

दोपहर का समय और  उन दिनों काफी गर्मी पड़ रही थी | वैसे भी राजस्थान की गर्मी बहुत कष्ट दायक हुआ करती थी |

भैरो सिंह का ट्रेक्टर seize कर उसके गाँव से चल पड़ा था | परन्तु रास्ते में उनलोगों से खतरे की आशंका बनी हुई थी, इसलिए जल्द से जल्द वापस अपनी शाखा में पहुँच जाना चाहता था |

लेकिन ड्राईवर बाबू लाल जी बार बार बोल रहे थे कि उन्हें भूख लगी है, पहले कुछ खाना खा लेते है फिर आगे की यात्रा करते है |

धुल भरी आंधी अलग से परेशान कर रही थी | मैं पहली बार राजस्थान में ऐसी धुल भरी आंधी देख रहा था |  सड़क पर इतना बालू भर गया था कि रास्ता ही नहीं पता चल रहा था |

चारो तरफ बालू ही बालू दिखाई पड़ता था | मैं सूरज ढलने के पहले किसी तरह इस क्षेत्र से मैं निकलना चाहता था ताकि खुद को और  बाबु लाल जी को सुरक्षित कर सके |

कुछ दूर ही चले होंगे कि एक छोटी सी दूकान दिखी, कुछ लोग वहाँ बैठे चाय पी रहे थे और  वहाँ गरमा गरम मिर्ची – पकौड़ा बन रहा था जिसे देख कर मेरी भी भूख बढ़ गई |

मैं ट्रेक्टर और  जीप को साइड में खड़ा किया और  “मिर्ची बड़ा” का आनंद लेने लगा | भूख तो जोरों की लगी थी और  पकौड़ा भी बहुत स्वादिस्ट था, सचमुच मजा आ गया |

तभी वहाँ बैठे कुछ बुजुर्ग मुझसे पूछ बैठे…. किसका ट्रेक्टर उठा कर ले जा रहो हो, साहेब |

जब मैं ने  भैरो सिंह का नाम बताई, तो उसने कहा …आप जितनी जल्द  हो सके, इधर से निकल जाओ ,,ठाकुर ठीक कोई नि | (भैरो सिंह आदमी ठीक नहीं) |

उसकी बातें सुन कर “मिर्ची बड़ा” का तीखापन मेरे मुँह से गायब हो गया | , मैं जल्दी से अपना प्लेट साफ़ किया और  बिना चाय पिए ही अपनी मंजिल की ओर रवाना हो लिया |

भूख क्या शांत हुआ कि अपनी गाड़ी की speed भी बढ़ गई, और करीब आधा घंटा के सफ़र के बाद सुमेरपुर इलाका में दाखिल हुआ और  चैन की सांस ली , क्योंकि danger area पार कर लिया था |

source:Google.com

जैसे ही शाखा पहुँचा.. सारे स्टाफ और  ख़ास कर दयालु साहेब (मेनेजर साहेब) हमारी तरफ आश्चर्य चकित होकर देख रहे थे |

उनको जैसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि ठाकुर का ट्रेक्टर उसके इलाका से उसकी इच्छा के विरूद्ध seize कर लाया जा चूका है और उनके सामने खड़ी है |

इस तरह की शायद पहली घटना थी इस शाखा के लिए | मुझे भी अपने बिहारी होने पर गर्व महसूस हो रहा था |

हालाँकि इस मिशन के सफल होने में अपना ड्राईवर बाबु लाल जी का भी बड़ा योगदान था |

चाय वगैरह से निवृत होकर मेनेजर साहेब ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ..तुम ट्रेक्टर तो ले आए हो लेकिन इसे सुरक्षित कहाँ रखा जाए ?

क्योकि अगर यह चोरी हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे , चिंता होना वाजिब था |

मेरी सलाह थी कि शाखा की जीप जहाँ खड़ी की जाती है वही पर इसे भी खड़ी कर दी जाए | हालाँकि गैराज नहीं था बल्कि शाखा के कंपाउंड में ओपन स्पेस में रखा जाता था | अंततः वहाँ पर ट्रेक्टर को खड़ी कर दी गई और  मैं थका हारा घर की ओर चल पड़ा |

दुसरे दिन मैं अपने टेबल पर कुछ ज़रूरी लोन प्रपोजल बना रहा था तभी मेनेजर साहेब  चैम्बर में दाखिल हुए और आते ही बोल पड़े …..वो बिहारी , what next , और  आगे की रणनीति पर विचार  करने के लिए मेरे सामने ही बैठ गए |

उन्होंने आशंका व्यक्त किया कि अगर वो ट्रेक्टर लेने नहीं आया तो एक सप्ताह में इसका टायर – टिउब भी बैठ जायेगा |  चोरी होने का भी खतरा बना रहेगा |

हमलोग चिंतिंत मुद्रा में बैठे इस समस्या का हल ढूंढ ही रहे थे, तभी एक बुजुर्ग सा किसान धोती कुरते में और  सिर पर पगड़ी थी , हमारे सामने आ कर खड़े हो गए |

अपने बैग से पचपच हज़ार रूपये निकाल कर हमारे टेबल पर रखा और  कहा कि भैरो सिंह के खाते में जमा करो और जो ट्रेक्टर उठा के लाये हो उसे हम लोग वापस ले जाएंगे |

मैं बाहर देखा तो तीन लोग और  भी थे उनके साथ, परन्तु ठाकुर खुद नहीं आया था |

मैं उत्सुकता वश उससे पूछा कि इतनी बड़ी रकम इतनी जल्दी कैसे इन्तेजाम कर लिया ठाकुर साहेब ने … और वो खुद क्यों नहीं आए ?

 उसने जो बात बताया, वो सुनकर मैं अंदर से बहुत भावुक हो गया ,और मुझे सामाजिक मजबूरियों का आभास हुआ |

उसने बताया कि उनकी बेटी की शादी अगले माह है और  अगर बच्ची के ससुराल वालों को इस घटना के बारे में पता चलेगा तो यह रिश्ता खतरे में पड़ सकती है, और  समाज में बदनामी भी हो जाएगी |

इसलिए वो अपने अढ़तिया से ब्याज पर पैसे लेकर हमें आपके पास भेजा है और वो खुद शर्म के कारण नहीं आए |

सामाजिक रीति  रिवाज़ ऐसी परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी मानव जातियों में सदा से चले आ रहे है,  लेकिन आज हम इसे भूलते जा रहे है और  इसीलिए हमारा समाज विघटन की ओर अग्रसर है |

ऐसे में आवश्यकता है कि हम अपने रीति रिवाज़ों और  परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारणों को जाने और उन्हें अपना कर अपना जीवन सुख मय बनायें |  …

इससे पहले की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें..

शुक्र कर रब का, तू अपने घर मे है

पूछ उस से जो अटका सफर में है

यहाँ बाप की शक्ल नही देखी,

आखरी वक़्त में कुछ लोगों ने ,

बेटा  हॉस्पिटल में और बाप कब्र में है 

तेरे घर मे राशन है साल भर का

तू उसका सोच जो दो वक्त की रोटी के फिक्र में है।

तुम्हे किस बात की जल्दी है गाड़ी में घूमने की,

अब तो सारी कायनात ही सब्र में है

अभी भी अगर किसी भ्रम में मत रहना

इंसानों की नही सुनती आज कल,

कुदरत अपने सुर में है..

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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12 replies

  1. अच्छी कहानी।

    Liked by 1 person

  2. Mast story he!!!
    Padka maja aa gaya
    Mirchi bada kaisa tha?

    Liked by 1 person

  3. Sahi baat halat kuch bhi karwa sakte hai

    Liked by 1 person

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